आज ‘आधुनिक भारत के जनक’ का दिन है …
252 साल पहले 22 मई 1772 को राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रमाकांत तथा माता का नाम तारिणी देवी था। 15 वर्ष की आयु तक उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फ़ारसी का ज्ञान हो गया था। किशोरावस्था में उन्होने काफी भ्रमण किया। उन्होने 1809-1814 तक ईस्ट इंडिया कम्पनी के लिए भी काम किया।फिर राजा राममोहन राय ने ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर अपने आपको राष्ट्र सेवा में झोंक दिया। उन्होने ब्रह्म समाज की स्थापना की तथा विदेश (इंग्लैण्ड तथा फ़्रांस) भ्रमण भी किया। एक व्यक्ति कितना परिश्रम कर महानता को छू सकता है, उसकी झलक राममोहन राय में देखी जा सकती है। मात्र 61 वर्ष की आयु में दुनिया को अलविदा कहने वाले राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत और आधुनिक भारत का जनक कहा जाता है।
भारतीय सामाजिक और धार्मिक पुनर्जागरण के क्षेत्र में राजा राममोहन राय का विशिष्ट स्थान है। वे ब्रह्म समाज के संस्थापक, भारतीय भाषायी प्रेस के प्रवर्तक, जनजागरण और सामाजिक सुधार आंदोलन के प्रणेता तथा बंगाल में नव-जागरण युग के पितामह थे। उन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम और पत्रकारिता के कुशल संयोग से दोनों क्षेत्रों को गति प्रदान की। उनके आन्दोलनों ने जहाँ पत्रकारिता को चमक दी, वहीं उनकी पत्रकारिता ने आन्दोलनों को सही दिशा दिखाने का कार्य किया। राजा राम मोहन राय को राय की उपाधि अकबर द्वितीय ने दी थी। इनको ,भारत के पुनर्जागरण का पिता, कहा जाता है। राजा राम मोहन राय ने सबसे पहले आत्मीय सभा की स्थापना की थी। इनको भारत का प्रथम आधुनिक पुरुष माना जाता है। इनकी समाधि ब्रिस्टल (इंग्लैंड) में है।
भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ राजा राममोहन राय दोहरी लड़ाई लड़ रहे थे। दूसरी लड़ाई उनकी अपने ही देश के नागरिकों से थी। जो अंधविश्वास और कुरीतियों में जकड़े थे। राजा राममोहन राय ने उन्हें झकझोरने का काम किया।बाल-विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा आदि का उन्होंने भरपूर विरोध किया। धर्म प्रचार के क्षेत्र में अलेक्जेंडर डफ्फ ने उनकी काफी सहायता की। देवेंद्र नाथ टैगोर उनके सबसे प्रमुख अनुयायी थे। आधुनिक भारत के निर्माता, सबसे बड़े सामाजिक – धार्मिक सुधार आंदोलनों के संस्थापक, ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राम मोहन राय ने सती प्रणाली जैसी सामाजिक बुराइयों के उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह भी अंग्रेजी, आधुनिक चिकित्सा प्रौद्योगिकी और विज्ञान के अध्ययन के पक्षधर थे। उन्होंने भारतीय समाज में विभिन्न बदलाव की वकालत की।
राजा राममोहन राय ने ‘ब्रह्ममैनिकल मैग्ज़ीन’, ‘संवाद कौमुदी 1821’, मिरात-उल-अखबार 1822 , बंगदूत जैसे स्तरीय पत्रों का संपादन-प्रकाशन किया। बंगदूत एक अनोखा पत्र था। इसमें बांग्ला, हिन्दी और फारसी भाषा का प्रयोग एक साथ किया जाता था। उनके जुझारू और सशक्त व्यक्तित्व का इस बात से अंदाज लगाया जा सकता है कि सन् 1821 में अँग्रेज जज द्वारा एक भारतीय प्रतापनारायण दास को कोड़े लगाने की सजा दी गई। फलस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई। इस बर्बरता के खिलाफ राय ने एक लेख लिखा। 1823 में ब्रिटश सरकार द्वारा प्रेस पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून का मुखर विरोध किया था।
ब्रह्म समाज का मानना है कि सर्वोच्च ईश्वर की पूजा के लिए किसी निश्चित स्थान या समय की आवश्यकता नहीं होती है। “हम किसी भी समय और किसी भी स्थान पर उसकी आराधना कर सकते हैं, बशर्ते उस समय और उस स्थान की गणना मन को उसकी ओर निर्देशित करने के लिए की जाए।”वह अंधविश्वासों के खिलाफ लड़ने वाले, भारतीय शिक्षा के अग्रणी और बंगाली गद्य और भारतीय प्रेस में एक ट्रेंड सेटर थे। रॉय का मानना था कि शिक्षा सामाजिक सुधार का एक साधन है।राजा राममोहन राय की यह बात सच है कि यदि हर शिक्षित व्यक्ति ठान ले, तब वह वक्त आ सकता है जब भारतीय समाज में सुधारने के लिए कुछ नहीं बचेगा…।