फिर किसी बाबा के दिमाग में ऐसा विचार कौंध गया तो ?

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फिर किसी बाबा के दिमाग में
ऐसा विचार कौंध गया तो ?

कीर्ति राणा की विशेष रिपोर्ट

महाकाल का आभार मानें कि कुबरेश्वर में मौत का ट्रायल शत प्रतिशत सफल नहीं हो सका, गनीमत है कि दो महिला, एक बच्चा ही शिव धाम पहुंच पाए, अव्यवस्था तो जाने कितनों को बाहों में भरने को उतावली थी।कुबरेश्वर वाले महाराज को तो सरकार की बात समझ आ गई लेकिन फिर किसी बाबा को ऐसे ही किसी आयोजन की धुन सवार हो जाए तो बेहतर होगा कि अनुमति देने की उदारता से पहले सरकारों को पैरों में लोट लगा देना चाहिए कि बाबाजी रहम करो।

अब क्या करेगी सरकार….? दावे-प्रतिदावे का दौर चलेगा, सारा दोष अनुमान फेल होने को दिया जाएगा। पिछली बार पांडाल गिर गया था, उस आयोजन का दोष तो प्रकृति ने अपने सिर ले लिया था। इस बार तो प्रकृति से ज्यादा मनोवृत्ति-लाचारी दोषी है।लाचार तंत्र के लिए तो अग्नि परीक्षा की घड़ी है, पर तंत्र फिर भी निश्चिंत है क्योंकि ऐसी परीक्षाओं में से सरकार को पाक-साफ निकालना उसके लिए तो बाएं हाथ का खेल है। वैसे भी धार्मिक-जलसे-जुलूस आदि आयोजनों में भगदड़ होने पर सरकार की अघोषित गाइड लाइन रहती है कि सारा दोष आयोजक के गले मढ़ कर अपने चेहरे पर लगे छींटें साफ कर लिये जाएं।

कुबरेश्वरधाम में फैली अव्यवस्थाओं के लिए किसी न किसी को तो दोषी ठहराना ही होगा मामला धार्मिक भावनाओं से जुड़ा है तो कम से कम इस मामले में सरकार बुलडोजर वाली सख्ती नहीं दिखाएगी। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा लोग पक्षपात के ही तो आरोप लगाएंगे लेकिन रुद्राक्ष पाने की आस लगाए असंख्य श्रद्धालु तो सरकार के गुण गाएंगे, चुनावी साल का तकाजा भी यही है।

जब धर्म की वैतरणी में सरकारें सवार हो जाती हैं तो तंत्र भी दृष्टि शून्य, दिशा हीन हो जाता है। सरकारी तंत्र के विवेक शून्य हो जाने पर ही कुर्सियों के पाए चरमराने लग जाते हैं। जब जब धर्म के आगे पाखंड का पर्वत अट्टहास करने लगता है तब-तब निष्काम साधना करने वाले संतों पर भी शंका के बादल मंडराने लगते हैं।पंडित जी ने बीते वर्षों में शिव साधना से जो पुण्य कमाया था एक चमत्कारी रुद्राक्ष ने सब मिट्टी में मिला दिया। रुद्राक्ष पाने के लिए भीड़ में दबे-कुचले लोगों की आंखों से बहे रुद्र के आंसू का हिसाब कौन देगा-ऐसे निशुल्क आयोजनों में भी दान की अपरंपार महिमा को बारंबार प्रणाम।

जिस औघड़ दानी के नाम वाले रुद्राक्ष बांटने का अभियान स्थगित हुआ है, ऐसी अव्यवस्थाओं के चलते भविष्य में भी ऐसा काम नहीं होना चाहिए। कुबरेश्वरधाम विकास के लिए जब ऑनलाइन चंदा लिया जा सकता है तो भक्तों को ऑनलाइन रुद्राक्ष भेजने की उदारता भी दिखाना चाहिए। इस प्रक्रिया में बस एक ही नुकसान है कि रुद्राक्ष के भक्तिभाव वाला चढ़ावा शायद नहीं आए। एक लोटा जल से प्रसन्न होने वाले महादेव को भले ही चंदन-चंदे-चढ़ावे से मतलब न हो लेकिन इतने तामझाम में खर्चा तो होता है ना। बेहतर होगा कि इस पूरे प्रकरण में असंख्य अनुयायियों को हुई परेशानी के लिए सरकार तो अपने विभागों की लापरवाही के लिए खेद व्यक्त करें ही पंडितजी भी कथा मंच से माफी मांगने की उदारता दिखाने के साथ ही अन्य बाबाओं से अनुरोध भी करें कि भगवान के नाम पर भक्तों को रुलाने वाले ऐसे आयोजन करने और बद्दुआ लेने से बचें।