Travelogue: Bet Dwarka- सुदामा अपने मित्र से भेंट करने यहां एक छोटी सी पोटली में चावल लेकर आये थे !

4152
जन्माष्टमी पर

यात्रा वृतांत : बेट द्वारका : सुदामा अपने मित्र से भेंट करने यहां एक छोटी सी पोटली में चावल लेकर आये थे!

शंखोधर कच्छ की खाड़ी के मुहाने पर एक आबाद द्वीप है , जो भारत के गुजरात के ओखा शहर के तट से 2 किमी (1 मील) और 25 किमी (16 मील) दूर स्थित है । इसकी जानकारी पाठकों को दे रहे हैं लेखक ,चिंतक श्री विक्रमादित्य सिंह ठाकुर-

बेट द्वारका को शंखोद्वार भी कहा जाता है। बेट द्वारका को भेंट द्वारका भी कहा जाता है क्योंकि इसी स्थान पर भगवान कृष्ण की उनके सखा सुदामा के साथ भेंट हुई थी। बेट का तात्पर्य द्वीप होता है अतः बेट द्वारका अर्थात द्वीप द्वारका भी है।
द्वारका से बेट द्वारका जाने के लिए ओखा तक जाना होता है। ओखा अंतिम रेलवे स्टेशन है। एक ट्रेन भी चलती है, पूरी से ओखा, पूर्वी समुद्री छोर से पश्चिमी समुद्री छोर तक। दोनों भगवान कृष्ण से संबंधित महत्वपूर्ण तीर्थ स्थानों को जोड़ने के लिए। द्वारका से ओखा के रास्ते में ‘मीठापुर’ में टाटा नमक की बहुत बड़ी फैक्ट्री है। मीठा और नमकीन का क्या अच्छा संयोग है? दो दिन से हमारे साथ चल रहे टैक्सी ड्राइवर ‘फिरोज’ मीठापुर का ही निवासी है।रास्ते भर पर्याप्त अस्वच्छता के दर्शन हुए। फिरोज ने बताया कि पहले तो और ज्यादा गंदगी थी, अभी कुछ हालात ठीक है। समुद्री किनारा होने के कारण ओखा म़े अनेक छोटे-बड़े जहाजों,नौकाओं की मरम्मत, उनका विध्वंस एवं पुनर्निर्माण का कार्य,होते हुए देखा। ओखा में मछुआरों की बड़ी बस्ती है एवं मछली मारने की अनेक नौकाएं यहां लंगर डाले रहती हैं, इसके अलावा समुद्री मछलियों का व्यापार यहां से होता है। मछुआरों में हिंदू मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग हैं।ओखा से बेट द्वारका समुद्री रास्ते से 2 किलोमीटर है। अभी इस पर सिग्नेचर ब्रिज निर्माणाधीन है जो पूर्णता पर है, अतः बड़ी नौकाओं से, जिसमें लगभग 200 यात्री सवार हो सकते हैं, ओखा से बेट द्वारका आना-जाना किया जाता है।

WhatsApp Image 2023 09 05 at 11.40.27

हम भी इसी नौका में सवार हो गए। यहां हमें भिंड जिले के गोहद से आए हुए तीर्थ यात्रियों का समूह मिला, अपने प्रदेश के लोगों को देखकर अच्छा लगा। समुद्र में हरे एवं अरबी भाषा में लिखे हुए झंण्डों से युक्त अनेक नौकाएं मिलीं। नौका में सवार होते ही बेट द्वारका का किनारा दिखने लगता है एवं सबसे पहले दृष्टिगोचर होती है एक बड़ी मस्जिद। आश्चर्य ना करें, बेट द्वारका हिंदुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, परंतु यहां 80% आबादी मुसलमानों की है। अब इस द्वीप में मंदिर कम और मस्जिद-मजारें ज्यादा हैं। इस द्वीप की आबादी 12,000 है जिनमें लगभग 9,500 मुसलमान हैं। कुछ दिनों पूर्व बेटद्वारका मीडिया में चर्चित रहा है, क्योंकि वहां अवैध मजारों को अदालत के आदेश पर ध्वस्त किया गया था। पाकिस्तान का कराची बंदरगाह यहां से समुद्री रास्ते से 105 किलोमीटर 2 से 3 घंटे की दूरी पर ही है। यह भी खबरें थी कि बेट द्वारका में अवैध पाकिस्तानी बड़ी संख्या में निवास करने लगे हैं।

