राखी उन्हें बांधे जो असुरक्षित हैं 

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राखी उन्हें बांधे जो असुरक्षित हैं 

रक्षाबंधन है तो तय है कि राखियां बाँधी जाएँगी ,लेकिन राखी किसे बाँधी जाये इस पर इस बार पुनर्विचार की जरूरत है | बहनें अपने भाइयों को राखी बांधकर अपनी रक्षा का वचन लेती हैं, साथ ही भाई के जीवन की रक्षा का सूत्र भी देतीं हैं | भाई की रक्षा कौन करता है ? यही रेशमी धागा | इस रेशमी धागे की ताकत आज भी बरकरार है | युग परिवर्तन के साथ रक्षाबंधन का स्वरूप अवश्य बदला है किन्तु भावना नहीं |

इस बार रक्षाबंधन में भद्रा आड़े आ गयी | हर शुभ काम में व्यवधान आता ही है | बेचारी बहनें पंचांग देख-देखकर भ्रमित हैं कि कब राखी बांधें और कब नहीं ? आखिर शुभ और अशुभ का सवाल है | लेकिन मै कहता हूँ कि जिस ज्योतिष में लोग मुहूर्त को लेकर एकराय न हों उस ज्योतिष पर यकीन ही क्यों करना ? आपका मन जब शुद्ध हो,जब आपके पास अवकाश हो तब राखी बाँध लीजिये ,कुछ नहीं होगा |

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राखी ने हर युग में रिश्तों को नयी परिभाषा और ऊंचाई दी है \ इस त्यौहार को लेकर किस्सों ,किंवदंतियों की कमी नहीं है | हर सूबे में अलग-अलग कहानियां हैं | किसी ने राखी कि जरिये किसी को जीवनदान दिया तो किसी ने नवजीवन पाया और तो और सियासत कि काम भी राखी काम आयी | मुगलकाल में अनेक किस्से हैं राखी के.आप उन्हें खोजिये और पढ़िए | मै उन्हें दोहराने वाला नहीं हूँ | मै तो आज आप सबसे राखी कि लिए कलाइयों कि अलावा भी कुछ अमूर्त पात्र तलाशने का आग्रह करने जा रहा हूँ |

दरअसल आज भाई-बहन कि रिश्ते उतने संकट में नहीं हैं जितना की सामाजिक सौहार्द संकट में है | इस संकट की जननी है सियासत | ऐसे में यदि आप सामजिक सौहार्द कि लिए रेशमी धागों का इस्तेमाल करने का दुस्साहस कर सकते हैं तो ये सोने में सुहागा होगा | सोने में जब तक सुहागा नहीं लगता तब तक उसकी चमक दोगुना नहीं होती | सामजिक सौहार्द की रक्षा राजनीतिक दलों का काम नहीं रह गया है,वे तो इसे समाप्त करने पर लगे हैं | ऐसे में कोई तो हो जो इसकी रक्षा कि लिए पहल करे | उन्हें राखी बांधे जो इस सामाजिक सौहार्द की रक्षा कि लिए कुछ कर रहे हैं या कुछ करना चाहते हैं |

आप यदि सचमुच राखी बाँधना चाहते हैं तो अपने राष्ट्रीय ध्वज कि स्तम्भ को राखी बांधिए | आजादी कि बाद बीते 75 साल में ये पहला मौक़ा है जब राष्ट्रध्वज की अस्मिता खतरे में है | घर-घर तिरंगा फहराने कि लिए जिस तरीके से राष्ट्रध्वजों का बाजार खड़ा किया गया है उसे देखकर लगता है कि आज सबसे ज्यादा खतरा इसी राष्ट्र ध्वज को है | आज तिरंगा किस रूप में आपके सामने है,आप देख ही रहे हैं | गरीबों को राशन की दूकान से राशन तब मिलेगा जब वे तिरंगा खरीद लेंगे भले ही उनकी हैसियत हो या न हो ?

