उमा का पत्थर: फ्रस्ट्रेशन सत्ता खोने का या वापसी का

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भाजपा की पूर्व मुख्यमंत्री और तेज तर्रार नेता उमा भारती अपनी कई हरकतों के लिए मशहूर है… कल उन्होंने भोपाल की एक शराब दुकान में घुसकर पत्थर फेंका और एक तरह से शराबबंदी के खिलाफ अपना विरोध जाहिर किया… दरअसल, पिछले दिनों भी उमा भारती ने चेतावनी दी थी कि मध्यप्रदेश में नशाबंदी लागू की जाए और नई आबकारी नीति को लेकर भी उनका विरोध नजर आया, जिसमें देसी शराब की दुकानों पर विदेशी शराब बेचने के अलावा अन्य कई प्रावधान किए गए… अब राजनीतिक अटकलबाजों का कहना है कि उमा भारती ने पत्थर शराब की दुकान पर नहीं, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से मुख्यमंत्री की शराब नीति के विरोध में उछाला है… दरअसल, काफी समय से उमा भारती के पास कोई काम नहीं है और वे चुनाव लडऩे की घोषणा भी कर चुकी है और सत्ता में वापसी की उनकी छटपटाहट इसी तरह नजर भी आती रही है…

मीडिया का काम है चप्पल उल्टी रख आपस में होने वाली जूतमपैजार का मजा लूटना, जिसके चलते आए दिन भाजपा के असंतुष्टों की हरकतों को इसी तरह सुर्खियां दी जाती है… अभी सीहोर में पं. प्रदीप मिश्रा के कथा आयोजन को लेकर भी इसी तरह का बवाल मचा था… 4 से 6 घंटे का महाजाम इंदौर-भोपाल रोड पर लग गया और हजारों लोग परेशान हुए, जिसके चलते प्रशासन को कार्रवाई करना पड़ी… हालांकि बाद में पता चला कि कथा आयोजन में उम्मीद से कई गुना अधिक भीड़ जुटा ली गई और रुद्राक्ष लूटाने सहित कई अन्य जानकारियां भक्तों तक पहुंचाई गई, जिसके कारण एकाएक ऐसा मजमा जुटा कि जाम ही लग गया…

अगर खुदा-न-खास्ता भगदड़ हो जाती या एम्बूलेंस में फंसे किसी मरीज की मौत होती तो यही मीडिया डंडे लेकर शासन-प्रशासन पर पिल पड़ता कि आयोजन की अनुमति निरस्त क्यों नहीं की गई..? मगर इस घटना में भी चूंकि असंतुष्टों ने निशाना साधा और एक तीर से कई शिकार के प्रयास किए… जबकि मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने उसी वक्त उज्जैन में महाशिवरात्रि का जोरदार आयोजन करवाया और 10 लाख से अधिक दीये जलवाकर दीपावली मना दी, दूसरी तरफ सीहोर की मामूली घटना को तिल का ताड़ बनाया गया और नतीजे में पं. प्रदीप मिश्रा लोकप्रिय कथावाचक बन गए… देपालपुर के अलावा अब प्रदेशभर में उनकी कथाएं गूंजेगी और नेता-मंत्री-अफसर मत्था टेकते नजर आएंगे…

उमा भारती ने शराब की दुकान में पत्थर फेंकने का जो काम किया, उसे किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता… वे एक मुख्यमंत्री जैसे अति जिम्मेदार पद पर रह ही चुकी हैं, वहीं केन्द्रीय मंत्री भी रही हैं… ऐसे में कानून अपने हाथ में लेना और गुंडागर्दी की तर्ज पर किसी दुकान में पत्थर फेंकना सभ्य समाज में कैसे जायज ठहराया जा सकता है..? मजे की बात यह है कि जिस दुकान में पत्थर फेंका उस दुकान को बकायदा शासन-प्रशासन ने लाइसेंस दिया और बदले में मोटी फीस भी ली… यानी अधिकृत दुकान में घुसकर उमा भारती ने अनाधिकृत कृत्य किया…

कांग्रेस के जागरूक प्रवक्ता और पूर्व मुख्यमंत्री के मीडिया समन्वयक नरेन्द्र सलूजा ने ट्वीट करते हुए शिवराज सरकार से अच्छा सवाल भी पूछा है कि अभी गत वर्ष नवम्बर में पत्थरबाजों के खिलाफ शिवराज सरकार ने ही कानून बनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि किसी का घर, दुकान, गाड़ी तोड़ी या जलाई गई तो उसी से उसकी वसूली की जाएगी और आरोपी की सम्पत्ति नीलामी से लेकर पीडि़त पक्ष को क्षतिपूर्ति दिलाने के लिए सरकार खुद केस लड़ेगी और पैसा चुकाने में देरी होने पर ब्याज भी वसूल किया जाएगा तथा क्रिमिनल कोर्ट में सुनवाई होगी…

श्री सलूजा ने अपने ट्वीट में यह सवाल उठाया कि शायद उमा जी इस कानून के दायरे में आने वाली पहली प्रदेश की नागरिक होगी… अब देखना यह है कि कानून का पालन कब होगा और उमा जी के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाएगी..? हालांकि उमा भारती चूंकि बड़ी नेता है, इसलिए दुकान में घुसकर पत्थर फेंकने की अशोभनीय घटना के बावजूद उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी और शराब दुकान संचालक ने भी इस तरह की कोई रिपोर्ट या शिकायत दर्ज नहीं करवाई है, क्योंकि उसको भी पता है कि नेताओं से पंगा मोल लेना आसान नहीं है…

बहरहाल, उमा जी का पत्थर अघोषित रूप से शिवराज की शराब नीति की ओर उछाला गया है और इसके पीछे वो फस्ट्रेशन भी साफ नजर आता है जो सत्ता छिनने या खो देने से उत्पन्न हुआ… दरअसल, उमा जी पिछले दिनों यह भी कह चुकी हैं कि उनके द्वारा हासिल की गई सत्ता के और कोई मजे लेता है… दरअसल, तत्कालीन कांग्रेस की दिग्गी सरकार को उखाड़ फेंकने की जिम्मेदारी उमा भारती ने बखूबी निभाई थी और दो तिहाई से अधिक बहुमत हासिल कर 10 साल बाद प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाई, मगर वे लम्बे समय तक मुख्यमंत्री के पद पर नहीं रही और उन्हें दिल्ली के दिग्गजों ने राजनीतिक षड्यंत्र के तहत पद से हटवा दिया…

हालांकि बाद में केन्द्र में सरकार बनने पर वे केन्द्रीय मंत्री भी बनी और अब ऐसा लगता है कि फिर से सत्ता की लालसा ने उन्हें पत्थरबाज बना दिया… अब देखना यह है कि उमा जी के उछाले पत्थर से शराब की कुछ बोतलें तो अवश्य टूटी, मगर इसकी किरचें किन-किन को चुभी यह आने वाले वक्त में पता चलेगा…

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राजेश ज्वेल

राजेश ज्वेल इंदौर के जाने-माने पत्रकार हैं