यह मौत बड़ी छलिया है, छलनी-छलनी कर सब कुछ छीन लेती है…

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जिंदगी और मौत के बीच एक झीना सा एक परदा है, जो हम मूढ़ पुरुष कभी देख ही नहीं पाते। या साफ-साफ दिखती है और हम हमेशा झुठलाते रहते हैं और अहम-वहम में मन को बहलाते रहते हैं। पद, प्रतिष्ठा और पैसे की दौड़ में कब जिंदगी खप जाती है और मौत बिना दरवाजा खटखटाए कब अपने साथ लेकर चल देती है, पता ही नहीं चलता। यह ऊलजुलूल बातें कर मेरा मंतव्य किसी के अहंकार और मूढ़ता को ठेस पहुंचाना कतई नहीं है, बल्कि अपने दिल का बोझ हल्का करना भर है। आज हुए वाकये ने मेरे दिल को बुरी तरह से झकझोर कर रख दिया है। हमारे एक साथी को यह बेरहम मौत इस तरह से छीन कर ले गई है कि दिल छलनी-छलनी है। मौत सबसे बड़ी छलिया नजर आ रही है,  सोलह कलाओं के धनी साक्षात परब्रह्म योगेश्वर श्रीकृष्ण से भी बड़ी…। मौत छलनी-छलनी कर एक पल में ही उस परिवार का सब कुछ छीन लेती है, जिस मुखिया को उठाकर वह अपने संग लेेकर जाने में पलक भी नहीं झपकाती। मगर माया का जाल इतना बेदर्द है कि मौत के ऐसे लाखों वाकयों के बाद भी माया संसार में डूबे हम सब कुछ भी सीख लेने को तैयार नहीं हो पाते।
मौत के छलावे में आज आया है हमारा एक प्रिय मित्र श्रीकांत शर्मा। वर्तमान में इंदौर में पदस्थ तहसीलदार श्रीकांत शर्मा अपने बेटे पार्थ शर्मा को एमबीबीएस में प्रवेश दिलाने की औपचारिकता पूरी करने के लिए शनिवार को दोपहर इंदौर से भोपाल पहुंचे थे। 53 वर्षीय शर्मा को ऐसी कोई स्वास्थ्यगत समस्या नहीं थी, कि मौत का मलाल न किया जाए। दोपहर दो बजकर 33 मिनट पर हमारी बात हुई, तो स्टाफ की लेटलतीफी और बाबूशाही की चीजों को टालने की आदत का हवाला देते हुए उन्होंने कहा तुम आ जाओ यार। और मैंने कहा कि परेशान मत हो मैं आता हूं। चार इमली से रवाना होकर मैं दो बजकर 54 मिनट पर गांधी मेडिकल कॉलेज में दाखिल हो गया।
श्रीकांत शर्मा को फोन लगाया तो फोन रिसीव नहीं हुआ। यानि ठीक 21 मिनट के फासले में सारी तस्वीर बदल चुकी है, मुझे इसका तनिक भी भान नहीं था। मैंने इतने में फिर पता किया कि एडमिशन की प्रक्रिया कहां संपन्न हो रही है। एक गार्ड ने बताया कि मुख्य बिल्डिंग की चौथी मंजिल पर। मैंने फिर श्रीकांत को फोन लगाया, तो फिर फोन रिसीव नहीं हुआ। खैर मैं लिफ्ट में दाखिल हो चौथी मंजिल पर पहुंचा, इससे पहले दूसरी मंजिल पर जीएमसी स्टाफ का कोई सदस्य लिफ्ट में दाखिल हुआ। उन्होंने बताया यहां सब बंद है। चौथी मंजिल से लिफ्ट में हम दोनों ग्राउंड फ्लोर पर वापस लौटे और उन्होंने जानकारी ली, तब पता चला कि सामने नीचे लाइब्रेरी बिल्डिंग में एडमिशन प्रक्रिया हो रही है।
