
मध्यप्रदेश में मंत्रिमंडल विस्तार के बन रहे आसार…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
मध्यप्रदेश में मंत्रियों पर ग्रह नक्षत्र मेहरबान नजर नहीं आ रहे हैं। मंत्रियों को लेकर लगातार हो रही घटनाओं ने यह साबित कर दिया है कि मोहन मंत्रिमंडल के मंत्रियों से कोई अदृश्य शक्ति खफा-खफा सी है। अब देखो आदिवासी नेता के टैग पर विजय शाह ने तो पूरी जिंदगी ही शाही अंदाज में गुजार दी है। जब जो मन में आया वही किया और यह परवाह किए बिना कि पद के अनुकूल उनकी बात और कृत्य गरिमा और मर्यादा के दायरे में है या नहीं है। और इसी अमर्यादित आचरण के चलते विजय शाह को एक बार शिवराज मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। पर हठयोगी आदिवासी राजा को हार पसंद नहीं है सो तब भी तिकड़म लगाकर मंत्रिमंडल में वापसी करके ही माने थे। पर इस बार मामला गंभीर हो गया है। उनके बयान ने ही उनकी शान पर शिकंजा कस दिया है। और मामला देखते ही देखते उच्च न्यायालय की स्वत: संज्ञान वाली बेहद गंभीर और ठोस कार्यवाही में बदल चुका है। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के संदर्भ में ‘भय बिनु होई न प्रीति’ जैसी बात हाल ही में कही थी। और शाही अंदाज में विजय ने सेना की गौरव कर्नल सोफिया कुरैशी पर ही वह तंज कस दिया कि जीवन के उत्तरार्ध में उन्हें लंबे राजनैतिक कैरियर में स्थायी पराजय मिलने की पूरी संभावना बन गई है। जबलपुर हाई कोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन ने संज्ञान लेते हुए मंत्री विजय शाह के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए हैं। हाई कोर्ट ने विजय शाह के खिलाफ बीएनएस की धारा 152, 196(B), 197 में एफआईआर दर्ज करने के निर्देश दिए हैं। ये सभी धाराएं गैर जमानती बताई जा रही हैं। और एफआईआर होते ही मंत्री कुंवर विजय शाह का इस्तीफा होना तय है। और इस्तीफा भी ऐसा कि मंत्री की शायद ही इस जनम में राजनीति में वापसी संभव हो पाए। यानि कि इस्तीफा हुआ तो वही बात शाह पर स्थायी तौर पर चस्पा होगी कि ‘बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले’। कर्नल सोफिया कुरैशी के भाई ने विजय शाह के उनकी बहन पर दिए बयान पर कहा है कि पीएम मोदी संज्ञान लें। मामला केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के समक्ष पहले ही पहुंच गया है। मध्यप्रदेश के नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने विजय शाह के बयान मामले पर मुख्यमंत्री को घेरा है और शाह के इस्तीफे की पुरजोर मांग की है। तो मध्यप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने सख्त लहजे में ट्वीट कर विजय शाह को तत्काल पदों से मुक्त करने की मांग की है। मामला हर पल गंभीर होता जा रहा है और शाह को जीवन के उत्तरार्ध में मुंह की खानी पड़ेगी…यह तय प्रतीत हो रहा है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और भाजपा के दिग्गजों ने शाह को पहले ही आइना दिखा दिया है। और विजय शाह पर एफआईआर दर्ज होने की प्रक्रिया हो चुकी है। इंदौर के मानपुर थाने में एफआईआर दर्ज हुई है। अब इस्तीफा होना औपचारिकता है। खैर अब विजय शाह को एक ही चौपाई ‘होइहि वहि जो राम रचि राखा’ को शिरोधार्य करने का समय आ गया है। जो राम ने रचा है, विजय या पराजय…अब वह मिलकर ही रहेगी।
इसके पहले मोहन मंत्रिमंडल से वन मंत्री रामनिवास रावत का इस्तीफा हो चुका है। विजयपुर उपचुनाव में पूर्व वन मंत्री रामनिवास रावत की हार ने भाजपा में खलबली मचा दी थी। रावत ने हार का ठीकरा पार्टी के अंदरूनी लोगों पर फोड़ा था। हालांकि बाद में वह तटस्थ होकर हार स्वीकार किए थे। उन्होंने आरोप लगाया था कि कुछ लोग उन्हें भाजपा में स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। कहा था कि जनता ने उन्हें 93,000 वोट दिए, यह दर्शाता है जनता उनके साथ है। वन मंत्री रामनिवास रावत ने हार के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। रावत कांग्रेस से भाजपा में आए थे। उन्हें सिंधिया समर्थक माना जाता है। उनके लिए सिंधिया का प्रचार न करना भी उनकी हार का एक कारण माना गया था। रावत ने कांग्रेस पर आदिवासी गांव पर हमले का झूठा इल्ज़ाम लगाने का भी आरोप लगाया था। पर रामनिवास रावत के इस्तीफा के बाद वन विभाग भी रिक्त होकर मुख्यमंत्री के हिस्से में पहुंच चुका है। नवंबर में रामनिवास का इस्तीफा हुआ था और एक सप्ताह बाद दिसंबर को इस्तीफा स्वीकार हो गया था।
तो दिसंबर के बाद से ही मंत्रिमंडल विस्तार के कयास ज्यादा जोर से लगाए जा रहे हैं। कई वरिष्ठ नेता मंत्रिमंडल विस्तार की बाट जोह रहे हैं। तो कई मंत्रियों से इस्तीफा लेने की चर्चा समय-समय पर जोर पकड़ती रहती है। वहीं डॉ. मोहन यादव के पास पहले दिन से ही सामान्य प्रशासन, गृह, जेल, औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन, जनसम्पर्क, नर्मदा घाटी विकास, विमानन, खनिज साधन, लोक सेवा प्रबंधन, प्रवासी भारतीय विभागों का दायित्व था। और ऐसे अन्य समस्त विभाग जो किसी अन्य मंत्री को न सौंपे गए हों, वह भी मुख्यमंत्री के पास हैं तो इनमें वन विभाग शामिल हो गया है। अब मंत्री जनजातीय कार्य विभाग, सार्वजनिक परिसंपत्ति प्रबंधन विभाग, भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विभाग का दायित्व भी मुख्यमंत्री के हिस्से में आ सकता है। तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री को छोड़कर मध्यप्रदेश मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या जो पहले 31 थी, वह रामनिवास रावत के जाने पर 30 रह गई थी। और अब यह संख्या 29 ही बचेगी। ऐसे में तय फार्मूला के मुताबिक कम से कम पांच मंत्रियों को मंत्रिमंडल में जगह मिल सकेगी। ऐसे में आसार यही हैं कि शाह के बाद मोहन मंत्रिमंडल, विस्तार की तरफ कदम बढ़ा सकता है…।