efe1ff0b 36e0 4f72 bf94 28988cf389e0
द्वापर में जब भगवान कृष्ण ने अनेक कारणों से मथुरा छोड़ने का निर्णय लिया, तब गरुड़ जी ने द्वारका क्षेत्र में जाकर, यादवों के अनुकूल निवास स्थान का पता कर, भगवान कृष्ण को अवगत कराया तब श्री कृष्ण सहित यादवों द्वारा द्वारकापुरी में प्रयाण किया गया। भगवान विश्वकर्मा द्वारा द्वारका में अनेक भवन बनाए गए। इस प्रसंग का विस्तृत वर्णन हरिवंश पुराण के 56,58वें अध्याय में है।

Beyt Dwarka in dwarka India - reviews, best time to visit, photos of Beyt Dwarka , Friends tours, things to do in dwarka | Hellotravel

सामान्यतया लोग द्वारका उस क्षेत्र को समझते हैं जहां गोमती नदी के तट पर भगवान द्वारकाधीशजी का मंदिर है। परंतु कम लोग जानते हैं कि द्वारका को तीन भागों में बांटा गया है। मूल द्वारका, गोमती द्वारका और बेट द्वारका। मूलद्वारका को सुदामापुरी भी कहा जाता है। यहां सुदामाजी का घर था। इसे भगवान श्रीकृष्ण ने बसाया था। गोमती द्वारका वह स्थान है जहां से भगवान श्रीकृष्ण राजकाज किया करते थे और बेट द्वारका वह स्थान है जहां भगवान का निवास स्थान था। इस स्थान का नाम भेंट द्वारका जिसे गुजराती में बेट द्वारका कहते हैं कैसे हुआ इसकी एक रोचक कथा है।
भेट का मतलब मुलाकात और उपहार भी होता है। इस नगरी का नाम इन्हीं दो बातों के कारण भेट पड़ा। दरअसल ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण की अपने मित्र सुदामा से भेट हुई थी। गोमती द्वारका से यह स्थान 35 किलोमीटर दूर स्थित है।इस मंदिर में कृष्‍ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। मान्यता है कि द्वारका यात्रा का पूरा फल तभी मिलता है जब आप भेट द्वारका की यात्रा करते हैं।मान्‍यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्‍ण का महल यहीं पर हुआ करता था। द्वारका के न्‍यायाधीश भगवान कृष्‍ण ही थे। माना जाता है कि आज भी द्वारका नगरी इन्‍हीं के आधिपत्य में है । इसलिए भगवान कृष्‍ण को यहां भक्‍तजन द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं। मान्‍यता है कि सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इन्‍हीं चावलों को खाकर भगवान कृष्‍ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की परंपरा है। ऐसी मान्‍यता है कि मंदिर में चावल दान देने से भक्‍त कई जन्मों तक गरीब नहीं होते।

सावन में क्या दान करना चाहिए, जानें 5 महादान | What should be donated in Sawan, know 5 great donations

