सुख-दु:ख के यह चार साल, अध्यक्ष का पद ही दे रहा साथ …

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प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ को प्रदेश अध्यक्ष बने चार साल हो गए। यह चार साल प्रदेश की राजनीति में सब कुछ पाने के चार साल हैं या पाने-खोने की आंखमिचौली के। यह चार साल मुख्यमंत्री का पद मेहनत से पाने और गलतफहमी में गंवाने के हैं। या यही चार साल नेता प्रतिपक्ष का पद पाकर उससे भी छुटकारा पाने के भी हैं। इन चार साल में साथ रहा या कमलनाथ ने जिसका साथ कभी नहीं छोड़ा, तो वह है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद। इसलिए इस पद पर लगातार चार साल रहने और इसके साथ-साथ 15 माह प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने और 20 माह नेता प्रतिपक्ष बनने का रिकार्ड बनाया है इस दिग्गज नेता ने।
यदि कहा जाए तो सुखों और दुःखों संग बीता यह चार साल का सफर वास्तव में नाथ को भी बहुत कुछ सिखा गया होगा और प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष के पद से जो शुरुआत की थी, अब भी उनका साथ वही पद दे रहा है। और कहने को तो जीवनभर केंद्र की राजनीति में इतिहास बनाने वाले नाथ ने प्रदेश की राजनीति में भी इतिहास रच दिया है कि इतने कम समय में संगठन, सरकार और विपक्ष के सभी पदों की सूची में नाम दर्ज करा लिया…लेकिन फिर से मुख्यमंत्री बनने का सपना शायद उनकी कड़ी परीक्षा लेने पर उतारू हो गया है। पंद्रह महीने की सरकार मार्च 2020 में गिरी, तब उन्हें लग रहा था कि स्वतंत्रता दिवस पर फिर जनता फैसला कर देगी और झंडा वही फहराएंगे।
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पर तब तक उपचुनाव की तारीख ही तय नहीं हुई और कांग्रेस के विधायकों के इस्तीफा देकर भाजपा में जाने का दौर चलता रहा। शिवराज ने लाल परेड पर स्वतंत्रता दिवस पर झंडा भी फहराया और संकेत भी दिए कि भैया अब झंडा फहराने का सपना देखना नाथ छोड़ दें। शिवराज की भाषा में समझें तो भैया अब तो हम झंडा लगातार फहराएंगे और 2023 में फिर से सरकार भी बनाएंगे। पर नाथ ने भी राजनीति में कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं, सो उन्होंने 2023 की तैयारी शुरू कर दी हैं। कोशिश यही है कि जो खोना पड़ा, उसको वापस पाना है। पाने की इस चाह में नाथ का साथ वह पूरी टीम दे रही है, जो 2020 मार्च की आपदा के बाद कांग्रेस का दामन पूरी दृढ़ता से थामे हुए है।
वह दिन आज भी आंखों के सामने घूमता है, जब नाथ ने तत्कालीन मिंटो हॉल और वर्तमान कुशाभाऊ ठाकरे इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में सिंधिया को चुनौती दी थी कि सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं। और फिर सिंधिया सड़क पर ऐसे उतरे कि फिर उनकी गाड़ी सीधी पीएम हाउस में मोदी से मिलने के लिए ही निकली। इससे पहले शाह संग मुलाकातों का अंतिम दौर चल चुका था। नाथ की आंखों के सामने वह दृश्य नजर आ जाता होगा कि रामबाई को दिल्ली की होटल से वापस लाने में मशक्कत की जा रही है। पर उसके बाद एकमुश्त कांग्रेस विधायक कब कर्नाटक की कैद में पहुंच गए, यह देखने में नजरों ने जो दगा किया…उसका रंज तो उन्हें अब भी होगा।
और अंततः प्रदेश को अपनी उम्मीदों के बदलाव की कोशिश उस दिन ढ़ेर हो गई थी, जब 20 मार्च 2020 को नाथ ने पत्रकार वार्ता कर यह ऐलान कर दिया था कि वह अपना इस्तीफा सौंपने राजभवन जा रहे हैं। और फिर उसके पांच माह बाद अगस्त 2020 में आखिर वह नेता प्रतिपक्ष बन संवैधानिक दायित्व निभाने के अगले पायदान पर पहुंच गए थे। और अंततः अप्रैल 2022 में नाथ को स्वेच्छा या मजबूरी जो भी मानें, पर नेता प्रतिपक्ष के पद से भी विदाई लेनी ही पड़ी। उम्र का अमृत पड़ाव पार कर चुके नाथ अब नए सिरे से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बतौर फिर वही सपना करीब बीस माह पहले देख रहे हैं, जो उन्होंने चार साल पहले चुनावी साल में देखा था यानि सरकार बनाने का।
इस चार साल के सफर में नाथ ने बहुत कुछ खोया है, उसकी तुलना में पाया शायद उम्मीदों से हजार गुना कम ही है। और अब उन्हें जो लड़ाई कैडर बेस पार्टी भाजपा, उसके युवा प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा और अनुभवी चौथी पारी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से सीधे मुकाबले में लड़नी है…उसमें उनके साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ नहीं है, जिसने 2018 में युवाओं को अपने जादू से मोहित कर लिया था।
और उसके बाद भी कांग्रेस 114 पर पहुंचकर बहुमत से दो सीट कम पर ही अटक गई थी। हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ के 4 वर्ष पूर्ण होने पर उन्हें मिठाई खिलाकर बधाई दी गई है, तो नवनियुक्त नेता प्रतिपक्ष बने डॉ. गोविंद सिंह को नई जवाबदारी की बधाई दी गई…साथ ही प्रमुख नेताओं के साथ बैठकों का सिलसिला जारी है। पर संघर्ष 2018 से जितना ज्यादा है, ताकत उसकी तुलना में कम ही हुई है। 2023 दिसंबर उन पलों का साक्षी बनेगा, जब आंखों के सामने से परदा हटेगा और तस्वीर साफ हो जाएगी कि सपनों का अंत सुखद रहा या फिर सपनों को सच करने के लिए 2028 तक की मियाद बढ़ा दी गई है।