Two Finger Test:दुष्कर्म पीड़िता का ‘टू फिंगर टेस्ट’ अवैधानिक, रोक के बाद भी चलन में!
New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने यौन पीड़िता मामले की जांच में होने वाले ‘टू फिंगर टेस्ट’ को अवैधानिक और अवैज्ञानिक बताते हुए इस पर रोक लगाने के सख्त आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए कि अगर कोई व्यक्ति टू फिंगर टेस्ट करता है या करवाता है तो उसे कदाचार का दोषी मना जाएगा। जबकि, इस तरह की जांच पर पहले से ही प्रतिबंध है। दुष्कर्म पीड़िता के विरुद्ध अपराध को प्रमाणित करते के लिये जॉंच एजेंसियों द्वारा अक्सर टू फिंगर टेस्ट किया जाता है। यह पिछले करीब एक दशक से प्रतिबंधित है, फिर भी जागरूकता और जानकारी के अभाव में यह अभी भी प्रचलन में है। पुलिस या जॉंच एजेंसियॉं तो दूर, बहुत सी अदालतें भी इस प्रतिबंध को लेकर बहुत अधिक गंभीर नजर नहीं आतीं। जिस मामले की वजह से यह मुद्दा फिर से सुर्खियों में आया।
यह मामला झारखंड का है। राज्य के हाईकोर्ट ने बलात्कार के एक आरोपी को इसी आधार पर बरी कर दिया कि पुलिस ने पीड़िता का ‘टू फिंगर टेस्ट’ नहीं कराया था। जबकि, वास्तविकता तो यह है कि सुप्रीम कोर्ट 2013 में ही इस टेस्ट के विरुद्ध दिशा-निर्देश दे चुका है। उसने साफ-साफ कहा था कि टू फिंगर टेस्ट पीड़िता की निजता, शारीरिक और मानसिक अखंडता और गरिमा के अधिकार का उल्लंघन करता है।
इसके बाद 2014 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस परीक्षण को लेकर विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए थे। इनमें इसे गैरजरूरी बताया गया और कहा गया था कि इसे यौन हिंसा के मामलों के प्रमाणीकरण का आधार नहीं बनाया जाना चाहिए। इन दिशा निर्देशों में परीक्षण करने वाले डॉक्टरों की, दुष्कर्म पीड़िता के लिए ‘पुरुष संसर्ग की आदी’ या ‘यौन संबंधों का अनुभव’ जैसी टिप्पणियों पर भी रोक लगाई गई थी।
2020 में गुजरात उच्च न्यायालय और इसी साल 21 अप्रैल को मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच द्वारा भी इसके निरंतर उपयोग की निंदा की जा चुकी है। इसके बावजूद अनेक राज्यों ने इन दिशा निर्देशों को लागू करने में कभी गंभीरता नहीं दिखाई।
अभी भी पुलिस दुष्कर्म के मामलों में पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट कराती है। वकीलों द्वारा टेस्ट पॉजिटिव आने पर पीड़िता को दुष्चरित्र साबित कर, अपराधी को बचाने की कोशिश की जाती है। जबकि टेस्ट का पॉजिटिव होना, यह कतई साबित नहीं करता कि पीड़िता के साथ बलात्कार नहीं किया गया है।
कोर्ट के तेवर बेहद सख्त
एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट द्वारा टू फिंगर टेस्ट की निरूपयोगिता और निर्दयता को रेखांकित किया गया है। इस बार कोर्ट ने काफी सख्त तेवर अपनाए हैं। अभी भी टेस्ट जारी रहने पर नाराजगी जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पीड़ित महिला की गवाही ही आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है। टू फिंगर टेस्ट घिनौना भी है और अवैज्ञानिक भी।
SC ने भ्रामक बताया, खारिज किया
कोर्ट ने कहा कि यह यौन हिंसा की शिकार महिला को फिर से एक मानसिक यंत्रणा से गुजरने के लिए विवश करता है। कोर्ट ने कहा है कि यह धारणा गलत है कि सेक्सुअली एक्टिव महिला के साथ दुष्कर्म नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों, उनके डीजीपी और केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय को यह सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिये हैं कि आगे किसी भी पीड़िता का टू फिंगर टेस्ट न किया जाए। कोर्ट ने साफ-साफ कहा है कि अब अगर कोई व्यक्ति टू फिंगर टेस्ट करता है या करवाता है तो उसे कदाचार का दोषी मना जाएगा।