अनोखी दीवाली: मृतात्माओं के नाम खुशियां बांटने वे श्मशान में पंहुचकर दीपावली पर्व मनाते हैं

दुनिया से अलविदा कह चुके परिवारजनों को ऐसे करते है याद

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*रतलाम से रमेश सोनी की विशेष रिपोर्ट*

जो तुफानों में किनारे तक पंहुचा दें।

एसी अब कश्तियां नहीं मिलती।

गम को गले लगाकर खुशी बांटे

एसी जादू की झप्पियां नहीं मिलती।

खुद के लिए जुझने वाले इस जहां में।

एक ढुंढो हजार मिल जाएंगे।

दुसरो की खुशी के लिए जुझने वाली

आप जैसी हस्तियां नहीं मिलती।।

 

दीपावली पर्व पर भारत देश की सनातन संस्कृति और परंपराओं के अनुरूप सभी अनुयाई खुशियां मनाते हैं,एक-दूसरे से मिलकर शुभकामनाएं देते हैं बड़े बुजुर्गो से आशीर्वाद लेते हैं,ऐसे में हमारा देश भारतीय परम्परा में यह त्यौहार आपसी समन्वय और सद्भाव की मिसाल है।पांच दिनों तक लगातार राग-देस अपना-पराया सब कुछ भुलाकर एकजुट होकर इस पारंपरिक त्यौहार को हम लोग मनाते हैं।इसके ठीक विपरीत कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस त्यौहार को खुद के लिए नहीं मनाते हुए उन लोगों के लिए मनाते हैं जो इस दुनिया से अलविदा कह चुके।

आज उनकी केवल सिर्फ स्मृति ही शेष रह गई है।इस संगठन के सदस्यों द्वारा न सिर्फ उनको याद किया जाता है वरन् दीपावली की हर खुशियां मृतात्माओं को समर्पित करते हैं।इस आयोजन को लेकर शहर के चारों मुक्तिधामों पर दीपोत्सव मनाया जाता है।

हम आप और सभी इस बात को भलिभांति जानते है कि किसी परिवार के मृतक परिजनों को केवल उनके पारावारिक परिजनों द्वारा ही याद किया जाता अमूमन इस शहर में ऐसे भी सख्स हैं जो मृतात्माओं के साथ दीपावली पर्व की खुशियां मनाते हैं।

हां हम बात कर रहे हैं रतलाम शहर की ऐसी संस्था की,ऐसे संस्थान की,ऐसे सामाजिक कार्यकर्ताओं की जो दीपावली की नरक चतुर्दशी को शहर के मुक्तिधामों में पंहुचकर वहां फुलों और कलर की रंगोलियां,दीपक अगरबत्ती और धुप ध्यान और उन्हें प्रसाद अर्पित कर आतिशबाजी करते हुए ढोल-नगाड़ों की थाप पर नृत्य करते हुए मृतात्माओं को दीपावली की खुशियां बांटते हैं।

इस आयोजन में रतलाम हीं नहीं वरन् आसपास के रहवासी भी पंहुचते हैं जिनके परिजनों की किसी न किसी वजह से इन मुक्तिधामों में अंत्येष्टि हुई होकर उनकी यादें जुड़ी है।शाम को छह बजे इस आयोजन में एक एक मुक्तिधाम में 500-600 लोगों का जमघट लगता है जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल होकर खुशियां मनाते हैं।

बता दें कि संस्था के लोग नरक चतुर्दशी के दो दिन पहले से ही मुक्तिधाम की सफाई और स्वच्छता में जुटे रहते हैं उनके मन में बस एक ही बात रहती है कि मृतात्माओं को दीपावली पर्व की हर खुशियां समर्पित करें।

इस तरह इनके ग्रुप में शहर के 22 सदस्य इस अनूठे कार्य को पूर्ण करने में अपना योगदान देते हैं।

बता दें कि यह आयोजन 2006 से लगातार होता आया है और इस आयोजन को 22 सदस्य मुख्य रूप से अंजाम देते हैं जिन्हें प्रेरणा देने वाले गोपाल सोनी हैं जो बताते हैं कि दशहरा पर्व पर मेरी माताजी का देहावसान हुआ था।और अंत्येष्टि होते-होते शाम ढल चुकी थी तब मेरे मन में वहां के हालात देखकर एक बात आई कि हम लोग दीपावली दशहरा पर्व मनाते हैं लेकिन इस स्थान पर हमेशा अंधेरा ही अंधेरा रहता है क्योंन इस स्थान पर दीपावली की खुशियां मनाई जाए, बस इन्हीं बातों को लेकर मेरी संस्था के सदस्यों की मेहनत रंग लाई और आज जिस मुकाम पर विराना रहता है उस स्थान पर दीपोत्सव का माहौल बन जाता है मन को शांति मिलती है।

*इनका रहता है सहयोग*

धर्मेंद्र अग्रवाल,गोपाल सिंह गहलोत,कन्हैयालाल डंगवाल, महेश सोलंकी ठाकुर,रंजीत सिंह, विनोद राठौड़,राजेश रांका,राजेश चौहान बद्रीलाल परिहार,संदीप यादव,राकेश मीणा,सतीश भारती,कमलेश टाक,प्रभु नेका,मधु शिरोड़कर,श्रीमती वीणा सोनी,श्रीमती रेखा बहादुर सिंह,आशा उपाध्याय,कुसुम भाट, राखी उपाध्याय एवं नमो ग्रुप फाउंडेशन के जिलाध्यक्ष अशोक धाबाई,कमलेश व्यास और ग्रुप के पदाधिकारियों का सहयोग रहता है।