Trump & Rahul On same Pitch: बचकानापन और हठधर्मीपन की होड़

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Trump & Rahul On same Pitch: बचकानापन और हठधर्मीपन की होड़

रमण रावल

दुनिया में इस समय जो छवि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की है, वही भारत में राहुल गांधी की है। ट्रम्प दुनिया को मूर्ख समझते हैं । वे चाहते हैं कि किसी भी राष्ट्र की सरकार यदि सूई भी बनाये या आयात-निर्यात करे तो पहले अमेरिका से पूछ ले। वह न भी खरीदे तो भी बेचे तभी जब अंकल सैम कहे। राहुल बिल्कुल उनके नक्शे कदम पर चल रहे हैं। वे चाहते हैं कि भारत सरकार याने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वही करे, जो राहुल कहें। जो कांग्रेस की रीति-नीति हो। जो इस देश में नेहरू-इंदिरा-राजीव गांधी या मनमोहन सरकार ने किया वैसा ही करे। उनका यह आग्रह एक नादान,जिद्दी बच्चे से भी कहीं ज्यादा तीव्रता वाला होता जा रहा है।

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दोनों में समानता की अनेक मिसाल हैं। आप यह भी कह सकते हैं कि राहुल उसी बात को आगे बढ़ाते हैं, जिसे ट्रम्प कहते हैं। जैसे परीक्षा में आगे बैठा मेधावी विद्यार्थी अपनी उत्तर पुस्तिका में जो लिख देता है,उसे वैसा ही पीछे बैठने वाला शंख छात्र टीप लेता है। इससे वह परीक्षा तो पास कर लेता है, लेकिन ज्ञानी या शिक्षित नहीं हो पाता। जैसे ट्रम्प ने ढाई दर्जन बार(कांग्रेसी गिनती कर रहे थे, ताकि कोई तथ्यात्मक चूक न हो) कहा कि भारत-पाक युद्ध उन्होंने रुकवाया। राहुल वही चिंदी लेकर सड़क से संसद तक दौड़ रहे हैं। ट्रम्प ने कहा कि वे भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगायेंगे, क्योंकि वह हमारे इनकार के बावजूद रूस से तेल व हथियार खरीद रहा है। राहुल ने कभी नहीं कहा कि भारत को इससे डरने की जरूरत नहीं या वह अमेरिका की चिंता न करे या यह कि हम देश के साथ हैं,राष्ट्र हित पहले देखे।

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ट्रम्प ने घोषणा कर दी कि भारत की इकॉनॉमी मर गई है तो राहुल ने इसे ब्रह्म वाक्य मानकर बोला कि सही है। उन्होंने तो ट्रम्प से आगे जाकर इसका कारण तक बता दिया कि गौतम अडाणी को भारत सरकार जो मदद कर रही है तो उसका तो भला हो गया, लेकिन देश डूब गया। राहुल को इससे कोई मतलब नहीं कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत की विकास दर 6.5 प्रतिशत और अमेरिका की 1.9 रहने की उम्मीद जताई है। अब आप चाहो तो अपना सिर पीटते रहो, राहुल ने बता दिया, सो बता दिया। राहुल को तो शायद यह भी पता नहीं होगा कि भारत चौथी अर्थ व्यवस्था बन चुका है और संभव है कि एक साल के भीतर तीसरे क्रम पर आ जाये। पता नहीं उन्हें जीडीपी निकालना भी आता है या नहीं ?

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क्या किसी भारतीय नागरिक को याद आता है कि राहुल गांधी ने कभी संसद में या बाहर अपने किसी उद्बोधन में अर्थ नीति पर बात करते देखा-सुना हो ? वे यह तो हजारों बार कह चुके होंगे कि हमारी अर्थ व्यवस्था खराब हो रही है, गड्‌ढे में जा रही है, देश गरीब होता जा रहा है,लोगों को खाने-कमाने के लाले हैं, लेकिन कभी उन्हें किसी ने इन विषयों पर गंभीर समाधान प्रस्तुत करते देखा-सुना है ? उन्हें तो पता भी नहीं होगा कि किसी समय जब विपक्ष सरकार की आलोचना करता था तो उस विषय के समाधान भी प्रस्तुत करता था।

ऐसे ही ट्रम्प सुबह-शाम में अलग-अलग राय व्यक्त करते हैं , फिर भी वे कुछ लोगों की नजरों में महान विचारक,शासक माने जा रहे हैं। अब तो अमेरिकावासियों को भी याद नहीं कि ट्रम्प ने कितनी नीतियां बनाकर वापस ले लीं, कितने फैसले पलट दिये, कितनी विरोधाभासी बातें कह डालीं। आप कह सकते हैं कि क्या अमेरिका के लोग मूर्ख हैं, जिन्होंने उन्हें भारी बहुमत से चुना। तो सुनिये, जब सब्जी मंडी में केवल भिंडी और आलू ही बेचे जा रहे हो तो आप लौकी,कद्दू,पालक,मैथी कैसे खरीद पाओगे? यह अमेरिकी लोकतंत्र का दुर्भाग्य रहा कि पिछले चुनाव में वहां के नागरिकों के पास चयन का विकल्प केवल भिंडी व आलू के बीच ही था।

