यह दुनिया एक रंगमंच है,बस यही सच है…

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यह दुनिया एक रंगमंच है,बस यही सच है...
रविवार, 11 सितंबर 2022 की दोपहर से शाम के बीच मिली दो खबरों ने एक बार फिर साबित किया है कि यह दुनिया एक रंगमंच है। कलाकार बतौर हम यहां की यात्रा करते हैं और अपनी भूमिका पूरी होने पर पर्दे से ओझल हो जाते हैं। कोई नायक है, कोई खलनायक सा दिखता है, कोई नायिका की भूमिका में है तो कोई माता-पिता, नाना-नानी सरीखी बुजुर्गों की भूमिका में है। कोई अनाथ है तो कोई बेसहारा, कोई अमीर है तो कोई गरीब की भूमिका में है। बस सब आ रहे हैं और फिर चले जा रहे हैं अपना अभिनय करते हुए। किसी की भूमिका छोटी है तो किसी की बड़ी। पर यह फैसला करने वाला पर्दे पर नजर नहीं आता। भूमिकाएं ही ऐसी गढ़ी जाती हैं कि किसी की मौत पर तालियां बजती हैं, तो किसी की मौत सबको रुला कर गम में डुबो देती है। किसी का जीवन आध्यात्म और धार्मिक विचारधारा में पार हो जाता है, तो कोई पार्टी विचारधारा को समर्पित हो विदा ले लेता है। हां… आज हमारी आंखें मध्यप्रदेश से जुड़ी ऐसे ही दो अलग-अलग किरदारों के विदा लेने से नम हैं। बस यही समझ में आ रहा है कि यहां तो मेहमान बनकर आए हैं, स्थायी ठिकाना तो उसी जहां में है…जहां पर फिल्म का डायरेक्टर बसता है। जिसकी फिल्म का सेट यह पूरी दुनिया और कलाकार हम सब और लाखों जीव-जन्तु हैं, प्रकृति के अलग-अलग रंग हैं जो फिल्म को सर्वश्रेष्ठ बना देते हैं। यहां सस्पेंस भी है, रोमांस भी है, एक्शन भी है और इमोशंस भी है। यहां कॉमेडी भी है, सेड मोमेंट्स भी हैं, यहां एक्सीडेंट्स भी हैं और अलग-अलग परफोर्मेंस भी हैं। वफा है तो बेवफाई है, सुख है तो दुख है, दिन है तो रात है, हंसी है तो उदासी भी है। करुणा है तो क्रोध है, दया है तो बेरहमी है, जवानी है तो बुढ़ापा है और आशा है तो निराशा भी है। वो क्या-क्या लिखें, ऊपर वाले की फिल्म ही इतनी अलहदा है कि जिसे न तो शब्दों में बयां किया जा सकता है और न कागजों में उकेरा जा सकता है। जिसे पूरा देख पाना और पूरी तरह से समझ पाना भी किसी के वश में नहीं है। जिसके हिस्से में जो अभिनय आता है, वह उसे पूरी तन्मयता से अदा कर विदा हो जाता है। बाकी अपने अभिनय में तल्लीन रहते हैं।

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धर्म के पर्याय, क्रांतिकारी संत, आध्यात्म के पुरोधा, सनातनी परंपरा के दो-दो मठों द्वारिका और ज्योतिर्मठ पीठ के अधीश्वर, ज्ञान के सागर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के दर्शन कर यही अनुभूति होती थी कि दुनिया में अगर पूर्णता है तो स्वरूपानंद सरस्वती जी की छत्र-छाया में ही है। ऐसा लगता नहीं था कि वह शतायु से पहले दुनिया से विदा लेंगे। पर सितंबर 11-22 का दिन इस महान आत्मा के विदा होने का साक्षी बन गया। दो-दो पीठों के अधीश्वर महान संत ने अंतिम सांस ली तो खुद स्थापित किए गए झोतेश्वर आश्रम में रहकर। यह स्थान उन्हें सर्वाधिक प्रिय था। और देह त्यागना या देह में प्रकट भाव में रहना जैसे विषय उन्हें न तो सताते थे और न ही लुभाते थे। जो बात दिल में आई, वह जुबां पर आ गई। विवाद कितने हों या समर्थन मिले या विरोध हो, जैसे शब्दों से वह परे थे। मध्यप्रदेश में जन्मे और मध्यप्रदेश से विदा हुए। यह मध्यप्रदेश की पावन धरा का सौभाग्य है। हम सबका अहोभाग्य है। जस की तस धर दीन्हीं चदरिया…की तरह स्वामी स्वरूपानंद जी का जीवन हमें प्रेरणा देता रहेगा। उनकी वाणी का प्रसाद जिसने ग्रहण किया, वह तृप्त हुए बिना नहीं रहा। यह अनुभूति की जा सकती है कि ऐसी महान आत्मा कभी विदा नहीं होती और उनका प्रेम, स्नेह और आशीर्वाद सुगंध बनकर हवा में रहकर सांसों के जरिए शरीरों की ऊर्जा का अक्षय स्रोत बना रहता है। आंखें नम हैं इस महान आत्मा के अनंत में विलीन होने पर।

