आंखों में समाया रहेगा तुम्हारा यह गुलाबी रंग…
शीत ऋतु की शुरुआत का बड़ा मजेदार मौसम होता है। शाम के समय जब हल्की सर्द हवाएं चलती हैं तो एक शॉल या फिर हाफ स्वेटर पहनकर निकलना मन को भाता है। सुबह की चाय का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है। इसी मौसम को गुलाबी सर्दी कहा जाता है। गुलाबी शब्द का अभिप्राय सुहावना, आनंददायक, अच्छा लगने वाला, गुलाब जल की तरह सुगंधित आदि खुशनुमा अनुभूति की तरह लिया जाता है। गुलाबी रंग कोमलता का प्रतीक माना जाता है। गुलाबी रंग प्रेम का प्रतीक माना गया है। दांपत्य जीवन में इसे सौभाग्य का प्रतीक माना गया है। इस रंग को ध्यान से देखने पर मन में कोमल भावनाओं का संचार होता है। यह रंग आंखों को शीतलता प्रदान करता है और वातावरण में ऊर्जा का संचार करता है। गुलाबी रंग खुशी का प्रतीक होता है और गुलाबी रंग उत्सव को दर्शाता है। यानि कि जहां गुलाबी शब्द आ जाए, वहां मन हवा में तैरने सा लगता है। और प्रेयसी अगर गुलाबी परिधान में दिख जाए तो समझो कि प्रेमी मंगल ग्रह पर ही पहुंच जाता है।
यह गुलाबी शब्द तो मानो मन को मैना बना देता है। हां वह मैना जो ऋतुभेद के अनुसार अपना रंग बदलती है। गर्मी के दिनों में यह पहाड़ों में चली जाती है। यह मध्य एशिया और यूरोप में भी पाई जाती है और प्रायः बड़े-बड़े झुंडों में रहती है। यह घोंसला नहीं बनाती बल्कि थोड़ी घास बिछाकर उसी पर रहती है। और गुलाबी मौसम तन को खास तौर पर गालों को गुलाबी-गुलाबी सा बना देता है। और जब गरबे की थाप पर या होली के गीतों पर युवा थिरकने लगें तो कोई भी मौसम गुलाबी हो जाती है। जयपुर को तो गुलाबी नगरी कहा ही जाता है। वैसे मुनीर नियाज़ी का एक शेर है कि “नींद का हल्का गुलाबी सा ख़ुमार आँखों में था, यूँ लगा जैसे वो शब को देर तक सोया नहीं…।
खुमार के कई मायने हैं। जैसे नशे के उतार की अवस्था, जिसमें हलका सिरदर्द और हलकी ऐंठन होती है। शरीर में नशे की थकावट, वह मस्ती जो नशा उतरने के समय शेष रह जाती है। वह शिथिलता जो रात भर जागने से होती है। नशा, मद, उन्माद, सुरूर जैसे मतलब भी खुमार के लगाए जाते हैं। नींद ना आने का प्रभाव जो कम सोने या न सोने के कारण आँखों से प्रकट होता है, कच्ची नींद में उठने पर आँखों और सिर का भारीपन भी खुमार शब्द में समाहित हो जाता है। तो आध्यात्मिक या ईश्वरीय प्रेम का नशा या मद भी खुमार है। और जब यह खुमार गुलाबी हो तो इन सभी शब्दों के मायने मन को हजार गुना खुशनुमा रंग में सराबोर कर देते हैं।
गुलाबी शब्द के प्रति यह अथाह प्रेम आज हमारे मन में हिलोरें मार रहा है। हमारी आंखों में यह गुलाबी रंग हमेशा-हमेशा के लिए जैसे समा गया है। सुकून से भरने वाला, दिल को प्रेम से भरने वाला, मस्तिष्क को शांत और शीतल करने वाला और जेब में या पर्स में रहकर मालिक को मालामाल होने का अहसास कराने वाला यह गुलाबी दोस्त और कोई नहीं बल्कि दो हजार का वह गुलाबी नोट है, जो चार माह बाद अतीत बन जाएगा। 