आज भोजन, जीवन और सम्मान का दिन है…

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आज अन्न उत्सव का दिन है। यह उत्सव मध्यप्रदेश के सभी 52 जिलों में उल्लास से मनाया जाएगा, तो देश में भी इसकी गूंज रहेगी। कार्यक्रम से एक दिन पहले प्रदेश के जिलों में कलेक्टर, जिला प्रशासन, सहकारिता विभाग सहित अधीनस्थ अमले ने मिलकर हितग्राहियों को पीले चावल देकर आमंत्रित किया है। गांवों में एक दिन पूर्व टोलियों द्वारा हितग्राहियों को निमंत्रित किया गया। स्थानीय वाद्ययंत्र के साथ लोक गीत, स्थानीय नृत्य के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हो रहा है।अन्नोत्सव कार्यक्रम की टैग लाइन हैै भोजन भी,जीवन भी, सम्मान भी, धन्यवाद मोदी जी। तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न केवल कार्यक्रम को संबोधित करेंगे बल्कि चिन्हित हितग्राहियों से सीधी बात भी करेंगे। हालांकि आम चुनाव अभी दूर हैं, पर इस तरह के आयोजनों को भी बूंद-बूंद से घडा़ भरने जैसा तो माना ही जा सकता है। और शायद विपक्ष का नजरिया भी कुछ यही है कि गरीबों की भलाई से ज्यादा केंद्र सरकार और भाजपा को अपनी भलाई की चिंता है। पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि गरीबों की भलाई में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत मई से नवंबर तक प्रति हितग्राही पांच किलो अतिरिक्त मुफ्त राशन का योगदान उनके लिए भोजन भी, जीवन भी, सम्मान भी जैसा ही है। विपक्ष की आलोचना पर गौर करें तो कह सकते हैं कि आजाद भारत में अब तक इतनी गरीबी क्यों है? यह बहुत ही जटिल सवाल है और फिलहाल इस पर टीका-टिप्पणी की बजाय अन्न उत्सव मनाना शायद ज्यादा बेहतर है।

प्रदेश के 25435 राशन दुकानों में जनप्रतिनिधियों को मुख्य अतिथि बनाया जाएगा। खुद राज्यपाल मंगूभाई पटेल रायसेन जिले में अन्न उत्सव कार्यक्रम में शामिल होंगे तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल में अन्न उत्सव मनाएंगे। एक दिन में अन्न उत्सव कार्यक्रम में 25 लाख 43 हजार 500 हितग्राहियों को दस-दस किलो राशन मुहैया कराया जाएगा। 10 किलो भार क्षमता वाले थैलो में राशन वितरण होगा। जिस पर बने मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री के चित्र को लेकर कांग्रेस ने आपत्ति भी जताई थी। हालांकि पडो़सी राज्य छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री का फोटो लगाने से परहेज किए जाने की बात सामने आई थी। ऐसे कार्यक्रमों में जहां लाखों गरीबों के हित की बात हो, वहां फोटो की राजनीति खास मायने नहीं रखती। जहां जिस दल की सरकार, वह थैलों पर अपने मन मुताबिक फोटो चस्पा कर ले लेकिन गरीबों के साथ छलावा न करे, यही जरूरी है। कम से कम 100 हितग्राही प्रत्येक दुकान पर अन्नोत्सव पर निःशुल्क राशन वितरण प्राप्त करेंगे, तो निश्चित तौर पर लाखों गरीबों को निःशुल्क राशन मिलने का उत्सव तो मनाया ही जाना चाहिए। थैले पर अंकित लाइन ”जन जन राशन- घर घर राशन” के मुताबिक हर गरीब के घर तक राशन पहुंच जाए, बारिश के इस दौर में यह भी बड़ी राहत की फुहार मानी जा सकती है। हालांकि मध्यप्रदेश में बाढ़ ने पांच जिलों में महाविनाश किया है। इन जिलों में पीड़ितों को सरकार दस किलो के साथ पचास किलो मुफ्त राशन भी मुहैया कराती है तो शायद उनके लिए यह महाराहत की बारिश बन जाएगी।

भोजन भी, जीवन भी, सम्मान भी के लिए तो मोदी जी आपका धन्यवाद है लेकिन यह कार्यक्रम यदि बिना राजनीतिक मिलावट के भी संपन्न हों, तब इनकी सूरत शायद और भी ज्यादा सुंदर हो सकती है। पर शायद राजनीति अब जिस दौर से गुजर रही है, उसमें यह महज कल्पना ही की जा सकती है। या इसे आसमान से तारे तोड़ने जैसी चुनौती माना जा सकता है। वजह भी है कि दलीय कटुता का जो काल अब सामने है, उसमें पद की गरिमा, राजनैतिक मर्यादा, नैतिकता और दल से परे होकर सार्वजनिक हित के मुद्दों पर साझेदारी की भावना से कार्य करने की उम्मीद शायद 21 वीं सदी के 21 वें साल तक आते-आते असंभव हो गई है। फिलहाल गरीबों के हित में यह उम्मीद तो की ही जा सकती है कि गरीबों की पूरी जिंदगी ही भोजन भी, जीवन भी और सम्मान भी… टैगलाइन के साथ बीते, तो शायद देवभूमि भारत वास्तव में देवों की भूमि का अहसास कराने में सफल हो। और जन-जन राशन और घर-घर राशन टैगलाइन देने की जरूरत ही न पड़े बल्कि  रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य और मूलभूत जरूरतों तक जन-जन की पहुंच 365 दिन और 24 घंटे बनी रहे और घर-घर में उत्सव सा माहौल हरदम रहे ताकि गरीबों को भी कभी इन मूलभूत जरूरतों की पूर्ति के लिए धन्यवाद कहने के मौके न तलाशना पड़ें। औऱ सरकारों को उन्हें पीले चावल न देने पडें बल्कि देश की गरीब जनता जरूरत की चीजें हमेशा उपलब्ध रहने के लिए 365 दिन और 24 घंटे सरकारों की आभारी रहे। सरकार किसी की भी रहे पर इस देश को उस दिन का बड़ी बेसब्री से इंतजार है। RB