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तो आंखें नम हैं हमारे उस समर्पित किरदार के जाने से भी, जो पार्टी विचारधारा को समर्पित था। सहज था, सरल था और स्पष्टवादिता का धनी था। जिसने अहंकार से खुद को अछूता रखा था। जिसके पास शब्द थे, सोच थी और विशेष दृष्टि भी थी। सितंबर, 11-22 ऐसे ही सबके प्रिय उमेश शर्मा के जाने की सूचना ने झकझोर कर रख दिया। दोपहर में ही उनकी सोशल मीडिया पर पोस्ट पढ़कर ऐसा लगा था कि लिखने की पूर्णता है उनका लेखन। और अनायास ही उनसे बात करने का मन भी किया। पर सोचा यही कि मिलकर बात करेंगे और कहेंगे भी कि आपकी लेखनी, शब्दों का चयन बेजोड़ है। पर शाम होते-होते यह खबर दिल तोड़कर चली गई कि उमेश शर्मा अब इस दुनिया में नहीं हैं। जिक्र करें तो यह पोस्ट प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा की शिवपुरी में रात एक बजे संगठन की बैठक के संदर्भ में है। ‘हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे, संगठन का भाव भरते जा रहे। शिवपुरी जिला भाजपा की रात एक बजे प्रारंभ हुई बैठक केवल एक प्रेरक प्रसंग तक सीमित रखकर आकलित नहीं की जा सकती है। इस बैठक में जो ध्वनित हो रहा है वह है ऊर्जा से ओतप्रोत कार्यकर्ता का मनोबल, इसमें जो गूंज है वह आगामी लक्ष्य सिद्ध संकल्प की है, जो प्रवाहमान है वह संगठन का परिवार भाव है और जो प्राप्त है वह संकेत है कि मध्यप्रदेश में सरकार का शिव संकल्प,संगठन का विष्णु तत्व,और कार्यपद्धति का हित, कार्य का आनंद, कार्यकर्ताओं के दिलों दिमाग तक आत्मीय स्पर्श,के साथ पंहुचाने में सफल रहा है।’ वाह उमेश जी। तो डॉ. हितेष वाजपेयी ने उनके बारे में जिक्र किया है… मुरलीधर राव जी ने मुक्त कंठ से तारीफ करते अंतिम बैठक में कहा था कि “उमेश जी मेरे साथ दशकों पहले वो स्पीकर थे जिनसे हमने भाषण सीखा था” ! उमेश जी की अपनी तारीफ सुनकर आंखे भर आईं थी। निश्चित तौर पर उमेश जी की जगह कोई दूसरा नहीं ले सकता।
विदा होने वाली दोनों शख्सियतों को सादर नमन। और शाष्टांग प्रणाम उस अलौकिक सत्ता को जो निर्देशक बन रंगमंच के कलाकारों को अभिनय करने का अवसर दे रहा है। लय, सुर, ताल, गीत, संगीत, राग और जीवन के अलग-अलग रंगों की फाग सब तो हैं यहां। कभी जीवन का रंग बैंगनी है, नीला है, आसमानी है, हरा है, पीला है, नारंगी है और लाल है…तो कभी श्वेत है और कभी श्याम है। इस दुनिया में बाकी सब भले ही झूठ हो, मिथ्या हो…लेकिन यह दुनिया एक रंगमंच है,बस यही सच है…। हां यही सच है…। हां यही सच है…।