Traditional Dishes:चीला खाओ और चिल हो जाओ :चीला उत्तम आहार होने के साथ साथ दवा का भी
डॉ. विकास शर्मा
बहुत कम लोग जानते हैं कि चीला उत्तम आहार होने के साथ साथ दवा का भी काम कर जाता है। कैसे…? बताऊँगा, यहीं इसी पोस्ट में बने रहियेगा।
समय के साथ हमने क्या खोया और हम क्या पा रहे हैं, इसकी चर्चा हर कोई करता है। लेकिन क्या हममें से कोई ऐसा है, जो पुरानी खूबियों को भी बाँध कर रखना जानता है और नए परिवर्तनों का भी दिल खोल कर स्वागत करता है। एक समय की बात थी जब बारिश में चीले और पकोड़े की ही चर्चा होती थी। पकोड़े में खर्च अधिक आता है तो गाँव वालों की पहली पसन्द चीले ही होते थे। आज की नई पीढ़ी नूडल्स, मंचूरियन, मोमोज, बर्गर, पिज्जा, भेल, दाबेली और न जाने कितनी तरह के फ़ास्ट फ़ूड पर पहुँच गई है। कहते हैं कि लाइफ बहुत फ़ास्ट है, अगर सचमुच है तो फिर ये बताओ कि आज के महामानव आप स्वयं इतने लेजी क्यों हुये जा रहे हैं? सोचना जरूर! आज के जमाने मे जहाँ अजीनो मोटो डालकर ढ़ेर सारे अटरम- शटरम, अगड़म – भगड़म व्यंजन की लत नई पीढ़ी को डाली जा रही है तो ऐसे में हमे भी जरूरत है कि नई पीढ़ी को पारंपरिक व्यंजनो की एक सैर कराई जाये, तो चलिए चलते हैं चीले वाली उड़ान भरते हैं…
चीला ग्रामीण क्षेत्रो में पसंद किया जाने वाला एक खास व्यंजन है। बारिस प्रारंभ होने के साथ ही चीले की डिमांड और अधिक बढ़ जाती है। पकोड़े के बाद चीला ऐसा व्यंजन है जो बारिस आते ही तुरंत ध्यान में आ जाता है। सामान्य चीले बनाने के लिये बेसन लें या बेसन में थोड़ा आ मक्के का आटा मिलाकर घोल बना लें, इसी में नमक सहित आवश्यक मसाले भी डाल दें। थोड़ा तेल लगाकर गर्म तबे पर एक कटोरी घोल डाल दें, अच्छी तरह फैलाये।
एक ओर सिक जाने के बाद पलटाकर दूसरी ओर अपेक्षाकृत कम सेंकें। गर्मागर्म चीले तैयार हैं। गर्मागर्म चीले धनिया- मिर्च की हरी चटनी या लाल टमाटर की चटनी के साथ परोसें। वैसे यह व्यंजन ग्रामीण संस्कृति में बहुत खास माना जाता है क्योंकि इसे कभी अकेले नही बनाया और खाया जाता। इसके लिए पूरा परिवार और मित्र मंडली साथ मे होना आवश्यक है वरना स्वाद अधूरा रह जाता है। इसीलिये इसे परिवार वाला व्यंजन होने का सम्मान प्राप्त है।
हमारे गाँव मे बारिस का समय हो, परिवार के सभी लोग एकत्र हों और चीले की फ़रमाईश न हो, ऐसा हो नही सकता। वैसे तो चीले झटपट बन जाने वाला व्यंजन है लेकिन अलग अलग स्वाद के शौकीन लोग इसमे मिलाई जाने वाली सामग्री के आधार पर इसे काफी जटिल तरीके से भी बनाते हैं। मेरे लिए सबसे स्वादिष्ट चीले लहसन के हरे पत्ते वाले होते हैं। इसके अलावा हरे प्याज, खीरा, लौकी, पोई आदि कई साग मिलाकर भी बनाये जाते हैं।
इसका स्वाद और अधिक बढ़ाने के लिये या इसमें औषधीय गुणों का समावेश करने के लिए घर पर उपलब्ध सभी प्रकार की (मिक्स) दालों का आटा/बेसन और थोड़े बहुत किचन के मशाले जैसे हल्दी, अजवाईन, जीरे, बहुत थोड़ा काली मिर्च पाउडर, मिर्च मशाला और काला नमक आदि चाहिये। इन सबका घोल बनाये और चंद मिनटों में चटपटे चीले तैयार। स्वादानुसार मिर्च कम ज्यादा की जा सकती है। साथ मे हरी धनिया-टमाटर-हरी मिर्च, अदरक व लहसन की चटनी मिल जाये तो क्या बात। लेकिन अचार के साथ खाने का भी अपना अलग ही मजा है। अनुभवी लोग जिस स्टाइल से इसे बनाते या पलटते है वह भी देखने लायक है, हालांकि नयी पीढ़ी के लिये यह काफी जिकझिक/ झंझट वाला व्यंजन है। उनके अनुसार इससे बेहतर तो यह होता है कि 10 मिनट में चौपाटी से डोसे खा आयें। लेकिन यह मध्य प्रदेश की प्राचीन संस्कृति का अद्वितीय उदाहरण है, डोसे का स्वरूप और स्वाद इससे बहुत अलग है।
इमें डाली जाने वाली सामग्री जैसे भारतीय मसाले- लहसन, अदरक, काली मिर्च, काला नमक, अजवायन आदि इसे सर्दियों में लगने वाली बीमारी से बचाने वाले गुण प्रदान करते हैं। साथ ही हल्का और पाचक होने के कारण हर आयु वर्ग के लोग इसे बहुत पसन्द करते हैं। आजी, बऊ या ताऊ कहलाने वाले वे बुजुर्ग जिनके दांतो ने मुँह का साथ छोड़ दिया है, चीले बनने पर उनकी तो बल्ले बल्ले हो जाती है।
अब चलिये अंत मे गेंद आपके पाले में डालते हुए आपसे एक प्रश्न करता हूँ। क्या आपको भी मेरी तरह ये चीले वाली झिकझिक पसंद है, या फिर आप नई पीढ़ी के साथ डोसे वाली चौपाटी तलाशते फिरते हैं?
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई
जिला छिन्दवाड़ा (म.प्र.)