Tree transplant : PM मोदी से भाजपा महिला नेत्री सीमा टाक ने वृक्षों के प्रत्यारोपण की नीति देश भर में लागु करने की मांग की!
Ratlam : देश के विकास और सुगम यातायात व्यवस्था को लेकर एटलेन, फोरलेन अन्य सड़क मार्ग, रेलमार्ग, आवास निर्माणों की वजह से फले-फूले वृक्षों को काट दिया जाता हैं और इन्हें काटना सरकार की विवशता भी होती हैं। इन वृक्षों को काट देने से कई तरह के नुकसान देखने को मिलते हैं देश में वृक्षों को काटने के बाद उन्हें प्रत्यारोपित करने पद्धति विकसित हुई हैं और उसी तर्ज पर देश-भर में कई एटलेन, फोरलेन पर हटाएं वृक्षों को प्रत्यारोपित किया गया हैं लेकिन देशभर में यह पद्धति लागू नहीं हुई है इसे समूचे देश में लागू कर देने से कई तरह के फायदे हमारे सामने आएंगे इस संदर्भ को लेकर रतलाम की भाजपा महिला नेत्री सीमा टाक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक पत्र लिखकर गुहार लगाई है। उन्होंने यह पत्र देश के अन्य जिम्मेदार मंत्री से लेकर विधायक तक को लिखा है।
श्रीमती सीमा टाक ने पत्र में लिखा है पेड़ या वृक्षों की कटाई, क्षतिपूर्ति के रूप में नए पौधों का रोपण और रोपण के बाद उनमें जीवित पौधों की संख्या तथा पेड़ो के प्रत्यारोपण (transplant) के आंकड़े संधारण करने का अनुग्रह।
नये सड़कमार्ग, रेलमार्ग, एयरपोर्ट, आवास निर्माण और अन्य निर्माण/विकास कार्यों के सम्पादन के दौरान उन मार्गो/स्थलों पर अथवा बीच मे आ रहें वृक्षों/पेड़ो को हटाना सरकारों व निर्माण एजेंसियों की विवशता होती है। हटाने के दो रास्ते हैं प्रथम उन पेड़ों को काटकर हटाना दूसरा उन्हें वहां से हटाकर अथवा उखाड़कर अन्य स्थान पर रोपित (transplant) करना। परिवहन मंत्री महोदय नितिन गडकरी के यूट्यूब पर उपलब्ध उद्बोधन के अनुसार अब पेड़ो को काटने के स्थान पर उनका प्रत्यारोपण (transplant) अन्य उपयुक्त स्थलों पर किया जायेगा। शायद केन्द्र सरकार के अधीन हो रहें विकास कार्यों के लिए यह नीति निर्धारित हुई हैं, लेकिन राज्यो में वही पुरानी नीति पेड़ो को काटने की ही चल रही है। हमारे रतलाम शहर में शहरवासियों ने विगत समय में वृक्षों को काटने और उन पर पक्षियों द्वारा बनाए उनके आश्रय स्थलों को नष्ट होते हुए और नवजात पक्षियों को अकाल मौत मरते हुए देखा हैं। मेरा करबद्ध आग्रह है कि पेड़ो को काटने की नीति को बन्द किया जाना चाहिए। वृक्ष ही पक्षियों के आश्रम स्थल है यदि पेड़ को काटने या हटाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा हो तो कम से कम पहले पक्षियों के बच्चे और पेड़ो पर सेवित हो रहे अंडों को जीवदया दृष्टिगत रखते हुवे सुरक्षा प्रदान करना पुनीत कार्य के रूप में करना चाहिए।
पर्यावरण सरंक्षण और पारिस्थितिकी संतुलन के लिए मानव जगत को प्रकृतिदत्त संसाधनों के दोहन के साथ पुनर्स्थापन और विकल्प भी तलाश करना आवश्यक है। वर्तमान में कार्बन उत्सर्जन को कम करने का विकासशील देशों पर दबाव बना हुआ है, जिनमें भारत भी है। ऊर्जा उत्पादन के पारंपरिक स्रोत जिनसे कार्बन उत्सर्जन होता हैं उनको कम कर विकल्पों को तलाश कर उनका उपयोग हमारे देश मे आरंभ हो गया है, कार्य उत्तरोत्तर प्रगति पर है। पेड़-पौधे कार्बन उत्सर्जन कम करने के साथ प्राणवायु के स्रोत भी है जो प्राणीमात्र के जीवन के लिए आवश्यक है। प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन के अभाव में प्राणी जगत की कल्पना ही नहीं कर सकते।
सीमा ने लिखा कि मैं पर्यावरणविद नहीं हूं न ही पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने का मुझे ज्यादा अनुभव है लेकिन सामान्य रूप से भूजल वृद्धि और पौधरोपण के कार्य अपने क्षेत्र में करती रही हुं और पेड़ो की कटाई की घटनाओं पर बहुत चिन्ता होती हैं। इस सोच के साथ पेड़ो/वृक्षों के सरंक्षण के लिए निम्नानुसार आग्रह हैं!
