“देश का दुर्भाग्य” शीर्षक से आलेख लिख चर्चित हुए थे तिलक (Tilak)…”

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“देश का दुर्भाग्य” शीर्षक से आलेख लिख चर्चित हुए थे तिलक (Tilak)…”
वह परतंत्रता का दौर था और स्वतंत्रता के लिए अपना सब कुछ यानि तन, मन और धन न्यौछावर करने वाले सेनानियों की लंबी सूची थी। जिस तरह आज देश को लूटकर घरों में करोड़ों रुपए कैश रखने वालों की लंबी सूची है, ठीक उसी तरह उस समय देश पर सब कुछ लुटाने वालों की होती थी। इनमें से ही एक थे बाल गंगाधर तिलक। आज यानि एक अगस्त को हम उन्हें इसलिए याद कर रहे हैं, क्योंकि आज उनकी 102 वीं पुण्यतिथि है। एक अगस्त 1920 को तिलक का निधन हुआ था। तब महात्मा गांधी ने उन्हें आधुनकि भारत का निर्माता और जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय क्रांति का जनक बताया था। उनका मूल नाम केशव गंगाधर तिलक था। वह एक भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। वह भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता हुए। ब्रिटिश औपनिवेशिक प्राधिकारी उन्हें “भारतीय अशान्ति के पिता” कहते थे। उन्हें, “लोकमान्य” की उपाधि मिली थी। लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था।
आजादी के 75 साल होने के अवसर पर ऐसे क्रांतिकारियों को याद करना जरूरी है, जिनके त्याग और बलिदान ने आजादी की नींव रखी थी। आज देश में राष्ट्रभक्ति का भाव जगाने के लिए जतन करने पड़ रहे हैं। और देश यदि यह कहे कि “हमें तो अपनों ने लूटा गैरों में कहां दम था…” तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। लूटने वालों में से कुछ सामने आ रहे हैं, तो ज्यादातर पर्दे के पीछे मुस्करा रहे हैं। इस 75 साल के फासले में देश ने दूसरों की गुलामी से निजात पाकर अपनों के जुल्म का एक कड़वा घूंट पिया है। ऐसे में लोकमान्य तिलक जैसे क्रांतिकारी उस दौर का दीदार कराते हैं, जब उन जैसे राष्ट्रभक्तों के रोम-रोम में देशभक्ति समायी थी।

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हम उन्हें इसलिए भी याद कर रहे हैं, क्योंकि पत्रकार के रूप में उनकी बड़ी भूमिका थी। लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी में मराठा व मराठी में केसरी नाम से दो दैनिक समाचार पत्र शुरू किए थे, जो जनता में बहुत लोकप्रिय हुए। लोकमान्य तिलक ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की बहुत आलोचना की। उन्होंने माँग की कि ब्रिटिश सरकार तुरन्त भारतीयों को पूर्ण स्वराज दे। केसरी में छपने वाले उनके लेखों की वजह से उन्हें कई बार जेल भेजा गया। लोकमान्य तिलक ने अपने पत्र केसरी में “देश का दुर्भाग्य” नामक शीर्षक से लेख लिखा जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया। उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया।
उन्होंने सबसे पहले ब्रिटिश राज के दौरान पूर्ण स्वराज की मांग उठाई। लोकमान्य तिलक ने जनजागृति का कार्यक्रम पूरा करने के लिए महाराष्ट्र में “गणेश उत्सव” तथा “शिवाजी उत्सव” सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया। इन त्योहारों के माध्यम से जनता में देशप्रेम और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस भरा गया।उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक क़रीबी सन्धि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष और वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै शामिल थे। लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को इतिहास में लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाता है।

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 1908 में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया, जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के समकालीन होम रूल लीग की स्थापना की। देशप्रेम में सर्वस्व न्यौछावर करने वाले तिलक ऐसे क्रांतिकारी थे, कि जेल में रहने के दौरान ही उनकी पत्नी का निधन हो गया और उन्हें अफसोस रहा कि वह अंतिम दर्शन भी नहीं कर पाए। पर इन क्रांतिकारियों के त्याग का फल ही हमें अंग्रेजों से आजादी के रूप में मिला। जिसके चलते आज देश अमृतोत्सव मनाकर पूरी दुनिया में अपना नाम रोशन कर रहा है। नेताओं को भी तिलक से नसीहत लेने की जरूरत है, तो पत्रकारों को भी लोकमान्य से सीख लेने की जरूरत है और हर नागरिक इस महान व्यक्तित्व से बहुत कुछ सीख सकता है। देश को सर्वस्व देने वाले तिलक तुम्हें आज यह राष्ट्र नमन करता है।