
जनजातीय संस्कृति की जीत: रतनपुरा में धर्मांतरण से लौटे परिवार ने सनातन पद्धति से किया अंतिम संस्कार
राजेश जयंत
अलीराजपुर। मध्य प्रदेश के पश्चिम सीमांत जनजातीय बहुल जिले के उदयगढ़ विकासखंड के ग्राम रतनपुरा में एक परिवार जिसने कुछ समय पहले प्रलोभन और बाहरी प्रभावों के चलते ईसाई धर्म अपना लिया था, वह अपनी संस्कृति की गहराई को अंततः भुला नहीं पाया। समाज से कटे रहने की वेदना और बेटी के आकस्मिक निधन की पीड़ा ने उसे उसकी जड़ों की ओर वापस लौटने को मजबूर कर दिया।

परिवार ने अपनी युवा बेटी का अंतिम संस्कार ईसाई रीति से करने के बजाय अपने मूल आदिवासी संस्कारों के अनुरूप करने का निर्णय लिया। यह कदम केवल एक धार्मिक विधि से बढ़कर धर्मांतरण के बढ़ते दंश के खिलाफ जनजातीय समाज की जागृत चेतना का प्रतीक बन गया।
▪️धर्मांतरण के बाद विवादों में घिरा था परिवार
▫️रतनपुरा तडवी फलिया का यह परिवार कुछ समय पहले ईसाई मत अपनाकर चंगाई सभाओं और अन्य धार्मिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होने लगा था। ग्रामीणों के अनुसार परिवार न केवल स्वयं धर्मांतरित हुआ बल्कि पास्टर की तरह अन्य लोगों को भी प्रभावित करने की कोशिश कर रहा था। इस कारण गांव में पहले से असंतोष पनप रहा था और समाज ने परिवार से दूरी बना ली थी।

▪️बेटी की मृत्यु ने जगाई सांस्कृतिक चेतना
▫️बीते दिनों परिवार की 18 वर्षीय बेटी की बीमारी से मृत्यु हो गई। परिजन अंतिम संस्कार गांव में करना चाहते थे, किंतु समाज ने विरोध जताते हुए कहा कि जिसने परंपरा, देवस्थानों और समाज का त्याग कर दिया हो, वह जनजातीय श्मशान भूमि का उपयोग नहीं कर सकता। जनजातीय समुदाय के लिए यह केवल धार्मिक प्रश्न नहीं बल्कि सांस्कृतिक अस्तित्व का मुद्दा है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बच्ची का इलाज आधुनिक चिकित्सा पद्धति से करवाने के बजाय चमत्कारिक चंगाई सभा के भरोसे छोड़ दिया गया, जिससे उसकी स्थिति बिगड़ती चली गई। यह बात गांव में गहरी नाराजगी का कारण बनी।

▪️समाज की समझाइश और घर-वापसी का निर्णय
▫️दुख के इस समय में गांव के पटेल, तडवी बंधु, सामाजिक कार्यकर्ता और वरिष्ठ जनजातीय प्रतिनिधियों ने परिवार को समझाइश दी कि यदि वे समाज में सम्मानपूर्वक रहना चाहते हैं तो मूल परंपराओं को अपनाना ही होगा। सामूहिक बैठकें हुईं और लंबे संवाद के बाद परिवार के मुखिया केसर सिंह सुकलिया ने सार्वजनिक रूप से मूल धर्म संस्कृति में लौटने का संकल्प लिया। यह निर्णय गांव के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बन गया।
▪️शुद्धिकरण के बाद परंपरागत अंतिम संस्कार
▫️घर-वापसी का निर्णय लेते ही केसर सिंह समाज के जनों के साथ बाबा देव मंदिर पहुंचा। यहां विधिवत पूजा, प्रार्थना और शुद्धि विधान के बाद समाज ने उन्हें पुनः अपने गोत्र और कुलाचार में स्वीकार किया। शुद्धिकरण के बाद दिवंगत युवती का अंतिम संस्कार पूर्ण हिंदू जनजातीय रीति पद्धति से किया गया। इस अवसर पर गांव के प्रमुख वेस्ता पटेल, नरसिंह तडवी, धुन्दरसिंह चौकीदार, गजराज अजनार, बारम सोलंकी, सुरसिंह बघेल, नानसिंह भगडिया सहित कई ग्रामीण उपस्थित रहे।

▪️जनजाति विकास मंच की महत्वपूर्ण भूमिका
▫️जनजाति विकास मंच के जिलाध्यक्ष राजेश डुडवे ने पूरी प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाई। ग्रामीणों का कहना था कि परिवार लंबे समय से अन्य लोगों को भी प्रलोभन देकर धर्मांतरण कराने का प्रयास कर रहा था। डुडवे ने बताया कि बेटी के इलाज में लापरवाही और चंगाई सभा पर निर्भरता का मुद्दा उठने के बाद परिवार किसी भी सवाल का उत्तर नहीं दे पाया। अंततः सामाजिक दबाव, वास्तविकता और आत्ममंथन ने उन्हें मूल संस्कृति में लौटने के लिए प्रेरित किया।

▪️समाज का कठोर लेकिन स्पष्ट संदेश
▫️रतनपुरा की यह घटना केवल एक गांव की कहानी नहीं बल्कि पूरे आदिवासी अंचल में फैल रहे धर्मांतरण के खिलाफ एक सशक्त सामाजिक प्रतिक्रिया है। यह संदेश है कि चाहे कोई कितनी भी दूर चला जाए, जनजातीय संस्कृति, देवस्थानों का सम्मान और सामुदायिक एकता उससे कहीं अधिक शक्तिशाली है। संकट की घड़ी में वही समाज हाथ थामता है जिसकी परंपराओं का व्यक्ति सम्मान करता है, और जिसे छोड़कर जाने वालों के लिए यहां स्थान नहीं बन पाता।
📍रतनपुरा में धर्मांतरित परिवार की घर-वापसी मात्र एक धार्मिक निर्णय नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना है। यह घटना साबित करती है कि धर्मांतरण के प्रलोभनों के बावजूद जनजातीय समाज की जड़ें गहरी, मजबूत और जीवंत हैं। परंपरा, पहचान और सामुदायिक संगठित चेतना ही इस संस्कृति की सबसे बड़ी ताकत है।





