Tribal State: राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों के सीमावर्ती 49 आदिवासी बहुल जिलों को जोड़कर अलग भील प्रदेश बनाने की मांग

बांसवाड़ा जिले के मानगढ़ धाम में गुरुवार को हुई आदिवासियों की महारैली

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Tribal State: राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र राज्यों के सीमावर्ती 49 आदिवासी बहुल जिलों को जोड़कर अलग भील प्रदेश बनाने की मांग

गोपेन्द्र नाथ भट्ट की खास रिपोर्ट

दक्षिणी राजस्थान के मेवाड़ और वागड़ अंचल में वर्षों से चली आ रही अलग भील प्रदेश की मांग गुरुवार को राजस्थान एवं गुजरात की सीमा पर स्थित आदिवासियों के जलियांवाला मानगढ़ धाम और राजस्थान विधान सभा से भी एक बार फिर से सुनाई दी। लोकसभा चुनाव 2024 में विजय का परचम लहराने के बाद बांसवाड़ा डूंगरपुर सांसद राजकुमार रोत ने संसद में शपथ लेने के वक्त भी भील प्रदेश की मांग की थी।

बांसवाड़ा जिले में मानगढ़ धाम पर राजस्थान के साथ मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र समेत 4 राज्यों के कुल 40 से ज्यादा जिलों से आदिवासी लाखों की संख्या में यहां एकजुट हुए। ये लोग इन जिलों को मिलाकर भील प्रदेश के गठन की मांग कर रहे हैं। गुजरात की सीमा से लगते मानगढ़ धाम की ऊंची पहाड़ियों पर आदिवासी सांस्कृतिक महारैली में बांसवाड़ा-डूंगरपुर से नवनिर्वाचित सांसद राजकुमार रोत और बागीदौरा विधायक जयकृष्ण पटेल मौजूद रहे। यहां पहाड़ी पर सभी वाहनों को जाने से रोक दिया गया है और करीब 3-4 किमी दूर पार्किंग स्थल बनाया गया। हालांकि इस महारैली में सिर्फ आदिवासी ही नहीं, बल्कि इस कार्यक्रम में कई मुस्लिम समाज के लोगों ने भी हिस्सा लिया। इस पूरे आयोजन में भारत आदिवासी पार्टी बाप के कार्यकर्ता और आदिवासी समाज इसलिए भी उत्साहित दिखा क्योंकि बांसवाड़ा लोकसभा चुनाव के साथ ही जिले की बागीदौरा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भी पार्टी ने झंडा गाड़ा है। कांग्रेस के दिग्गज नेता और फिर बीजेपी ज्वॉइन करने वाले महेंद्रजीत सिंह मालवीया की सीट पर जयकृष्ण पटेल 52 हजार वोटों से जीत गए थे. बाप पार्टी ने राजनीतिक ताकत बढ़ने के बाद से ही भील प्रदेश की मांग तेज कर दी थी. भील प्रदेश की मांग कर रहे लोगों का कहना है कि जल, जमीन और जंगल पर हमारा हक है. इस क्षेत्र में पांचवी अनुसूची लागू करने की भी मांग की जा रही है. बाप पार्टी की राजनीतिक ताकत बढ़ने के बाद बाप के कार्यकर्ताओं और नेताओं के हौसले बुलंद हो गए है।

इस मौके पर सांसद राजकुमार रोत ने कहा “हमारे पूर्वजों की मांग थी कि यह क्षेत्र भील प्रदेश बने। इसी को हम फिर से मांग उठा रहे हैं और यह मांग पूरी होनी चाहिए।इसको लेकर आसपास राज्यों के आदिवासी लोगों का समर्थन देकर भील प्रदेश की मांग उठा रहे हैं.”बता दें कि राजकुमार रोत इस समय भारत आदिवासी पार्टी के एक मात्र सांसद है ।मानगढ़ धाम पर हुई इस महारैली में बांसवाड़ा डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र के सांसद राजकुमार रोत, बागीदौरा विधायक जय कृष्ण पटेल, आसपुर विधायक उमेश डामोर, धरियावद के विधायक, सैलाना के विधायक एवं अन्य प्रांतों के जनप्रतिनिधि शामिल हुए और भील प्रदेश की मांग सहित अन्य मुद्दों को लेकर अपने विचार रखें।

