

Travel Memory : वो वापस जा रहे थे अपनी ड्यूटी पर!
रूचि बागडदेव
बस अभी थोड़े दिन पहले की ही बात है ,वो मुझे एक ट्रैन में मिले थे ,यूनिफॉर्म पहने हुए थे ,हमारे सामने की सीट पर बैठे थे। उस सीट पर उनका रिजर्वेशन नहीं था इसलिए एक कॉर्नर से समझो टीके हुए थे। मैंने बच्चे को गोदी में लिया और अपनी सीट पर एक और व्यक्ति कम्फर्टेबल बैठ सके इतनी जगह बना दी। सामनेवाली सीट पर पसर कर बैठी आंटी और उनके परिवार ने राहत महसूस की थी लगा जैसे चलो समस्या मिटी। वो एक भारतीय सैनिक था दक्षिण भारत से जिन्हे हिंदी बोलने में थोड़ी दिक्कत थी ,सफर लंबा था हमें दिल्ली जाना था और उसे और आगे। बातचीत शुरू हुई पता चला वो छूटियों में अपने घर आये थे गाँव गए थे बस मुश्किल से पांच दिन हुए थे। शादी के लिए लड़की देखने जाना था , मेरे अंदर का जिज्ञासु लेखक सक्रीय हुआ ‘ओह, फिर आपने लड़की पसंद कर ली ?’
उसके चेहरे की बची खुची रौनक भी जैसे छीन ली थी। चेहरा और उदास हो गया था। उसने गर्दन दूसरी तरफ घूमा ली फिर कुछ देर बाद कहा “नहीं लड़की तो बचपन में देखी हुई है ,पर अभी बड़ी होने पर नहीं देखी ,अम्मा ने देख ली थी बस मुझे उसके गाँव जाना था फ़ाइनल जवाब देने पर अभी वापस बुला लिया गया है। ‘
‘अरे क्यों ?’वापस सिर्फ पांच दिन में, शादी कब होगी ?’
‘शादी के लिए ही तो आया था ,लम्बी छुट्टी लेकर ,बस एक दो दिन में उसके गाँव जाना था देखने और जवाब दे आता। फिर शादी की तारीख निकाल लेते हम। ”
वापस क्यों बुलाया गया आपको ”
‘पता नहीं टेलीग्राम मिला और ईमेल भी। ‘
मुझे लगा जरूर कुछ होने वाला है ,पर देखिये उस युवक को उसने यह नहीं बताया की युद्ध की कोई संभावना ,संकट का समय है और सैनिको की छुट्टियां ख़त्म कर दी गई है। मैंने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया ‘कब मिली आपको वापस बुलाने की सूचना ?’
रात में और मैं सुबह सात बजे गाँव से रेलवेस्टेशन पंहुच गया।
उस यात्रा में हमने साथ खाना खाया था और यह यात्रा आज एक बार फिर याद आई तो इसलिए सैनिकों की छुट्टी समाप्त कर दी गई थी ,युद्ध का खतरा मंडरा रहा था इसलिए। मैं नहीं जानती वो सैनिक इस वक्त कहाँ पोस्ट होगा ?
और वो लडकी ,वो इस समय क्या सोच रही होगी जिसने बचपन में उस लड़के को देखा था ,जो उससे रिश्ता पक्का करने आने वाला था ,नहीं हो पाया रिश्ता पक्का ,पर एक रिश्ता भावनाओं का ,जज्बातों का ,कल्पनाओं का एक अनकहा रिश्ता जो मन में कहीं जुड़ चुका है ,मन के रिश्ते दिखते नहीं है न पर बनते तो हैं ? क्या वह यह नहीं सोच रही होगी कि वह कहाँ होगा ,काश वो उससे बात करके उसको अपने मन की बात बता पाती।।
एक रिश्ता उस सैनिक से मेरा भी बन गया था एक ही ट्रेन में यात्रा करते हुए एक आत्मीय सहयात्री का , मैं इन दिनों उस मासूम से चेहरे को बार बार याद कर रही हूँ काश नंबर लिया होता , काश नाम पूछ लिया होता। फिर मन कहता हैं नाम नहीं उस भाई का काम सबसे महत्वपूर्ण है , ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ ,हे भगवान् मेरे उस सैनिक भाई की रक्षा करना, हो सके तो फिर किसी यात्रा में हम साथ हों ,अबकी मिले तो नाम पता सब ले लुंगी। पर यह सब तो एक अलग बात है।
लेकिन इस एक यात्रा का सन्देश यह देना चाहती हूँ जब भी किसी यात्रा में कोई सैनिक कहीं से चढ़े किसी भी वाहन में उन्हें सम्मान के भाव से देखिये ,बैठने की जगह दीजिये। कई बार वे दरवाजे के सामने वाली स्पेस में सो जाते हैं बैठे होते है ,खड़े खड़े यात्रा करते देखे जाते हैं ,हो सकता है वे बिना रिजर्वेशन चढ़े हों ट्रेन में , उन्हें सम्मान और अपनत्व दीजिये और कहिये आप हैं तो हम सुरक्षित हैं। यही वह वाक्य है जो उन्हें उन बर्फीली ठंडी ऊँची पहाड़ियों पर ऊर्जा से भर देती है। जो प्रहरी बनकर खड़ा है सीमा पर उसके साथ वहां तक पंहुचने के लिए कुछ देर अपनी रिजर्व सीट शेयर करनी पड़े तो कर लीजिये। वह वहां खड़ा रहेगा तो हम चैन की नींद अपने घरों में सो सकेंगे। क्या पता कोई अपने सपने छोड़ कर वापस जा रहा है तो कोई अपनी नयी नयी ब्याहता ,कोई अपने नवजात को ठीक से देख भी ना पाया हो और वापस जा रहा है या तो बीमार माँ -बाप को अस्पताल में भर्ती भी नहीं करवा पाया हो। आपकी गली ,मोह्हले में ऐसा घर हो जहाँ उस बेटे की जरूरत है तो साथ खड़े हो जाइये। हमारी सेना हमारी सुरक्षा कवच है। जय जवान सिर्फ नारा नहीं एक जज्बा है।एक भाव जिसके साथ आप उनके प्रति गर्व और सम्मान से भर जाय।