“अनुवाद भाषाओं, संस्कृतियों और साहित्यिक परंपराओं के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है-“संतोष श्रीवास्तव

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“अनुवाद भाषाओं, संस्कृतियों और साहित्यिक परंपराओं के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है-” संतोष श्रीवास्तव

14 सितंबर गूगल मीट पर हिंदी दिवस के अवसर पर अंतरराष्ट्रीय विश्व मैत्री मंच द्वारा साहित्य में अनुवाद की भूमिका को लेकर कार्यक्रम आयोजित किया गया।
कार्यक्रम का आरंभ महिमा श्रीवास्तव वर्मा द्वारा दीप प्रज्ज्वलन और सरस्वती वंदना की प्रस्तुति के साथ हुआ।
अपने बीज वक्तव्य में संतोष श्रीवास्तव ने कहा-“भारतीय साहित्य में अनुवाद की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण है। अनुवाद भाषाओं, संस्कृतियों और साहित्यिक परंपराओं के बीच एक पुल के रूप में कार्य करता है, जो गहन विचारों, भावनाओं और कथाओं को व्यापक रूप से पाठकों तक पहुंचाने में सक्षम होता है। यह अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा देता है।”
अध्यक्षीय उद्बोधन में डॉक्टर संजीव कुमार ने कहा-“हर लेखक या साहित्यकार को अपनी मातृभाषा के अलावा एक और भाषा का ज्ञान अवश्य करना चाहिए ।भाषा हमारे लेखन को सँवारती है ।”

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अमेरिका से पधारीं मुख्य अतिथी प्रख्यात अनुवादक वसुधा सहस्त्रबुद्धे ने अनुवाद की बहुत विस्तृत जानकारी देते कहा “प्रत्येक प्रांत की भाषा और लिपि समझना ,अध्ययन करना मुश्किल है,परंतु वहाँ के साहित्य का अनुभव हमे जरूर  समृद्ध करेगा।करता है।लेकिन भाषा के आदान-प्रदान के लिए क्षेत्रीय भाषाओं का अनुवाद बहुत जरूरी है।”
कार्यक्रम की प्रमुख वक्ता रूपेंद्र राज तिवारी ने अपने वक्तव्य में कहा -“साहित्य का एक प्रमुख उद्देश्य जोड़ना भी है, विभिन्न विचारों को,क्षेत्रिय संस्कृतियों, सभ्यताओं, परम्पराओं, मतों और विश्वासों को। इस तरह से एक अनुवादक का महत्व और भी बढ़ जाता है।”

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रीता दासराम ने वैश्विक स्तर पर अनुवाद पर चर्चा करते हुए कहा-”
आज के दौर में अनुवादक एक साहित्यकार की ही भूमिका अदा करता है। सौन्दर्य, शिल्प, शैली, चेतना, कला और अनुभूति को आत्मसात कर विश्लेषण, आत्मचिंतन, मनन, पुनः लेखन द्वारा निखरकर और लेखन में निखार लाकर ही एक अनुवादक अनुवाद को सफलता पूर्ण साकार कर पाता है।  हिन्दी देश की धरोहर है तो क्षेत्रीय भाषाओं में हम देश की आत्मा देखते है और इनके संगम में अनुवादक अनुवाद द्वारा अपनी गहन भूमिका का दायित्व रचते हैं।”
सरस दरबारी ने अपनी वक्तव्य में बताया”
भाषा सरहदों, देशों प्रांतों और फिर दिलों को जोड़ती है. संसार के हर प्राणी के पास अपनी भाषा है. परन्तु विचारों, संस्कारों संस्कृतियों का आदान प्रदान केवल मनुष्यों के बीच ही संभव है. जब भाषाएँ अनेक हों और हमारा भाषा ज्ञान सीमित, तब अनुवाद ही वह कड़ी है जो एक भाषा को दूसरी से भाषा से जोड़ती है।”
संस्था द्वारा प्रतिवर्ष दिए जाने वाले अहिंदी भाषी हिंदी सेवी सम्मान

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मराठी भाषी लेखिका अंतरा करवड़े, गुजराती भाषी लेखिका आभा दवे ,कुमायूं की ईरा पंत और पंजाबी भाषी चरणजीत सिंह कुकरेजा को प्रदान किये गए ।
इस आयोजन में श्रोताओं द्वारा भी प्रश्न पूछे गए और चर्चा का विस्तार हुआ ।
कार्यक्रम का बहुत ही जीवन और रोचक संचालन  लेखिका एकता व्यास ने किया ।अलका अग्रवाल ने बहुत ही रोचक शैली में सभी का आभार व्यक्त किया तथा
अलका अग्रवाल ने बहुत ही रोचक शैली में सभी का आभार व्यक्त किया ।
इस कार्यक्रम में देश-विदेश से लगभग 50 लोगों की उपस्थिति दर्ज की गई।
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