

Travel Diary-9 : आदि कैलाश की अलौकिक यात्रा -गोमती नदी पर माँ का स्मरण, चौकोरी से कौसानी
महेश बंसल, इंदौर
सुबह का आकाश मानो पहाड़ियों पर स्वर्ण रेखाओं की चादर बिछा रहा था।चौकोरी में यह यात्रा का अंतिम प्रभात था, परंतु हर कोई समय से पहले ही जाग गया था।रिसॉर्ट के सामने बगीचे में खिले फूल, ओस से भीगी घास, और मंद पहाड़ी बयार — सब मिलकर सुबह को एक आध्यात्मिक स्पर्श दे रहे थे।
इसी मधुर वातावरण में, हमारे ग्रुप के एक सदस्य — जो एक प्रसिद्ध चिकित्सक और योगाचार्य हैं — उन्होंने सभी को प्राणायाम और ध्यान सत्र करवाया। यह अनुभव इतना सहज, आत्मीय और शुद्ध था मानो कोई तीर्थ की सुबह हमारे भीतर उतर आई हो।
स्नान के बाद, महिला सदस्यों ने साथ लाए इंदौरी पोहे रिसॉर्ट के किचन में स्वयं तैयार किए।घरेलू स्वाद और साथीपन की सुगंध पूरे वातावरण में घुल गई।पोहा और सैंडविच के स्वादिष्ट अल्पाहार के साथ हमने सुंदर रिसोर्ट को हृदय से विदा दी।
यात्रा मार्ग – चौकोरी से बागेश्वर
सघन वनों, घुमावदार सड़कों और हरियाली की गोद में चलते-चलते हम पहुंचे —बागेश्वर, उत्तराखंड की सांस्कृतिक, धार्मिक और प्राकृतिक गरिमा से मंडित नगर।
यहाँ पर स्थित है सरयू और गोमती नदियों का संगम —
जहाँ हिमालय की गोद में दो नदियाँ जैसे आत्मा और परमात्मा की तरह एक हो जाती हैं।
संगम तट को सुशोभित करती हैं सुंदर छतरियाँ —
जहाँ पुजारियों की बैठक होती है।
प्रवेश स्थल पर ही भगवान शंकर की विशाल प्रतिमा दर्शकों को मोहित करती है।
नदी के दूसरे किनारे जाने हेतु लोहे का पुल है,
और बागेश्वर मंदिर के सामने वाले तट पर अंत्येष्टि कर्म भी संपन्न होते हैं —
जीवन और मृत्यु की सीमा पर टिका यह स्थल श्रद्धा और शांति का अद्भुत संगम बन जाता है।
बैजनाथ मंदिर एवं बैराज
संगम से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बैजनाथ मंदिर —
नागर शैली में बना शिव का प्राचीन मंदिर एवं मंदिरों की श्रृंखला, जहाँ सहस्त्रों श्रद्धालुओं की श्रद्धा समर्पित होती है।
शिव की शाश्वत उपस्थिति को अनुभव करते हुए हम वहाँ कुछ समय ठहरे।इसके पश्चात हम पहुँचे — बैजनाथ बैराज,
जहाँ गोमती नदी को नियंत्रित कर एक सुंदर जलाशय बनाया गया है।नौका विहार की व्यवस्था भी थी, परंतु दोपहर की धूप तीव्र होने के कारण हमने स्थगित रखा।

माँ गोमती की स्मृति में – मेरा भावनात्मक क्षण
बैजनाथ बैराज – मेरे लिए यह स्थल एक सामान्य पर्यटन स्थल नहीं था,
क्योंकि मेरी माँ का नाम भी — गोमती था।

“आज पहली बार इस नदी को देखा…
लेकिन महसूस यूँ हुआ जैसे माँ से मिल रहा हूँ।”
गोमती का जल — शांत, स्नेहिल, स्थिर — जैसे माँ की गोद।
बैराज की गहराई — माँ के धैर्य जैसी।
उसका प्रवाह जो खेतों को सींचता है — जैसे माँ का परोपकार।
वीडियो –बैजनाथ, गोमती नदी
मैंने संगम स्थल पर गोमती के जल को अंजुलि में लिया,
और माँ के चरणों में अर्पित कर दिया —
“वो एक अंजुलि जल नहीं था…
उसमें मेरी स्मृतियाँ, मेरी श्रद्धा और माँ का सम्पूर्ण जीवन समाहित था।”
यह इस यात्रा का मेरा सबसे निजी, सबसे भावनात्मक और सबसे मौन क्षण था —
जहाँ कोई शब्द नहीं बोले गए, पर सजल नेत्र सब कुछ कह गए।
अनासक्ति आश्रम – कौसानी की ऊँचाई पर मौन साधना

बैराज से निकलकर हम पहुँचे — कौसानी – Mystic Mountain hotel.
यहाँ से हिमालय के दिव्य शिखर त्रिशूल, नंदा देवी और पंचचूली के दर्शन होते हैं,
पर उस दिन बादलों की ओट में रह गए।
पर मन की ऊँचाई तो भीतर ही भीतर बढ़ चुकी थी।
भोजन उपरांत हम पहुंचे अनासक्ति आश्रम —
वह स्थान जहाँ महात्मा गांधी 1929 में ठहरे थे,
और जहाँ उन्होंने गीता पर आधारित ग्रंथ “अनासक्ति योग” की रचना की थी।
आश्रम का परिसर सादगी, सत्य और संतुलन का जीवंत उदाहरण था।
अंदर गांधी जी की आदमकद प्रतिमा,
चरखा, तीन बंदर, और विचारों के चित्रात्मक प्रदर्शन ने भीतर मौन संवाद रच दिया।
कौसानी – कविता और क्रांति की भूमि
कौसानी केवल सुंदर वादियों की भूमि नहीं,
यह हिंदी साहित्य के अमर कवि सुमित्रानंदन पंत की जन्मभूमि भी है।
यहाँ की हवा में कविता गूंजती है, और पहाड़ों की हर साँस से छंद फूटते हैं।
हमने श्रद्धा से उन्हें स्मरण किया —
उस कवि को, जिसने प्रकृति को न केवल जिया, बल्कि कविता के रूप में रचा।
दिन भर की भावनाओं, माँ की स्मृतियों और प्राकृतिक सौंदर्य के साथ
हम लौटे चलें अपने आश्रय स्थल की ओर।
दोपहर को भोजन किया था, अतः महिलाओं ने होटल के किचन में साथ लाएं सूजी से दलिया एवं बाजार से खरीद कर लाए सब्जियों से स्वादिष्ट वेजिटेबल सूप बनाया । खाने के पश्चात अंताक्षरी का दौर, और फिर विश्राम किया।
परंतु माँ, गोमती, श्रद्धा और हिमालय की आत्मा — अभी भी मन के भीतर प्रवाहित हो रही थी…
(क्रमशः)
महेश बंसल, इंदौर
(कल के अंक में नीब करोरी बाबा, कैंची धाम एवं नैनीताल)
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