मैं नीचे जाकर सीधे उस कमरे में पहुंच गया, जहां एडमिशन का काम हो रहा था। मैंने जानकारी ली और पार्थ शर्मा का नाम बताया तो पता चला कि पार्थ के पिता गिर गए थे, उन्हें इमरजेंसी वार्ड में ले गए हैं। मैं वहां से दो मिनट में सीधा इमरजेंसी वार्ड में था। जहां डॉक्टरों की टीम सीपीआर देकर हार्ट बीट लौटाने की जद्दोजहद में लगी थीं। पत्नी और बेटा अपनी आंखों के सामने अपने प्रिय को इस हाल में देखकर गुमसुम थे। व्यवस्था और डॉक्टरों की कोशिश पर बिना संदेह किए भी, मैंने चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग को फोन लगाया। फोन रिसीव हुआ और बात हुई। मैंने इमरजेंसी की सूचना दी, तो तत्काल उन्होंने नाम पूछा और कहां मैं बात करता हूं। अगले कुछ पल में डीन वार्ड में हमारे सामने थे। इस बीच कलेक्टर महोदय को मैं दो बार डायल कर चुका था, जो रिसीव नहीं हुआ था।
उनका फोन आया तो डीन हमारे सामने खड़े थे। मेरे फोन से ही उन्होंने डीन से बात की और बेहतर इलाज के साथ ही उनके हैंड पर हर सहयोग की बात भी कही। इतने समय में ही अधीक्षक डॉ. मरावी भी वहां पहुंच गए। और पारिवारिक मित्र डॉ. चौधरी भी वहां उपस्थित थे। पर हर कोशिश हार गई, क्योंकि मौत तो अपना काम बहुत पहले ही कर चुकी थी। करीब 45 मिनट सीपीआर देने और हर उपाय करने के बाद डॉ. मरावी ने साफ कर दिया कि डॉक्टरों के हाथ में अब कुछ भी नहीं है। उन्होंने इसे मैसिव कार्डिएक अरेस्ट होना बताया और एक साल पहले ही मेदांता अस्पताल के सामने अपने सगे भाई की मौत इसी तरह होना बताई। और बेबसी भी जताई कि वह और उनकी पत्नी डॉक्टर हैं और मेदांता अस्पताल के सामने से अस्पताल में दाखिल होने में दो मिनट का समय भी नहीं लगा था…तब भी वह भाई को नहीं बचा पाए थे। संदेश यही था कि मौत हो चुकी है, इस सत्य को अब झुठलाया नहीं जा सकता।
हमसे आखिरी बार बात करने के 21 मिनट के बीच मैं मौत ने हमारे प्रिय मित्र श्रीकांत शर्मा को हमसे हमेशा-हमेशा के लिए छीन लिया था। बेटा का बांड जमा कर पाते, इससे पहले ही मौत ने श्रीकांत से बांड भरवा लिया था कि अब तुम पीछे लौटकर नहीं देखोगे। इलाज मौजूद था, डॉक्टरों की टीम ने हरसंभव कोशिश की, लेकिन मौत जीत गई और सब हार गए। श्रीकांत के सामने तहसीलदारी की नौकरी में ऐसे हजारों वाकये हुए होंगे, जब लॉ एंड आर्डर के लिए तनाव की पराकाष्ठा से सामना हुआ होगा। डांट-डपट और आक्रोश जताना तो आम आदत सी रही होगी।
पर मौत ने शनिवार को इसे ही बहाना बनाकर झीना परदा हटाकर जिस मंच पर जिंदगी लिखा था, वहां मौत लिख दिया। पत्नी और बच्चे के हिस्से में बस आघात था, डॉक्टरों से मिन्नत थी कि एक कोशिश और कर लो साहब…शायद मौत रहम कर दे…! और यह मिन्नत एक बार तो सब जानते-समझते हुए मैंने भी की थी। क्या करता प्रिय दोस्त था वह और सामने बिलखते परिजन। आंसुओं की धारा मेरी आंखों से भी बही थी। पर सबको छलनी-छलनी कर सब कुछ छीन कर ले गई मौत असीम चुप्पी साधे मानो वहीं पास खड़ी यही कहे जा रही थी कि वही सत्य है, बस वही सत्य है…बाकी सब मिथ्या है। समझना चाहो, तो समझ लो वरना एक दिन मैं महाछलिया बनकर जिंदगी और मौत का झीना परदा हटाऊंगी और खबर भी नहीं होने दूंगी। अलविदा मेरे दोस्त…। तुम बेहतरीन दोस्त थे, अच्छे व्यक्ति थे…शायद इसीलिए ईश्वर ने तुम्हें बहुत जल्दी बुला लिया है। जिंदगी और मौत के बीच का यह झीना सा एक परदा हमारे सामने से इस तरह उठ जाएगा, मैंने भी सोचा नहीं था… क्योंकि मूढ़ता ने मुझे भी जकड़ रखा था।