1-वृक्षों को काटने के स्थान पर प्रत्यारोपण (transplant) की नीति देश भर में लागू हो। एक पौधे को पेड़ बनने में वर्षो लग जाते हैं। इसलिए किसी पेड़ के प्रत्यारोपण पर होने वाला व्यय उस पेड़ की उपयोगिता से बहुत कम होता है।
2- पेड़ो की कटाई चाहे वैध रूप से हो या अवैध रूप से, उसका हिसाब रखना चाहिए। कृषि क्षेत्र में काटे गए पेड़ो का हिसाब कृषि अथवा राजस्व विभाग, वनक्षेत्र में वन विभाग, शहरी क्षेत्र में स्थानीय निकाय रखे, उन काटे गए पेड़ो के स्थान पर कितना पौधरोपण किया गया हैं उसका हिसाब तहसील स्तर से केन्द्र स्तर तक क्षेत्रवार रखने पर ही सतत निगरानी के कारण पेड़ो की कटाई हतोत्साहित होगी और नवीन पौधों का रोपण और रोपण के बाद उनकी जीवितता की दर में पर्याप्त वृद्धि देखने को मिलेगी। इससे पेड़ो की कटाई और क्षतिपूर्ति के रुप में पेड़-पौधों के रोपण के डाटा लगातार अपडेट होते रहेंगे। पेड़-पौधों की अवैध कटाई के विरुद्ध और कठोर कानून आवश्यक है।
3- पेड़ों के प्रत्यारोपण अथवा नए पेड़ लगाने के लिए उपयुक्त स्थल नदियों के किनारों की नमीयुक्त भूमि उचित प्रतीत होती है। इन स्थानों पर पेड़ों के प्रत्यारोपण और पौधरोपण तो सफल होगा ही साथ ही नदियों के तट मजबूत होंगे, जिससे नदियों के किनारे की भूमि का कटाव रुकेगा, पेड़ों के विकसित होने के साथ-साथ आस-पास पशुओं के लिए चारागाह विकसित होंगे, नदियों के किनारे घास के कारण किनारों से बहकर आने वाले अपशिष्ट नदियों में नही आ सकेंगे, पक्षी अपने आश्रय स्थल बना सकेंगे। यदि सम्पूर्ण देश मे यह कार्य होता हैं तो पक्षियों और वन्य प्राणियों की कई लुप्त प्रजातियों का सरंक्षण होगा।
4- नदियों के किनारे वृक्षों के प्रत्यारोपण/पौधरोपण और उनकी सतत निगरानी से नदियों के तटों पर अतिक्रमण नही हो सकेगा। नदी किनारे कोई आपत्ति करने वाला नही होने से अतिक्रमण करना आसान होता है। अतः नदियों किनारे वृक्षारोपण सुरक्षात्मक भी हैं।
5- किसी समय वर्ष पर्यन्त प्रवाहमान कई नदिया पेड़-पौधों की कटाई और खनन से बरसाती नदिया बनकर रह गई है। यदि नदियों के क्षेत्र में व्यापक पेड़ पौधे विकसित होने से कुछ वर्षों में ये नदिया अपने वर्षो पुराने स्वरूप में लौटकर वर्ष पर्यन्त इनमें जल प्रवाहित होने की आशा की जा सकती है।
6- पेड़-पौधों और नदियों के जल प्रवाह से भूजल स्तर में वृद्धि होगी। यदि नदियों के प्रवाह क्षेत्र मे उपयुक्त स्थलों पर एनीकट और लघु बांध बनाकर बीच बीच मे जल भंडारण किया जाता है तो पानी की उपलब्धता के साथ क्षेत्र में भूजल की आशातीत वृद्धि हो सकती है।
7- नदियों के किनारे वृक्षों के प्रत्यारोपण और नवीन पौधरोपण करने के बाद निगरानी वनक्षेत्र में वन विभाग, शहरी क्षेत्र में नगरीय निकाय और ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत स्तर तक ग्रामीण विभाग द्वारा की जा सकती है। यह कार्य मनरेगा के तहत भी कराया जा सकता है।पुन: पेड़ पौधों की सुरक्षा की अपील करते हुए मेरी भावना पत्र के माध्यम से सादर प्रस्तुत है।
सीमा टाक ने यह पत्र नितिन गडकरी केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री, भूपेन्द्र यादव,
वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री, मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव तथा चेतन्य काश्यप सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री को भी लिखा है।