30 सितंबर को यह आखिरी सांस लेकर हमें अलविदा कहकर आंखों से ओझल हो जाएगा। और इस गुलाबी दोस्त ने फिलहाल तो अपने उन मालिकों की नींद उड़ाई है, जिन्होंने इसे नाजायज तौर पर अपना बंदी बना रखा था। हो सकता है कि इसकी विदाई की खबर से कई को ऐसा लग रहा हो कि अब तो दुनिया में उनके लिए कुछ भी नहीं बचा और बेहतर है कि इस गुलाबी दोस्त के संग ही इस फ़ानी दुनिया से विदाई ले ली जाए। गुलाबी दोस्त के बदले गुलाबी अनुभूति मिलने को उसी ने नामुमकिन कर दिया है, जिसका पर्याय माना जाता है कि वह है तो सब कुछ मुमकिन है। नजर इनायत करें तो केवल दस नोट ही एक दफा में बदले जा सकते हैं। अब यह भी कोई बात हुई। पीड़ितों का दिल गुलाबी से फक्क सफेद पड़ गया होगा इससे और इस गुलाबी दोस्त के भंडार वालों को तो समझ नहीं आ रहा है कि कब गुलाबी दिल धड़कना बंद कर दे और कब जमीं में दफन हो जाएं या कब पंचतत्व में विलीन हो जाए यह माटी का तन।
हिंदी साहित्य में गुलाबी शब्द को कई स्थानों पर प्रयोग किया जाता है। मूल रूप से गुलाबी एक रंग का नाम है और प्रकृति में कारनेशन पुष्प के रंग को सबसे पहली बार गुलाबी कहा गया। तो थोड़ा या कम, हलका, सुहावना, आनंददायक, अच्छा लगने वाला जिसमें तीव्रता न हो, जैसे: गुलाबी मौसम, गुलाबी जाड़ा, गुलाबी नशा और अब यह गुलाबी दो हजार का नोट। पर फिर वही बात कि यह गुलाबी नोट अब बहुतों के दिल पर बहुत भारी बोझ बन गया है। अर्थ के बिल्कुल उलट हो गए हैं यहां गुलाबी रंग के मायने। अरे अभी बेचारे इस प्यारे-प्यारे गुलाबी नोट की उम्र ही क्या थी जनाब। सात साल भी तो नहीं जी पाया यह मन को सुकून देने वाला गुलाबी दोस्त। अब तो गुलाबी होकर भी यह मनहूस बन नजरों को खटक रहा है उन पागल रईसों को, जिन्होंने इसका बाजार से मानो अपहरण ही कर लिया है। तो उन मक्कारों की भी क्या कहें जो हूबहू इस गुलाबी दोस्त जैसे नकली माल को बाजार में खपाने में माहिर हो गए थे। यह “रईस पागल” और “मक्कार माहिर” दोनों ही हम सबके इस गुलाबी दोस्त के कट्टर दुश्मन साबित हुए हैं। इनके और ठेठ शब्द ढूंढें तो इन्हें “कालेधन के माफिया” और “जालसाज” भी कह सकते हैं। और अलग-अलग सरकार जालसाजी और काले धन पर अंकुश लगाने के लिए हमेशा से यही कहर तो बरपाती रहीं हैं। मोदी ने तो अपने राज में सबसे पहले नोटबंदी की घोषणा 8 नवम्बर 2016 को रात आठ बजे की थी। 500 और 1000 के नोट बंद होने से तब तो मानो हड़कंप मच गया था। और पूरा देश ही लाइन में लग गया था और लाखों मजदूरों को लाइन में लगने का रोजगार मिल गया था सो अलग। पर तब भी इतनी बंदिशें लगीं थीं, कि इंसान पागल हो गए थे और नेता, व्यवसायी तो महापागल ही हो गए थे। उस दौर में सैकड़ों व्यापारी और उनके व्यापार तो घुट-घुट कर अकाल मौत मर गए थे। कई दल भी दलदल में समा गए थे और फिर उबर ही नहीं पाए। तब तो मानो हाहाकार ही मच गया था। लग रहा था कि सब चौपट हो गया है। पर यह देश है वीर जवानों का और छह साल में ही फिर सब संवर गए। और दो हजार का गुलाबी नोट बाजार में आने के बाद तो कई निशंक काले रंग के जीव भी ऐसे गुलाबी हो गए कि समझ नहीं आता है कि क्या जादू हो गया। लगता है अब वह जीव वापस काले दिखने लगेंगे या दिखना ही बंद हो जाएंगे… नहीं पता। पर लग तो ऐसा ही रहा है कि 1000 की बंद करके 2000 की गुलाबी गजक बाजार में इसीलिए लाई गई थी कि जब भी कूटी जाएगी तो रईस पागलों और मक्कार माहिरों की ही कुटेगी और पूरे आसमां में बिखरा गुलाबी रंग अच्छे दिन आने की छटा बिखेरता रहेगा। और अब जिनकी कुटनी थी, उनकी खूब मस्त तरीके से गजक कुट गई है। पर उन आमजन के मन और आंखों में तुम्हारी गुलाबी झलक हमेशा जिंदा रहेगी, जिन्हें तुम कभी-कभी ही मिले थे गुलाबी दोस्त। उन्हें याद रहेगा तुम्हारा कुछ पलों का संग और उनकी आंखों में हमेशा समाया रहेगा तुम्हारा यह गुलाबी रंग…।