मानगढ़ धाम में गुरुवार को हुई आदिवासी सांस्कृतिक महारैली का आयोजन भारतीय आदिवासी पार्टी के बैनर तले हुआ इसमें आदिवासी परिवार और चार राज्यों के आदिवासी प्रमुख संगठन शामिल हुए। महारैली में भील प्रदेश के लिए राजनीतिक प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजने का फैसला लिया गया। नए भील प्रदेश में 4 राज्यों के 49 जिले शामिल करने की योजना बनाई जा रही है। वैसे यह आदिवासी सांस्कृतिक महारैली हर वर्ष 17 जुलाई को होती थी पर इस बार 18 जुलाई को हो रही है। बांसवाड़ा सांसद राजकुमार रोत इस रैली में शामिल होने के लिए जनता से अपील की थी। वैसे राजस्थान की भाजपा सरकार का रुख भी इस मामले में कांग्रेस सरकार की तरह अलग भील प्रदेश के पक्ष में नहीं है। भजनलाल सरकार ने इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया है। जनजाति विकास मंत्री ने विधान सभा में बकायदा इसकी घोषणा भी कर दी है।भारत आदिवासी पार्टी की भीलप्रदेश की मांग को राजस्थान के जनजाति क्षेत्रीय विकास मंत्री और भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेता बाबूलाल खराड़ी ने नकार दिया है. खराड़ी ने कहा कि हम सामाजिक समरसता में विश्वास रखते हैं. छोटे राज्य होना चाहिए, लेकिन जाति आधारित राज्य की मांग जायज नहीं है।हमारी तरफ से ऐसा प्रस्ताव केंद्र को नहीं भेजा जाएगा।बाबूलाल खराड़ी ने आगे कहा कि आदिवासी क्षेत्रों के विकास को लेकर राज्य और केंद्र से फंड मिल रहा है. सरकार ने 1500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया है. यह बजट के अतिरिक्त है. कर्मचारियों का अलग कैडर है, भर्तियां भी हमारा ही विभाग करेगा. खराड़ी के बयान से साफ जाहिर है कि भजनलाल सरकार भील प्रदेश की मांग को सिरे से खारिज कर रही है.

हालांकि भारत आदिवासी पार्टी ने भील प्रदेश में जिन प्रदेशों और उन राज्यों के कौन-कौन जिले शामिल किए जाने प्रस्तावित है। उसका जो खाँका बनाया है उसके अनुसार गुजरात के अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा और भरुच,

राजस्थान के  बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालौर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां, पाली,

मध्य प्रदेश के इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, अलीराजपुर और

महाराष्ट्र के नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर, नंदुरबार, अलीराजपुर जिलों को शामिल करना बताया हैं।

भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) से टूटकर बनी भारत आदिवासी पार्टी मात्र तीन साल में राजस्थान की तीसरी सबसे बड़ी राजनैतिक शक्ति बन चुकी है।भारत आदिवासी पार्टी का गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के आदिवासियों बाहुल्य सीटों पर अच्छा-खासा दखल है. इन चारों राज्यों की 49 जिले और एक केंद्र शासित प्रदेश को शामिल करते हुए अलग भील प्रदेश बनाने की मांग की जा रही है.

भारत आदिवासी पार्टी एक लम्बे समय से भील प्रदेश की मांग कर रही है।

महारैली में पारित भील प्रदेश के राजनीतिक प्रस्ताव  के अनुसार गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के जनजाति बहुल क्षेत्र के जिलों को मिलाकर अलग भील प्रदेश की मांग तथा जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण जैसे मुद्दों को उठाया गया है।दूसरी ओर भील प्रदेश की मांग पर भारत आदिवासी पार्टी को कांग्रेस का समर्थन मिला है। कांग्रेस नेता और पूर्व जनजाति विकास मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया का कहना है कि अलग भील प्रदेश की मांग जायज है और वह बनना चाहिए. लेकिन यह केंद्र सरकार के विवेक पर निर्भर करता है। हम भी इसकी मांग करते रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जाति और जनजाति आयोग के अध्यक्ष ,सांसद और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारों में कई बार मंत्री रहें भीखा भाई भील ने कई दशकों पहले भील प्रदेश की मांग उठाई थी और गुजरात और मध्य प्रदेश के साथ महाराष्ट्र के आदिवासी नेताओं से भी इस बाबत समर्थन मांगा था लेकिन तब उनके प्रयास सफल नहीं हो पाए थे।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दक्षिणी राजस्थान और आसपास के भील लैंड का मिजाज अब बदल रहा है? यदि इसे सही ढंग से नहीं लिया गया तो हालात किसी भी हद तक पहुंच सकते है।

अब देखना है कि भील प्रदेश की मांग पर गुरुवार को मानगढ़ पर हुई आदिवासियों की इस महारैली का क्या कुछ असर होता है?