भय बिनु होई न प्रीति…

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भय बिनु होई न प्रीति…

कौशल किशोर चतुर्वेदी

पाकिस्तान को सबक सिखाना जरूरी है। पाकिस्तान को दंड मिलना अनिवार्य है। पाकिस्तान को मिट्टी में मिलाने का मतलब उसकी आसुरी प्रवृत्तियों को पूरी तरह से नष्ट करना आवश्यक है। और यह पाकिस्तान जिसकी 99 गलतियां माफ हो चुकी हैं, उसे पहलगाम में की गई 100वीं महाभूल पर महादंड का अहसास कराना भारत के पास एकमात्र विकल्प है। हमारे सनातन धर्म का भाव भी यही है कि जब सुधरने की कोई राह न दिखे, तब युद्ध ही अंतिम समाधान बचता है। और त्रेता युग में राम ने वही किया, तो द्वापर युग में कृष्ण ने भी पांडवों का साथ देकर अधर्मियों का नाश किया था। भारत ने भी पाकिस्तान को सुधरने का पूरा अवसर दिया। पर पाकिस्तान की धूर्तता, छल, कपट और दुस्साहस ने भारतवासियों को हमेशा दु:खी ही किया है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पाकिस्तान चार-चार युद्धों में मुंह की खाने के बाद भी बेशर्मी की हदें पार करने से बाज नहीं आता। और इसीलिए पाकिस्तान को अब उतना दंड देना जरूरी है, जिससे उसके अंदर ऐसा भय पैदा हो जाए कि उसकी सौ पीढ़ियां भी भारत के नाम पर थर्राती रहें। और तब ही उसके मन में पड़ोसी भारत के प्रति धूर्तता का भाव खत्म होने की कण मात्र उम्मीद की जा सकेगी।

रामचरित मानस में समुद्र से राह मांगने के लिए राम ने विनम्रता और विनय का आदर्श उदाहरण पेश किया था। पर जब तीन दिन तक जड़ समुद्र ने विनय से बात नहीं मानी, तब राम ने रौद्र रूप दिखाया था। सुंदरकांड का 57 वां दोहा है-

बिनय न मानत जलधि जड़ गए तीन दिन बीति।

बोले राम सकोप तब भय बिनु होइ न प्रीति।

यानि तीन दिन बीत गए, पर जड़ समुद्र ने राम की विनय नहीं मानी। तब राम क्रोधित होकर बोले कि भय के बिना प्रीति नहीं होती।

और राम ने जब धनुष पर भयानक बाण संधान किया, तब समुद्र के ह्रदय के अंदर अग्नि की ज्वाला उठी। मगर, सांप तथा मछलियों के समूह व्याकुल हो गए। जब समुद्र ने जीवों को जलते देखा, तब सोने के थाल में अनेक मणियों को भरकर अभिमान त्यागकर वह ब्राह्मण के भेष में राम के सामने उपस्थित हुआ। समुद्र ने भयभीत होकर प्रभु के चरण पकड़कर कहा कि हे नाथ, मेरे सब अवगुण यानि दोष क्षमा कीजिए। तो बात बस इतनी सी ही है कि पाकिस्तान अभी भारत का रौद्र रूप देखकर व्याकुल तो है, पर उसकी ढिठाई अभी भी बनी हुई है। सिंधु संधि रद्द होने और झेलम के पानी की बाढ़ से रूबरू हो पाकिस्तान की हालत तो खराब है ही। पर उसकी जड़ प्रवृत्ति अभी भी गई नहीं है। सो यह युद्ध जरूरी है ताकि पाकिस्तान फिर दोबारा आतंक को पोषित करने के विचार से ही भयभीत हो जाए और पड़ोसी धर्म का मर्म समझ सके।हालांकि यह भी तय है कि युद्ध में दोनों ही पक्ष कष्ट से गुजरते हैं। राम रावण युद्ध में भी लक्ष्मण को बाण लगा तो हनुमान को संजीवनी लानी पड़ी। राम-लक्ष्मण नाग पाश में बंधे तब राम के पक्ष में शोक छा गया। और जब अहिरावण राम-लक्ष्मण को लेकर गया, तब राम पक्ष अधीर हो गया। पर विजय अंत में सत्य की होती है। यह बात त्रेता, द्वापर में सही थी, तो कलियुग में भी पाकिस्तान के संदर्भ में भारत के लिए यह बात सौ फीसदी सही है।

पर जिस तरह रावण भी जान दिए बिना राम के भय को जाना नहीं था और जाना था तो माना नहीं था। ठीक उसी तरह पाकिस्तान भी भारत से भयभीत तो है, पर अहंकार के वशीभूत इसे झुठला रहा है। जिस तरह रावण ने भी बार-बार राम के भय को अहंकारवश झुठलाने की कोशिश की थी। पर अंत में युद्ध हुआ और रावण के अंत के साथ असुरों का अहंकार चकनाचूर हो गया था। उसी तरह पाकिस्तान का अंत होना अब जरूरी है। राम ने पुरुषों के तीन प्रकार बताए थे, पहला गुलाब की तरह जो फूल देता है यानि वह पुरुष जो कहते हैं पर करते नहीं। दूसरा आम की तरह जो फल और फूल दोनों देते हैं यानि कहते हैं और करते भी हैं। तीसरा कटहल की तरह जो केवल फल देता है यानि वह पुरुष जो केवल करते हैं, पर वाणी से कहते नहीं। और राम की यह बात सुनकर रावण खूब हंसा और बोला मुझे ज्ञान सिखाते हो? ठीक यही हाल फिलहाल पाकिस्तान का है, जिसके नेता अट्टहास कर रहे हैं और भारत को देख लेने की धमकी दे रहे हैं। पर अब तो भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का कह भी दिया है और सबक सिखाकर ही मानेगा। तो बस उस घड़ी का इंतजार कीजिए, जब पाक की सह पर पहलगाम में निहत्थे हिंदुओं को मारने की नापाक हरकत वालों के आकाओं को मिट्टी में मिलाने की शुरुआत होगी…हो सकता है कि अक्षय तृतीया के शुभ मुहूर्त में युद्ध की वह निर्णायक घड़ी प्रकट हो जाए…। और उसके बाद का भय पाकिस्तान के मन में भारत के प्रति हमेशा खौफ के चलते प्रीति का भाव बनाए रखने को मजबूर करेगा…।