

MP का एक ऐसा गांव,जहां पिछले 130 सालों से नहीं मनाई होली!
संभागीय ब्यूरो चीफ चंद्रकांत अग्रवाल की विशेष रिपोर्ट
बैतूल। पूरे देश भर में धूमधाम से होली मनाई जाती है। शुक्रवार को पूरे देश में होली का पर्व उत्साह से मनाया गया। लोगों ने एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर होली की बधाइयां दीं।
लेकिन,MP में बैतूल जिले का एक गांव ऐसा भी है, जहां लोग विगत कई वर्षों से होली का पर्व नहीं मना रहे हैं। कल भी होली के दिन इस गांव में मातम छाया हुआ था। करीब 130 सालों से इस गांव में होली मनाने पर प्रतिबंध है, जिसके चलते होली पर इस गांव में मातम छाया रहता है।
बैतूल जिले के मुलताई तहसील के गांव डहुआ में करीब 130 सालों से स्थानीय ग्रामीण होली का पर्व नहीं मना रहे। ज्ञात हुआ कि गांव के प्रधान की करीब 130 साल पहले होली के दिन बावड़ी में डूबने से मौत हो गई थी। तब ग्रामीणों ने उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने होली नहीं खेलने का निर्णय लिया था. तभी से इस गांव में होली खेलने पर प्रतिबंध लगा हुआ है। होली के दिन कोई भी ग्रामीण किसी को भी रंग नहीं लगाता। ग्रामीण आज भी इस फैसले को मानते हैं और होली नहीं मनाते। जिससे गांव में सन्नाटा/ मातम सा माहौल रहता है।
गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि जब हम छोटे थे, जब से ही होली का पर्व गांव में नहीं मनाया जाता। हमें बुजुर्गों ने बताया है कि गांव के प्रधान नड़भया मगरदे की होली के ही दिन गांव के एक बावड़ी में डूबने से हुई मौत हुई थी। इस घटना के बाद प्रधान को सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए होली ना मनाने का फैसला लिया था। आज भी ग्रामीण इस फैसले का पालन कर रहे हैं। यहां तक कि कोई किसी को होली की बधाई भी नहीं देता।
गांव के एक युवा ने बताया कि, “हम बचपन से देखते आ रहे हैं गांव में कोई भी होली नहीं मनाता. होली के दिन गांव में मातम का माहौल रहता है. गांव के युवाओं द्वारा एक बार होली मनाने का प्रयास किया गया लेकिन युवा सफल नहीं हो पाए. अब युवाओं का भी होली खेलने का मन नहीं रहा.” एक महिला ने बताया कि, “मायके में होली मनाते हैं, लेकिन जब से शादी करके ससुराल आई होली नहीं मनाई. गांव में होली नहीं मानने की परंपरा आज भी जारी है।”
बैतूल जिले के साथ ही मध्यप्रदेश के ही एक अन्य गांव में भी होली नहीं खेली जाती। भिंड जिले में एक गांव कूचीपुरा स्थित है। बताया जाता है कि सदियों पहले एक संत ने किसी बात पर नाराज होकर कूचीपुरा गांव के निवासियों को यह श्राप दिया था कि अगर वो लोग होली का त्यौहार मनाएंगे, तो उनके परिवार पर कोई ना कोई विपत्ति आ जाएगी। संत के श्राप का ही नतीजा है कि आज तक इस गांव में होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है।
*उत्तराखंड के कुछ गांवों में भी नहीं मनाई जाती होली*
उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के दो गांव ‘क्विली’ और ‘कुरझान’ में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। पिछले 150 सालों में गांव वालों ने एक बार भी होली का त्यौहार नहीं मनाया है। दरअसल यहां के लोगों का यह कहना है कि गांव की देवी त्रिपुर सुंदरी को शांति पसंद है। शोर-शराबा होने पर वो नाराज हो जाती हैं। यही वजह है कि इन गांवों के निवासी कोई भी ऐसा त्यौहार नहीं मनाते हैं, जिसमें शोर-शराबा होता है। इन त्योहारों में होली भी शामिल है।
*हरियाणा के कैथल के एक गांव में भी नहीं खेली जाती होली*
हरियाणा राज्य के कैथल जिले में स्थित दुसेरपुर गांव में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। इस गांव में रहने वाले लोगों का कहना है कि सालों पहले होलिका दहन के दिन कुछ शरारती लड़कों ने समय से पहले ही होलिका दहन करना शुरू कर दिया, जिस पर एक साधु ने उन्हें रोकने का प्रयास किया। साधु के रोकने पर लड़कों ने साधु का भी मजाक उड़ाना शुरू कर दिया, जिससे क्रोधित होकर साधु ने होलिका की अग्नि में कूद कर जान दे दी और श्राप दिया कि अब कभी इस गांव में होली नहीं मनाई जाएगी। साधु के श्राप के डर से ही इस गांव में कोई होली नहीं मनाता है। तमिलनाडु के महाबलीपुरम में भी होली नहीं खेली जाती है। होली खेलने की जगह यहां लोग मासी मगम नामक धार्मिक अनुष्ठान करते हैं। यहां के लोगों का मानना है कि इस दिन स्वर्ग में मौजूद आत्माएं और देवी-देवता धरती पर आते हैं। इसलिए यहां होली के दिन रंगों से खेलने की बजाय पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।
गुजरात में भी एक ऐसा गांव है, जहां पिछले 200 साल से किसी ने होली का त्योहार नहीं मनाया है। राज्य में बनासकांठा जिले के रामसन गांव में होली खेलने पर प्रतिबंध है। दरअसल, इसके पीछे की वजह एक श्राप है। स्थानीय लोगों के बीच प्रचलित एक लोककथा की मानें, तो एक राजा की गलत हरकतों से नाराज होकर कुछ संतों ने गांव को श्राप दिया था कि अगर यहां होली मनाएगा, तो बुरा समय आ जाएगा।
झारखंड के बोकारो जिले में भी एक ऐसी गांव मौजूद है, जहां होली खेलने की पूरी तरह से मनाई है। यहां मौजूद दुर्गापुर गांव में सौ साल पहले हुई एक घटना की वजह से आज कल होली नहीं मनाई जाती है। स्थानीय मान्यता है कि इस गांव के राजा के बेटे की मौत होली के दिन हुई थी, जिसके बाद दुखी होकर राजा ने होली न मनाने का आदेश दिया था। इतना ही नहीं बाद में सद राजा की भी मौत होली पर हो गई थी। इसलिए आज भी वे राजा के इस आदेश का पालन कर रहे हैं। तमिलनाडु के धर्मपुरी क्षेत्र में बसे कुछ गांवों में भी होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। यहां के लोगों की मान्यता है कि होली के दिन कुछ लोगों ने यहां की देवी का अपमान किया था, जिसकी वजह से देवी नाराज हो गई थीं। इसके बाद से ही यहां होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है।
महाराष्ट्र राज्य के कोंकण क्षेत्र में स्थित कुछ गांवों में होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है। इसके पीछे की वजह बताई जाती है कि सालों पहले होली के दिन गांव में प्राकृतिक आपदा आई थी। इस आपदा में गांव को बहुत नुकसान हुआ था, जिसके चलते आज भी यहां के लोग इस दिन को अपशगुन के तौर पर मानते हैं और होली का त्यौहार नहीं मनाते।