Uma Bharti’s Liquor Protest : उमा भारती के शराब आंदोलन के पीछे की आखिर सच्चाई क्या?

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Uma Bharti’s Liquor Protest : उमा भारती के शराब आंदोलन के पीछे की आखिर सच्चाई क्या?

वरिष्ठ पत्रकार छोटू शास्त्री का कॉलम 

प्रदेश की भाजपा सरकार की शराब नीति का विरोध भगवाधारी और भाजपा को सत्ता में लाने का दावा करने वाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने शुरू किया। इस विरोध के कारणों पर प्रत्येक व्यक्ति, पार्टी और संस्थाओं के अपने-अपने विचार हैं। कुछ का कहना है कि यह सुर्खियों की ब्रेकिंग राजनीति है। कुछ इसे उमा भारती के राजनीतिक पुनरुत्थान की कोशिश से जुड़ी घटना बताते हैं। तीसरा वर्ग ऐसा भी है, जो यह कहता है कि उमा भारती कब, क्या, कहां और कैसे क्या-क्या करेंगी यह समय काल भी नहीं बता सकता।

शराब और शराब नीति में अड़ंगेबाजी के भगवाधारी विरोध पर सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि उत्तर प्रदेश में भगवा मुख्यमंत्री हैं। वे न केवल भगवा मुख्यमंत्री हैं ,बल्कि गोरखपुर पीठ के प्रमुख भी है, जो सनातन धर्म से जुड़ी हुई भारत की अत्यंत प्राचीन प्रमुख पीठ है। उत्तर प्रदेश में शराब की 25 हजार से अधिक दुकानें है। वहां जिला दंडाधिकारी अर्थात कलेक्टर को प्रतिवर्ष 5 नई दुकान खोलने के लिए अधिकृत किया गया। अर्थात कलेक्टर अथवा शासन कभी भी नई दुकाने खोल सकता है, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है कि 25000 दुकानें होने अथवा नई दुकानें खोलने का कोई भी विरोध उत्तर प्रदेश में नहीं होता। क्योंकि, इससे उत्तर प्रदेश सालाना 31 हजार करोड़ से ज्यादा का राजस्व मिलता है, जिससे प्रदेश का विकास जुड़ा है। जबकि, मध्यप्रदेश को साढ़े 11 हजार करोड़ का राजस्व ही मिलता है।

राजनीति का प्रश्न यह है कि भगवा, गाय, गोबर और नैतिकता का यदि शराब से कोई संबंध है, तो वह उत्तर प्रदेश में क्यों नहीं लागू हो रहा है! क्यों मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और उनकी सरकार को पूर्व मुख्यमंत्री उमा जी के द्वारा सनातन धर्म के पर्यायवाची शब्दों का सहारा लेकर शराब के नाम पर घेरा जा रहा है! क्या उमा भारती की राजनीति सनातन धर्म के प्रतीकों के माध्यम से ही चलती है! उमा भारती उत्तर प्रदेश से सांसद रही हैं और वहीं से केंद्रीय मंत्रिमंडल का हिस्सा भी रहीं। पर, उन्होंने कभी उत्तर प्रदेश में शराबबंदी का आंदोलन क्यों नहीं किया? क्या शिवराज सिंह की महिलाओं एवं बच्चों के प्रति संवेदनशील, राजनीति एवं शराब को नैतिकता से हटाकर व्यवसाय का प्रश्न न बना सकने की राजनीति के कारण उमा भारती निरंतर शराब के नाम पर शिवराज का घेराव करती हैं!

आजतक किसी ने गोरखपुर पीठ के प्रधान पीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगीनाथ से यह नहीं पूछा कि उत्तर प्रदेश में शराब की दुकानें ज्यादा क्यों है। जबकि, मध्य प्रदेश में मात्र 3600 दुकानें हैं और इससे 7 गुना ज्यादा दुकानें उत्तर प्रदेश में हैं। दोनों राज्यों पर भाजपा की सरकार है और दोनों राज्यों का मूल चुनावी घोषणा पत्र केंद्रीय कार्यालय दिल्ली से तैयार होता है। उमा भारती किस आधार पर शिवराज सरकार की शराब नीति का विरोध करती हैं,यह प्रश्न सत्ता समाज और प्रशासन के गलियारों में रहता है।

शिवराज जी समावेशी राजनीति के मध्यप्रदेश के अंतिम योद्धा हैं। भाजपा में शिवराज के कृतित्व का कोई भी व्यक्ति आगे आने वाली पीढ़ी में भी नहीं दिखता। इसमें अटल बिहारी बाजपेई, कुशाभाऊ ठाकरे और नरेंद्र मोदी साथ-साथ दिखें या। यूं कहें कि किसान, मजदूर, महिला, बच्चियों, नर्मदा और पेड़ लगाकर ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट तक जिसका प्रभाव विस्तृत हो, वह मुख्यमंत्री शिवराज हैं।

शिवराज सिंह को सबसे आसान है शराब पर घेरना और दूसरे नंबर पर है खनिज की बात करना। 17- 18 साल के मुख्यमंत्रित्व काल में शिवराज सिंह खनिज और शराब पर यदि सीधे बोल देते कि यह समाज तय करेगा कि व्यवसाय किस तरह चलना तो कभी न उमा भारती खड़ी होती और न कोई और। सच्चाई भी यह है कि प्रदेश में शराब को मुद्दा बनाया जाता है और उत्तर प्रदेश में शराब मुद्दा है ही नहीं! वास्तव में उमा भारती जो राजनीति कर रही हैं, उसकी हकीकत भोपाल से लेकर के दिल्ली में बैठे सभी भाजपा नेता समझते है! यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रधान को भी इस बात का एहसास है कि उमा भारती ने शराब के मुद्दा पर बवाल क्यों मचाया!

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उमा भारती जब पहली बार मुख्यमंत्री बनी उन्होंने शराब की दुकानें लॉटरी सिस्टम से दिलाई थी। शराब अगर 2004-5 में लोकप्रिय थी, जिसका बड़े ग्रुपों से हटाकर छोटे ग्रुपों में लॉटरी से बेचा गया, तो आज कैसे अलोकप्रिय कैसे हो जाएगी! उस समय उमा भारती ने अपने मुख्यमंत्री काल में शराबबंदी क्यों नहीं की! केंद्रीय मंत्री रहते हुए गंगा के किनारे की सभी शराब दुकानें क्यों नहीं हटाई गई। ऐसे बहुत सारे प्रश्न हैं जिनका जवाब उमा भारती के पास भी नहीं होगा। आखिर सनातन धर्म के पर्यायवाची याद कर यह सनातन धर्म के प्रतीकों को देखकर हम अपनी राजनीतिक कब तक करेंगे। धर्म और समाज का संबंध नैतिकता से है, और यह बात भी सही है की खाने की वस्तुओं के बाद पीने के पानी के बाद अगर मनुष्य ने कोई चीज पी है तो सिर्फ शराब है।