आज का विचार : एक अंधे व्यक्ति ने दिया यह उजियारा “औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय“
आज एक मित्र ने सोशल मिडिया पर एक प्रेरक प्रसंग भेजा जिसने भी पढ़ा उसने अपनी भाषा को तराशा आप भी जरुर पढ़िए .
एक समय की बात है एक राजा जंगल में भ्रमण के लिए निकले। भ्रमण करते-करते राजा को प्यास लगी, पानी के लिए इधर-उधर नजर दौड़ने के बाद उन्हें एक झोपडी दिखाई दी। जहां एक अँधा बुजुर्ग आदमी बैठा हुआ था और उसके पास ही जल से भरा हुआ एक मटका रखा हुआ था।
राजा ने सिपाहियों को आदेश दिया की वे उस व्यक्ति के पास जाये और एक लोटा जल मांग कर लाएं। सिपाही उस व्यक्ति के पास चले गए और उस व्यक्ति से बोलने लगे – ऐ अन्धे एक लोटा पानी दे दे।
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अँधा व्यक्ति तुरंत अकड़ कर बोला – चल-चल यहां से निकल, तेरे जैसे सिपाहियों से मै नहीं डरता, तुम लोगों को एक बून्द भी पानी नहीं दूंगा मैं। सिपाही निराश होकर लौट आये। उसके बाद राजा ने सेनापति को पानी लाने के लिए भेजा।
सेनापति उस व्यक्ति के पास जाकर बोला – ऐ अन्धे, पानी दे दे, तुझे बहुत सारे रकम इनाम में मिलेगा। अन्धा व्यक्ति फिर अकड़ कर बोला – पहले वाले का यह सरदार मालूम पड़ता है। अन्धे व्यक्ति ने गुस्से से कहा चल यहाँ से निकल, नहीं मिलेगा पानी तुझे। इस तरह सेनापति को भी खाली हाँथ वापस लौटना पड़ा
सेनापति को खाली हाँथ वापस आता देख राजा स्वय चल पड़े उस व्यक्ति के पास पानी मांगने। फिर उस वृद्धजन के पास पहुंचकर सबसे पहले उसे नमस्कार किया और कहा – प्यास से गला सुख रहा है बाबा, एक लोटा पानी दे सकें तो आपकी बड़ी कृपा होगी।
अन्धे बुजुर्ग ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बिठाया और कहा ” आप जैसे श्रेष्ट व्यक्ति का राजा जैसे आदर है ” एक लोटा जल क्या मेरा सब कुछ आपकी सेवा में हाजिर है, कोई और सेवा हो तो बताइये।
राजा ने सीतल जल से अपनी प्यास बुझाई फिर नम्र वाणी से पूछा की आपको तो दिखाई नहीं पड़ रहा फिर आपने जल मांगने आये लोगों को कैसे पहचान लिया।
उस अन्धे व्यक्ति ने कहा – वाणी से हर व्यक्ति के स्तर का पता चलता है।वाणी में आध्यात्मिक और भौतिक, दोनों प्रकार के ऐश्वर्य हैं।भगवद् गीता में तीन प्रकार के तत्वों की चर्चा की गई है- शारीरिक तप, मानसिक तप तथा वाचिक तप शामिल हैं। वाचिक तप का आशय वाणी के प्रवाह से है मनुष्य का व्यक्तित्व व प्रभाव झलकता है उसकी वाणी से। जिस तरह संगीत वाद्ययंत्र की पहचान उसके स्वर से होती है, उसी तरह व्यक्ति की पहचान उसकी वाणी से होती है। बोलने का अंदाज, वाणी में झलकता भाव सुनने वाले अयंत्र व्यक्तियों पर अपना प्रभाव डालता है।संत कबीर ने कहा भी है कि- ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोय। औरन को शीतल करे, आपहु शीतल होय। अर्थात मनुष्य को ऐसी वाणी बोलनी चाहिए, जिससे मन में भरे राग, द्वेष मिट जाएं। जो दूसरों को शीतलता प्रदान करे और खुद को भी शीतलता प्रदान करे।इंटरनेट से साभार