दुनिया इस समय बेहद गंभीर,असमंजस और मुश्किलों वाले दौर से गुजर रही है। कभी कहीं युद्ध भड़कने का खतरा खड़ा है तो कभी कहीं पर अंतरराष्ट्रीय व्यापार के तकाजों,शिष्टाचार की तिलांजलि देकर तुगलकी फ‌रमान जारी करने के संकट से रूबरू होना पड़ रहा है। ट्रम्प तो दुनिया नामक परिवार के स्वघोषित मुखिया की तरह व्यवहार कर रहे हैं। वे बताते हैं कि कब इजराइल गलत है, कब गाजा वाले, कब यूक्रैन तो कब रूस और कब इरान। युद्ध को कभी अनिवार्य तो कभी विध्वंसक ठहराने वाले ट्रम्प का अहंकार जब चोटिल होता है तो वे इरान पर बमबारी करने में एक पल की देरी नहीं करते। यह और बात है कि छंटाक भर समझे जा रहे इरान ने उनको औकात दिखा दी। अब वे रूस की और परमाणु हथियार से लैस पनडुब्बी रवाना कर रहे हैं तो गाजा को पूरी तरह बरबाद होने से बचने के उपाय भी बता रहे हैं।

वे यह भूल रहे हैं कि छंटाक-छंटाक भर समझे जाने वाले और सचमुच में उसी हैसियत वाले देश भी उनको आंखें दिखाने लगे हैं। दक्षिण अफ्रीका,ब्राजील,इरान,कनाडा उनकी गीदड़ भभकियों से नहीं डर रहे और दहाड़ कर कह रहे हैं कि किसी भरोसे में मत रहना । भारत ने तो ट्रम्प के बेतुके बोलों पर प्रतिक्रिया तक देना उचित नहीं समझा। संसद में इसका जवाब अवश्य दिया कि हमें दुनिया के किसी भी देश ने पाक के साथ युद्ध रोकने के लिये नहीं कहा। राहुल और विपक्ष की मानसिकता देखिये कि वे अभी-भी कह रहे हैं कि ट्रम्प का नाम क्यों नहीं लिया जा रहा ? अरे, किसी का नाम लेकर उन्हें हीरो क्यों बनाया जाये? जब दुनिया में कोई नहीं तो क्या ट्रम्प अंतरिक्ष के किसी देश के राष्ट्रपति हैं ?

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राहुल गांधी का भी अजीब हाल है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में इतनी बचकानी बातें करने वाला,इतना गैर जिम्मेदाराना आचरण करने वाला नेता तो निश्चित नहीं हुआ । देश को यह राहुल ही बताते हैं कि पाक के साथ संघर्ष में भारत के भी कुछ जेट विमान गिरे हैं । जिसे इतना तक नहीं मालूम कि जब दो देशों के बीच युद्ध या झड़प होती है तो सैनिक भी हताहत होते हैं,संसाधनों का भी नुकसान होता है। तब भी महत्वपूर्ण क्या होता है-जानमाल का कोई नुकसान या हार-जीत ? क्या 1962,1965,1971 में किसी विपक्ष ने पूछा कि बताओ कितने सैनिक शहीद हुए और कितने हथियारों का नुकसान हुआ । कल से तो ये कम अक्ल लोग यह भी पूछना शुरू कर देंगे कि आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में कितनी गोलियां चलीं ? वे ही तय करते हैं कि ट्रम्प ने जो भारत को डेड इकॉनॉमी वाला देश कहा है, वही सही है। वे ही यह सुनिश्चित करते हैं कि जो मतदाता सूची बनी है, वह चुनाव आयोग ने नहीं, मोदी सरकार ने बनाई है। वे ही यह तय करते हैं कि रोहिंग्या या बांग्लादेशी व्यक्ति को नहीं निकाला जाना चाहिये, क्योंकि यहां रहना उनका मानवाधिकार है।

विपक्ष इस समय जिस अंधी खाई की ओर फिसलता जा रहा है,इसमें वह खुद का तो सत्यानाश कर ही रहा है, लोकतंत्र की जड़ों में भी मट्‌ठा डाल रहा है। मुझे आश्चर्य होता है कि एक कथित राष्ट्रीय राजनीतिक दल के सर्वोच्च माने जाने वाले नेता को उनका एक भी सलाहकार सही बात क्यों नहीं बताता ? क्या उनके ही दल के लोग भारतीय राजनीति में उनका और उनके परिवार का नामोनिशान ही मिटाने में तो नहीं लगे हैं ?