आज का विचार : मां की आखरी शिकायत
मित्रों आज का विचार शृंखला आपको पसंद आ रही है, यह इस बात का प्रमाण है कि हम सभी चाहते हैं अच्छे से अच्छे प्रेरक प्रसंग, प्रेरक कथाएं और मानसिक खुराक . चाहते हैं कि बदले हुए रास्तों पर हम सही और गलत को पहचान सकें, जीवन मूल्यों की रक्षा कर सकें और अपने मानवीय व्यवहार को भटकने से बचा पाएँ. तो लीजिये आज एक सोशल मीडिया से ही प्रेरक घटना लेकर आए हैं जो कहती है कि -भूलिए मत सुई के पीछे धागा लगा होता है और जैसा करते हो वह आगे आप पर भी लागू हो सकता है, तो आइए देखें क्या है प्रसंग –स्वाति
“मां की आखरी शिकायत”
अपने पिता की मौत के बाद बेटे ने अपनी मां को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया और कभी कबार उससे मिलने चला जाता था।
एक शाम को वृद्धाश्रम से फोन आया कि तुम्हारी माताजी की तबीयत बहुत खराब है। एक बार आकर उससे मिल लो।
बेटा वृद्धाश्रम आया तो देखा कि मां बहुत बीमार थी और शायद वो अपनी जिंदगी के आखरी पड़ाव पर थी।
बेटे ने पूछा, “मां मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?”
मां ने एक गहरी सांस ली और जवाब दिया, “बेटा मेहरबानी करके वृद्धाश्रम में कुछ पंखे लगवा देना, और हो सके तो यहाँ एक फ्रिज भी रखवा देना ताकि यहां के लोगों का खाना खराब ना हो। इसलिए कि यहाँ कई बार मुझे बिना खाए ही सोना पड़ा है।”
बेटे ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, आप तो इस आश्रम में लंबे समय तक रही लेकिन मुझे ये शिकायतें पहले कभी नहीं की और आज जब आप ये दुनिया छोड़कर जा रही हो तो इस आश्रम के लिए इतना प्रेम क्यों?
मां ने जवाब दिया- “बेटा, वो इसलिए कि मैंने तो यहाँ रहते हुए गर्मी, भूख, दर्द सब कुछ बर्दाश्त कर लिया। लेकिन जब तुम्हारी औलाद तुम्हें यहाँ भेजेगी तो मुझे डर है कि तुम यह सब नहीं सह पाओगे।”
इसके बाद मां ने ऐसे कई किस्सों के बारे में बातें की जब उसने अपने बेटे के लिए धूप-छाँव नहीं देखी थी। एक मां की हैसियत से अपनी पूरी जिम्मेदारी निभाई थी। बस इतना कहते कहते अचानक मां की साँसें थम गईं।
बेटे की आँखों में आँसू थे और हाथ में अपनी मां का हाथ। बस अब सब कुछ खत्म हो गया। उसके पास अब कुछ बचा नहीं था।