
भागवत का यह संदेश मोदी और भाजपा शासित राज्य सरकारों के लिए ही है…
कौशल किशोर चतुर्वेदी
भारत जब अपनी आजादी के 78 साल पूरे कर रहा है ऐसे में हाल ही में इंदौर आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर एक बड़ा संदेश दिया था। भागवत ने शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यावसायीकरण पर गहरी चिंता जताई थी। और यह साझा किया था कि शिक्षा और स्वास्थ्य आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गए हैं। मोहन भागवत कैंसर केयर सेंटर के उद्घाटन के अवसर पर इस बड़ी चिंता में डूबे थे। चूंकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया होने के नाते भागवत बोल रहे थे तो स्वाभाविक है कि उनकी चिंता को दूर करने का मूल दायित्व वर्तमान में केंद्र सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी का है। और मोदी के अलावा भाजपा शासित राज्य सरकारों के मुखिया भी भागवत की नसीहत को या यूं कहें कि चिंता को गंभीरता से लेते हुए शिक्षा और स्वास्थ्य को आम आदमी की पहुंच के भीतर लाने के सारे प्रयास कर सकते हैं।
शिक्षा की जहां तक बात है तो इसके व्यवसायीकरण की शुरुआत प्राथमिक शिक्षा से ही हो रही है। और मध्य प्रदेश में जबलपुर जिले में हायर सेकेंडरी स्कूल तक सक्रिय शिक्षा माफिया पर यानी नियम-कानून को ताक पर रखकर धनोपाजर्न करने वाले और शिक्षा को आम आदमी की पहुंच से बाहर करने वाले निजी संस्थाओं के मालिक और प्रबंधकों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई हुई थी। और इस कठोर कार्यवाही से शिक्षा को आम आदमी की पहुंच के भीतर लाने वाला प्रभावकारी असर भी सामने आया था। वास्तव में शिक्षा माफियाओं के खिलाफ कठोर कार्यवाही का यह ‘जबलपुर मॉडल’ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख डॉ मोहन भागवत की चिंता का नियम-कानून सम्मत समाधान है। और यह मध्य प्रदेश के लिए गौरव की बात है कि दिल्ली सरकार ने ‘जबलपुर मॉडल’ की तर्ज पर कार्रवाई करते हुए स्कूलों की फीस वृद्धि पर नियंत्रण के लिए एक बिल पारित किया है। इसे सीधे तौर पर शिक्षा के व्यवसायीकरण पर रोक के रूप में देखा जा सकता है। और एक बार फिर इस बात पर चिंता जताई जा सकती है कि मध्य प्रदेश में जबलपुर मॉडल की तर्ज पर अन्य जिलों में कार्यवाही क्यों नहीं हो पाई? जबकि जबलपुर में हुई कार्यवाही भी मध्य प्रदेश के मुखिया डॉ. मोहन यादव की इच्छा के अनुरूप ही हुई थी।
जिस तरह शिक्षा के व्यवसायीकरण हुआ है और सरकारी स्कूलों में अव्यवस्थाओं और शिक्षा की गुणवत्ता पर सवालिया निशानों के चलते मोहभंग की स्थिति बनी है, उसी तरह स्वास्थ्य संस्थाओं के हालात भी हैं। सरकारी स्वास्थ्य संस्थाओं में भी गरीब आदमी मजबूरी में इलाज करवा रहा है। महिला मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर, कुपोषण के आंकड़े स्वास्थ्य के क्षेत्र में लापरवाही सामने लाते हैं और स्वास्थ्य विभाग की सही तस्वीर सामने रख देते हैं।
मूल बात यही है कि संघ की तरफ से ऐसी बातें यूं ही नहीं की जातीं। संघ प्रमुख अगर कुछ कह रहे हैं तो उसका खास राजनीतिक और सामाजिक निहितार्थ है। हाल ही में जब उन्होंने 75 वर्ष की आयु के बाद राजनीति में दूसरों को मौका देने की बात सहज रूप से कही थी, तब भी उसकी चर्चा पूरे देश में हुई थी। ऐसे में शिक्षा स्वास्थ्य को लेकर उनकी चिंता के भी गूढ़ निहितार्थ हैं।संघ प्रमुख मोहन भागवत ने बताया था कि हाल ही में उन्होंने एक रिपोर्ट पढ़ी थी, जिसमें बताया गया है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था अब ट्रिलियन-डॉलर का बिजनेस बन चुकी है। और चिंता जताई थी कि जब कोई क्षेत्र इतना बड़ा कारोबार बन जाता है, तो वो अपने आप आम आदमी की पहुंच से बाहर हो जाता है।
मोहन भागवत का यह कहना कि आम आदमी इसके लिए अपना घर बेच देगा, लेकिन अच्छी शिक्षा में अपने लड़कों को भेजेगा। अपना घर बेच देगा लेकिन अच्छी जगह अपने इलाज का प्रबंध करेगा। दुर्भाग्य से ये दोनों आज सामान्य व्यक्ति के पहुंच से बाहर हैं। उसके आर्थिक सामर्थ्य के बाहर है। ऐसे में समाज की वास्तविक स्थिति का चित्रण करने वाले आरएसएस प्रमुख डॉ मोहन भागवत का सीधा संदेश केंद्र की भाजपा सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों को ही है। जिस तरह अनदेखी के चलते अपराधी और दूसरे माफिया देश और समाज में सक्रिय हुए हैं, उसी तरह शिक्षा और स्वास्थ्य माफियाओं ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है। शिक्षा और स्वास्थ्य के व्यवसायीकरण के लिए भी सरकारें और सरकारी व्यवस्थाओं में बदहाली और भ्रष्टाचार ही जिम्मेदार हैं। तो भागवत का संदेश वर्तमान में देश पर शासन कर रही भाजपा सरकारों के लिए ही है… चाहे भागवत की बात को सुना जाए या फिर उसे अनसुना कर भारत की आजादी का उत्सव मनाया जाए…।