तिरंगे कि बाद सबसे ज्यादा खतरा संविधान को है | आप संविधान को राखी बांधिए और खुद उसकी रक्षा का संकल्प लीजिये | संविधान की जितनी अवहेलना इस दशक में की गयी है उतनी पहले कभी नहीं की गयी | संविधान में संशोधन करना एक अलग बात है लेकिन उसकी अनदेखी करना दूसरी बात | आज दूसरा काम बेशर्मी से हो रहा है ,इसलिए यदि मुमकिन हो तो संविधान की रक्षा कि लिए रेशमी धागे का इस्तेमाल कीजिये | खास तौर पर इसके लिए अभिभाषकों और नेताओं से वचन लीजिये कि वे संविधान से खिलवाड़ न करेंगे और न होने देंगे | न्यायाधीशों को राखी बांधिए | उनसे आग्रह कीजिये कि वे सरकार कि सुर में सुर मिलाने कि बजाय संविधान कि सुरों को पंचम तक ले जाएँ |

मुमकिन है कि आज आप इस आलेख को पढ़कर सोचें कि आपका लेखक बहक गया है ,लेकिन हकीकत ये है की आज मैंने जानबूझकर दुसरे विषयों को नहीं उठाया है | सियासत पर हम रोज बात करते हैं | नैतिकता और अनैतिकता पर हमारी बहसें रोज होतीं हैं किन्तु संविधान,राष्ट्रध्वज और साम्प्रदायिक सौहार्द पर हम कम ही बात करते हैं | करते भी हैं तो दूसरे ढंग से | आज राजनीति में सुचिता का संकट है | नैतिकता का संकट है | राजनीतिक निष्ठाएं कपड़ों की तरह बदली जा रही हैं | नेताओं की बेशर्मी को न संविधान रोक पा रहा है और न मतदाता | ऐसे में शायद राखी कुछ काम कर जाये ! पहल तो आखिर करना पड़ेगी .नेताओं से राखी बांधकर वचन लिया जाये की वे किसी भी कीमत पर बिकेंगे नहीं |

राखी बांधकर इन तमाम मुद्दों पर वचन लेना है तो पंत प्रधान से लीजिये | केंद्रीय गृह मंत्री से लीजिये ,क्योंकि आज कि युग में इस मुल्क कि ये ही दोनों भाग्यविधाता हैं | इनकी कृपा से जब अडानी,अम्बानी और बाबा रामदेव फल-फूल सकते हैं तो आम जनता कि संकट दूर क्यों नहीं हो सकते ? इन दोनों महानुभावों को राखी बांधिए,न बांध पाएं तो डाक से भेजिए और आग्रह कीजिये कि ये दोनों अब बस करें | लोकतंत्र को सांस लेने दें,लोकतंत्र का गला न घोंटे | उसके जिस्म पर अनैतिकता की जलती सिगरेटें न दागें | देश को आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी बनाये न की भिखारी और मुफ्तखोर |

मुझे पूरा यकीन है कि यदि हमारी साहसी बहनें इस दिशा में यदि पहल करेंगीं तो कुछ न कुछ नतीजा अवश्य हासिल होगा | अब राष्ट्रध्वज हो, संविधान हो या सामाजिक सौहार्द हो इन सबकी हिफाजत केवल और केवल बहनें ही कर सकतीं हैं ,क्योंकि आज भी नैतिकता और धर्म का बहुत सा हिस्सा उन्हें की वजह से महफूज है | गमे रोजगार ने देश की तमाम बहनों से उनके भाई दूर कर दिए हैं ,लेकिन रिश्तों की महक अभी भी बाक़ी है | भाई घर में हों या घर कि बाहर,देश में हो या विदेश में वे इस रिश्ते को महसूस करते हैं | आज भी बहने दस रूपये की राखी को भाई तक पहुँचाने कि लिए सैकड़ों हजारों रूपये डाकशुल्क पर खर्च करती है | इसलिए राखी में ताकत है.इसका इस्तेमाल भाइयों की सुरक्षा और अपनी सुरक्षा कि साथ ही संविधान,निशान और सौहार्द कि लिए भी होना चाहिए | बहुत-बहुत शुभकामनायें और बधाई.

 

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RAKESH ANCHAL
राकेश अचल

राकेश अचल ग्वालियर - चंबल क्षेत्र के वरिष्ठ और जाने माने पत्रकार है। वर्तमान वे फ्री लांस पत्रकार है। वे आज तक के ग्वालियर के रिपोर्टर रहे है।