भोपाल। मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह चौहान सरकार के मंत्रियों के बीच इन दिनों दिलचस्प प्रतिस्पर्धा स्कूल और कॉलेज में पढ़ाए जाने वाले विषयों को लेकर है चल रही है। यह प्रतिस्पर्धा ऐसी है जिसमें कोई भी पीछे नहीं रहना चाहता क्योंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एजेंडे के अनुसार शिक्षा जगत में पढ़ाए जाने वाले विषयों में वह चाहते हैं कि उनकी पहल सबसे पहले हो। जब शिक्षा और संस्कृति विभाग से जुड़े हुए मंत्रीगण अपने-अपने विभाग में संघ की रूचि और संस्कृति के अनुसार पाठ्यक्रमों में विषयों को शामिल करने की पहल कर रहे हैं, ऐसे में मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल कहां पीछे रहने वाले थे। पटेल कहते हैं कि मध्यप्रदेश कृषि प्रधान राज्य है इसलिए बच्चों को स्कूल से ही खेती व किसानी की शिक्षा दी जाए। जबकि स्नातक और व्यावसायिक डिग्री वाले छात्रों के पाठ्यक्रम में महापुरुषों के विचार और धार्मिक पुस्तकों, ग्रंथों को पढ़ाए जाने की बात हो रही है। मंत्रियों के बीच इस प्रतिस्पर्धा की वजह अपने चेहरे को भविष्य के राजनीतिक नेतृत्व की प्रतिस्पर्धा में खड़ा करना और संघ के कर्णधारों की निगाह में आना है?
कृषि मंत्री कमल पटेल ने स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह सिंह परमार से आग्रह किया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भावनाओं के अनुरूप स्कूली पाठ्यक्रम में कृषि विषय को भी शामिल किया जाए। स्कूल शिक्षा मंत्री परमार स्कूलों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पढ़ाए जाने पर जोर दे रहे हैं। परमार कहते हैं कि प्रदेश के 53 ई.एफ.ए (एजुकेशन फॉर आल) स्कूलों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एक विषय के रूप में पढ़ाया जाएगा। वे कहते हैं कि बच्चों को नई तकनीक का ज्ञान हो सके और वे सूचना प्रौद्योगिकी को बेहतर तरीके से जान सकें, इसके लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का 240 घंटे का पाठ्यक्रम तैयार किया गया है। परमार के अनुसार माइक्रोसॉफ्ट कंपनी सॉफ्टवेयर के जरिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विषय की ऑनलाइन कक्षाएं संचालित करेगा। कक्षा आठवीं और नवमी के विद्यार्थियों को इसी सत्र से तथा कक्षा 10वीं से 12वीं के बच्चों को अगले सत्र से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को विषय के रूप में चुनने की सुविधा मिलेगी। माइक्रोसॉफ्ट टीम से राज्य शिक्षा बोर्ड ने एक करार भी इसके लिए किया है। केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड इसी सत्र से पाठ्यक्रम में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को नए विषय के तौर पर शामिल कर चुका है। मध्य प्रदेश में 255 सीएम राइज स्कूल प्रारम्भ किये जा रहे हैं। इन स्कूलों में के .जी से लेकर 12वीं तक हिंदी और अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई की व्यवस्था रहेगी।
शिक्षा में रामचरित मानस-गीता और रामसेतु का समावेश
राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न पदों पर रहे हैं। उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का कहना है कि केन्द्र की नई शिक्षा नीति के बाद राज्य के अध्ययन बोर्ड के शिक्षकों ने नया पाठ्यक्रम तैयार किया है। यादव ने कहा कि नए पाठ्यक्रम के अनुसार, कला के छात्रों के लिए ‘श्री रामचरितमानस के अनुप्रयुक्त दर्शन’ को वैकल्पिक विषय के रूप में पेश किया गया है। वहीं, अंग्रेजी के फाउंडेशन कोर्स में प्रथम वर्ष के छात्रों को सी. राजगोपालाचारी द्वारा लिखी गई महाभारत की प्रस्तावना पढ़ाई जाएगी। राज्य के शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने कहा कि अंग्रेजी और हिंदी के अलावा, योग और ध्यान को भी तीसरे फाउंडेशन कोर्स के रूप में पेश किया गया है, जिसमें ‘ओम का ध्यान’ और मंत्रों का पाठ शामिल है। नए पाठ्यक्रम पर उठ रहे विवादों की परवाह है ना करते हुए उच्च शिक्षा मंत्री यादव फरमाते हैं कि हम यदि अपने गौरवशाली इतिहास को आगे ला रहे हैं तो इसमें दिक्कत क्यों होना चाहिए? उन्होंने कहा कि उर्दू भी तो पढ़ाई जाती है। यादव इस बात पर जोर दे रहे हैं कि राम सेतु की संरचना भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में महत्वपूर्ण है। यादव ने कहा कि रामसेतु और बेट द्वारका के बारे में तो नासा के वैज्ञानिक भी कह चुके हैं कि यह मानव निर्मित हैं। इससे पहले यादव अपने उस बयान के लिए चर्चा में आए थे जो उन्होंने राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति पद नाम को लेकर दिया था। यादव ने कुलपति के स्थान पर कुलगुरु नाम करने का सुझाव दिया है। राज्य में विश्वविद्यालयों का नियंत्रण राज्यपाल के पास है। वे सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति हैं। उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में रामचरित मानस को शामिल किए जाने पर कांग्रेस की प्रतिक्रिया अपेक्षानुसार ही रही और उसके विधायक आरिफ मसूद ने कुरान और बाइबल पढ़ाने की मांग कर डाली। इसके चलते ही इस मामले पर राजनीतिक छाया पड़े बिना नहीं रहेगी और कहीं न कहीं तीन विधानसभा और एक लोकसभा के उपचुनाव पर भी इसका कुछ ना कुछ असर होने की संभावना को नकारा नहीं जा सकता।
विश्वास सारंग ने की पहल
उच्च शिक्षा मंत्री द्वारा रामचरित मानस पढ़ाए जाने के निर्णय से पहले ही चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग मेडिकल की पढ़ाई के पहले साल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को पढ़ाए जाने की बात कह चुके हैं। इनके अलावा आयुर्वेद विशारद महर्षि चरक, आचार्य सुश्रुत, स्वामी विवेकानंद, डॉ.भीमराव अंबेडकर के विचार भी मेडिकल में पढ़ाए जाने की योजना है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि इसी सत्र से मेडिकल के फाउंडेशन कोर्स में इन महापुरुषों के विचारों को बतौर लेक्चर जोड़ा गया है। सारंग ने कहा कि महापुरुषों के विचारों को पढ़ाकर हम अच्छे डॉक्टर तैयार करेंगे। मेडिकल की पढ़ाई का सिलेबस नेशनल मेडिकल काउंसिल द्वारा तैयार किया जाता है। सामान्यत: महापुरुषों के विचार प्राथमिक और माध्यमिक स्तर तक ही पढ़ाए जाते हैं।
क्या इससे बढ़ पाएंगा मंत्रियों का राजनीतिक कद?
शिक्षा से जुड़े विभिन्न विभागों के मंत्रियों के बीच संघ और संस्कृति से जुड़े पाठ्यक्रम को लेकर जिस तरह से प्रतिस्पर्धा चल रही है उस पर अभी तक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूरी तरह खामोशी ओढ़ रखी है। माना यह जा रहा है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद राज्य की राजनीति पूरी तरह से बदल गई है। युवा मंत्री अपनी भावी राजनीति के लिए नए-नए प्रयोगों से पार्टी और संघ परिवार का ध्यान अपनी ओर खींचने की जुगत में हैं।
और यह भी
भाजपा में यह सवाल भी महत्वपूर्ण बना हुआ कि यदि भविष्य में कभी नेतृत्व परिवर्तन की स्थिति पैदा होती है तो फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विकल्प आखिर कौन हो सकता है? कांग्रेस नेता एवं पिछड़ा वर्ग आयोग आयोग के अध्यक्ष जेपी धनोपिया कहते हैं कि पाठ्यक्रम में बदलाव के पीछे मंत्रियों के बीच विकल्प बनने की होड़ लगी हुई है। भाजपा प्रवक्ता आशीष अग्रवाल कहते हैं कि उच्च शिक्षा में कई विषय वैकल्पिक होते हैं। सरकार की मंशा विचारों को नई पीढ़ी तक पहुंचाने की है।