Krishn Sudma | Krishna art, Krishna sudama, Krishna
यहां के पुजारी बताते हैं एवं ऐसा कहा भी जाता है कि महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद हिमयुग के पश्चात जल स्तर के 400 फीट बढ़ जाने से यह भव्य नगरी समुद्र में विलीन हो गई थी , लेकिन भेटद्वारका बची रही।द्वारका का यह हिस्सा एक टापू के रूप में मौजूद है। द्वारिका नगरी के अवशेषों की सबसे पहले खुदाई 1963 में डेक्कन कॉलेज पुणे के पुरातत्व विभाग और गुजरात सरकार ने मिलकर की शुरू की थी। पुरातत्ववेत्ता एच डी संकलिया की अगुवाई में हुए इस खुदाई में, शुरुआत में 3000 साल पुराने कुछ बर्तन मिले, इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की मरीन आर्कियोलॉजिकल यूनिट और देश के ख्यातिप्राप्त पुरातत्व विद डॉ एस आर राव के नेतृत्व में 1979 में यहां फिर से उत्खनन हुआ, जिसमें कुछ प्राचीन बर्तन मिलने के बाद समुद्र की गहराई में एक बेहद उन्नत सभ्यता के चिन्ह मिले। इसके बाद 2005 में एक और खोज में समुद्र के गर्भ में समाए पूरावशेष एक-एक कर सामने आए, तो हजारों वर्ष पुराने पौराणिक विवरण जीवंत हो उठे। विशालकाय भवनो और लंबी दीवारों के ढांचे, तराशे गए पत्थरों के टुकड़े इस पुरातन सभ्यता के अद्भूत वैभव को उजागर करने लगे। अन्वेषण विशेषज्ञों का कहना है कि यहां समुद्र के भीतर जो दीवारें, नालियां एवं मूर्तियां मिली है वे प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित है। यह इस बात का प्रमाण है कि द्वापर युग में अत्यंत समृद्ध द्वारका नगरी थी, जो समुद्र में समा गई।

नाव से उतरते ही, निकट ही मंदिर है। मंदिर का प्रवेश द्वार बिल्कुल सामान्य स्थिति में है, लगता ही नहीं किया कभी इस क्षेत्र में भगवान द्वारकाधीश का निवास स्थान रहा होगा। संपूर्ण परिसर अव्यवस्था के अधीन है। यहां भी मंदिर के अंदर प्रवेश करने के पूर्व मोबाइल, कैमरा इत्यादि सामग्री काउंटर पर जमा करवाया जाता है। मंदिर में तीर्थ यात्रीगण जैसे ही प्रवेश करते हैं, एक-एक पंडित, समूह में अपने साथ तीर्थ यात्रियों को आगे ले जाकर भगवान कृष्ण एवं अन्य विग्रहों का दर्शन कराते हैं एवं उसका माहात्म्य बताते चलते हैं। अंत में अन्न दान का महत्व बताते हुए बड़ी मार्मिकता से बेट द्वारका में रहने वाले ब्राह्मण परिवारों के पास अन्य कोई व्यवसाय ना होने, आजीविका इस मंदिर पर ही निर्भर रहने के कारण, 51 रुपए से लेकर ₹1100 तक, किसी भी राशि का स्वेच्छा से दान करने की अपील करते हैं। तीर्थ यात्री भी सहर्ष दान कर, पंडित जी से चावल के दाने प्राप्त करते हैं।
मंदिर का अपना अन्न क्षेत्र भी है। यहां मंदिर का निर्माण 500 साल पहले महाप्रभु संत वल्‍लभाचार्य ने करवाया था। मंदिर में विराजित भगवान द्वारकाधीश की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इसी प्रतिमा में भक्त मीराबाई सशरीर समा गई थी।
यात्रीगण भगवान कृष्ण के मंदिर में द्वारकाधीश जी का दर्शन करने के पश्चात कुछ दूरी पर स्थित हनुमान जी के मंदिर एवं उसके आगे देवी के मंदिर में भी दर्शन करने के लिए जाते हैं।
नौका में लौटते समय, पुनः मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के ग्रामीण तीर्थयात्रियों का समूह मिला जो 70 की संख्या में पुरुष, महिला, बुजुर्ग, बच्चों सहित दो बसों में, तीर्थ यात्रा के लिए निकले हैं, एवं 45 दिन अभी उन्हें और भ्रमण करना है। ऐसे ग्रामीण तीर्थ यात्रियों की श्रद्धा एवं भक्ति को प्रणाम है।

11705260 1005378112806818 903598837807026177 n

विक्रमादित्य सिंह ठाकुर, bhopal 

Somnath Jyotirlinga: क्रूरता पर भक्ति की विजय का प्रतीक – सोमनाथ ज्योतिर्लिंग,जहाँ सोम श्राप मुक्त हुए