Transgender Clinic At Aims: एम्स में शुरू होगी प्रदेश की पहली और देश की दूसरी ट्रांसजेंडर क्लीनिक!
भोपाल। एम्स भोपाल में अब ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए एक स्पेशल क्लिनिक बनाया जाएगा। इस क्लिनिक को सेंटर आॅफ एक्सीलेंस नाम दिया जाएगा। यह एक ऐसी जगह होगी, जहां पर ट्रांसजेंडर कम्युनिटी का हर तरीके से इलाज मौजूद होगा।
प्रदेश में यह पहला मौका होगा जब ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के लिए स्पेशल क्लीनिक की शुरूआत की जाएगी। हालांकि इससे पहले सिर्फ एम्स दिल्ली में ऐसा अभिवन प्रयोग किया गया है। जानकारी के मुताबिक इस क्लीनिक में सर्जरी से लेकर साइकाइट्रिक ट्रीटमेंट मुहैया कराया जाएगा। एम्स के अलग-अलग डिपार्टमेंट के डॉक्टर मिलकर इस क्लीनिक में मरीजों का इलाज करेंगे।
यह जानकारी एम्स के डायरेक्टर अजय सिंह ने साल 2024 का विजन पत्र साझा करते हुए दी। उन्होंने बताया कि उन्होंने कहा कि इस साल किडनी व लिवर ट्रांसप्लांट शुरू करना है। इसके साथ ही दूरदराज इलाकों में दवा की डिलीवरी और रक्त नमूने एकत्र करने के लिए ड्रोन सेवा तैयार की जाएगी।
*क्यों पड़ी क्लीनिक की जरूरत*
एम्स प्रबंधन के मुताबिक संस्थान की सोच ट्रांसजेंडर कम्युनिटी की केयर है। क्लीनिक का मकसद है कि ट्रांसजेंडर बिना किसी झिझक के अपनी इलाज करा सकें। इस क्लीलिक में बच्चे हो, बड़े हो या बुजुर्ग. सभी यहां पर आकर अपनी परेशानी अपनी बीमारी डॉक्टर को आसानी से बता सकेंगे और एक ही जगह पर किया जा सकेगा।
समय पर चिकित्सीय मदद मिलने से बचेगी जान
दूरदराज के इलाकों में गंभीर मरीज के लिए जरूरी दवाएं, वैक्सीन, जांच के लिए मरीज का सैंपल व जहर के एंटीडोट के ट्रांसपोर्टेशन में ड्रोन की मदद ली जाएगी। इसके लिए एम्स भोपाल, मैनिट, आरजीपीवी और आइआइटी इंदौर मिलकर ड्रोन के मेडिकल फील्ड में उपयोग बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं। इससे समय पर चिकित्सीय मदद मिलने से ज्यादा लोगों की जान बचाई जा सकेगी। साथ ही आपातकालीन स्वास्थ्य उपचार व जांच सक्षम होगी, लंबी दूरी चंद मिनटों में तय होगी।
दो साल में बढ़ी 56 फीसदी ओपीडी
एम्स भोपाल के डायरेक्टर डॉ अजय सिंह ने वर्ष 2024 में शुरू होने वाली स्वास्थ्य सुविधा की डॉक्टर, अधिकारी और मेडिकल टीम के साथ समीक्षा की। उन्होंने कहा कि दो साल में ओपीडी में मरीजों की संख्या में 56 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ भर्ती होने वाले मरीज 32 हजार से बढ़कर 50 हजार हो गए हैं। यही नहीं इमरजेंसी के मामलों में 170 फीसदी और बेड आॅक्युपेंसी 62 से बढ़कर 77 फीसदी हो गई है।