जमानत तक गंवा चुकी दो सीटों पर भाजपा की पैनी नजर

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जमानत तक गंवा चुकी दो सीटों पर भाजपा की पैनी नजर

सुदेश गौड़ की खास रिपोर्ट 

मध्य प्रदेश में 200 से अधिक सीट और 51% वोट शेयर के लक्ष्य के साथ भाजपा एक बार फिर सरकार बनाने के लिए मैदान में उतर चुकी है और अब की बार का लक्ष्य पहले की लक्ष्यों से ज्यादा बड़ा है।

आपको जानकर यह निश्चित तौर पर आश्चर्य होगा कि मध्य प्रदेश में एक सीट ऐसी भी है जहां भाजपा ने 2013 और 2018 के विधानसभा चुनाव में अपनी जमानत भी गंवाई थी।

मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के आंकड़ों का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि 2018 में पृथ्वीपुर विधानसभा सीट और 2013 में थांदला विधानसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया था।

राजनीतिक तौर पर यह भी कहा जाता है कि जो मां अपने बच्चों को बहुत प्यार करती है और चाहती है कि उसको किसी और की बुरी नजर ना लगे इसके लिए वह अपने बच्चे को काजल का टीका, जिसे देसज भाषा में ढिठौना कहा जाता है, लगा देती है। क्या भाजपा भी इन दोनों मामलों को भी नजर न लगने वाला काला टीका यानी ढिठौना मानती है।

प्रदेश भाजपा प्रवक्ता गोविंद मालू कहते हैं कि किसी एक क्षेत्र में लगातार ऐसा ट्रेंड रहे तो चिंता की बात हो सकती है। कई बार स्थानीय मुद्दों, परिस्थितियां, प्रत्याशी का असर क्षेत्रीय चुनाव पर इतना ज्यादा पड़ता है कि राष्ट्रीय मुद्दे गौण हो जाते हैं। वे कहते हैं चुनाव तो इंदिरा जी भी हारीं थी और अटल जी भी। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती है। जमानत जब्ती की संभावनाओं को खारिज करते हुए उन्होंने उम्मीद जताई कि इस बार प्रदेश में 200 से ज्यादा सीट जीतकर नया रिकॉर्ड बनाएंगे।

पिछले दो विधानसभा चुनाव की बात करें यानी 2013 और 2018 के विधानसभा चुनावों की, तो पता चलता है कि कांग्रेस के क्रमश: 10 और 9 प्रत्याशियों ने अपनी जमानत गंवाई थी जबकि भारतीय जनता पार्टी के लिए दोनों चुनाव में एक-एक विधानसभा क्षेत्र ऐसा था जहां पार्टी अपने प्रत्याशी की जमानत भी नहीं बचा पाई थी।

पृथ्वीपुर विधानसभा सीट

प्रदेश की सामान्य सीट पृथ्वीपुर एकमात्र विधानसभा सीट थी जहां 2018 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हुई थी। यह क्षेत्र बुंदेलखंड अंचल के निवाड़ी जिले में है और टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है। 2013 में यह सीट भाजपा के ही पास थी। 2018 में कांग्रेस के बृजेंद्र सिंह राठौड़ यहां से विजयी हुए थे जबकि दूसरे और तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी व बहुजन समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी थे। भाजपा प्रत्याशी अभय अखंड प्रताप सिंह यादव चौथे नंबर पर थे और उनकी जमानत जब्त हो गई थी। कांग्रेस विधायक की असमय मृत्यु के कारण हुए नवंबर 2021 में हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी शिशुपाल सिंह यादव ने कांग्रेस के नीतेंद्र सिंह को 15,887 वोटों से हरा कर भाजपा की टीस को कुछ हद तक कम कर लिया था।

थांदला विधानसभा सीट

2013 के विधानसभा चुनाव में थांदला विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी की जमानत जप्त हो गई थी। अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह विधानसभा क्षेत्र झाबुआ जिले में है और रतलाम संसदीय सीट का हिस्सा है। 2013 में इस विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय प्रत्याशी कल सिंह भाबर विजयी घोषित हुए थे और कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशी क्रमश: दूसरे और तीसरे नंबर पर आए थे। भाजपा प्रत्याशी 15.87% वोट पाने के कारण अपनी जमानत गंवा बैठे थे। 2018 के चुनाव में भाजपा ने विजयी निर्दलीय प्रत्याशी भाबर को पार्टी में शामिल करके उसे भाजपा प्रत्याशी के तौर पर उतारा था लेकिन वह कांग्रेस प्रत्याशी से हार गया था।

एक नज़र में

मध्यप्रदेश में 1951 से 2018 के बीच हुए 15 विधानसभा चुनाव का रिकॉर्ड के अनुसार इन विधानसभा चुनाव में कुल 34,418 प्रत्याशियों ने किस्मत आजमाई थी जिनमें से 25,297 प्रत्याशी अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए।

बसपा सबसे आगे

1980 से अब तक हुए नौ विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 2449 प्रत्याशी उतारे जिनमें से 1164 को जीत मिली और 162 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। इसी अवधि के कांग्रेस के आंकड़े बताते हैं कि उसने कुल 2507 प्रत्याशी चुनाव में उतारे जिनमें से 1179 प्रत्याशी जीते और 98 ने अपनी जमानत गंवाई थी। सबसे ज्यादा 54 भाजपा प्रत्याशियों की जमानत 1985 में जब्त हुई थी जबकि 2008 के चुनाव में कांग्रेस के सर्वाधिक 20 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई थी।

बहुजन समाज पार्टी ने मध्य प्रदेश में 1990 में पहली बार अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी तब से उसने 1478 प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं, जिसमें से मात्र 59 जीत सके और 1222 प्रत्याशियों ने अपनी जमानत गंवा दी थी।

कब होती है जमानत जब्त

लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 34 (1) (ख) के अनुसार यदि कोई प्रत्याशी कुल मान्य वोटों के छठवें हिस्से के बराबर मत हासिल नहीं कर पता है तो उसकी जमानत राशि जब्त हो जाती है। उदाहरण के लिए किसी विधानसभा क्षेत्र में एक लाख मत पड़े तो जो प्रत्याशी 16,666 से कम वोट पाएगा उसकी जमानत के रूप में जमा की गई राशि जब्त हो जाती है। विधानसभा चुनाव लड़ने वाले सामान्य श्रेणी के प्रत्याशी को ₹10,000 बतौर जमानत राशि जमा करने होते हैं जबकि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों के लिए यह राशि ₹5,000 है।