अनूठा आयोजन: मालवी निमाड़ी शोध संस्थान और इंदौर लेखिका संघ ने मनाया संजा पर्व “16 दिन 16 गीत”
इंदौर: इंदौर की दो प्रमुख संस्थाओं मालवी निमाड़ी शोध संस्थान और इंदौर लेखिका संघ ने आज मालवा निमाड़ का पारंपरिक पर्व अनोखे तरीके से संजा पर्व मनाया। दोनों संस्थाओं ने इस पर्व के दौरान आने वाले 16 दिन के हिसाब से आयोजन का नाम दिया 16 दिन 16 गीत।
बता दे कि संजा पर्व मालवा निमाड़ अंचल का प्रसिद्ध लोकपर्व है. श्राद्ध पक्ष के 16 दिन तक संझा बनाई जाती है। यह गोबर से दीवार या पटिये पर बनाई जाती है और उसे फूलों और रंगीन पेपर से सजाया जाता है। संजा कई प्रकार की होती है, जैसे – फूलों की सांझी, रंगों की सांझी, गाय के गोबर की संजा ,पानी पर तैरती संजा ।
इस बार में बताया गया है कि राधा रानी अपने पिता वृषभानु जी के आंगन में संजा सजाती थी।संजा के रूप में श्री राधे रानी संध्या देवी का पूजन करती थीं। इस प्रकार संजा की शुरुआत राधा रानी द्वारा की गई थी।
संझा में 11 दिनों तक रोज अलग-अलग आकृति बनाई जाती है। पहले दिन केवल चाँद-सूरज बनाया जाता है। फिर तुलसी क्यारा, पांच कुँवारे, सत फूल, भाई बहन, परेंडा इत्यादि ग्यारस के दिन किला कोट बनाया जाता है।
नवरात्रि के प्रथम दिन इनको निकाल कर पूजा करके भोग लगाकर नदी या तालाब में विसर्जित किया जाता है।
रोज़ शाम को संजा बनाकर उनकी पूजा करके सभी बच्चियाँ संजा के गीत गाती हैं और अंत में प्रसाद बाटती हैं। लोक संजा माता को एक बेटी और सखी के रूप में 16 दिन तक अपने घर में सहेज कर प्रकृति संरक्षण का संदेश देता है । नवीन पीढ़ी लोक परंपराओं को भूलती जा रही हैं, उन्हें सहेजना होगा । यह विचार मालवी-निमाड़ी साहित्य शोध संस्थान के संजा गीत कार्यक्रम में निमाड़ी बोली में वरिष्ठ साहित्यकार साधना बलवटे ने कही । संस्थान की संस्थापक अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ स्वाति तिवारी ने संजा पर्व की प्रासंगिकता पर अपने विचार रखते हुए कहा कि गाय का गोबर,गुलपती के फूल आदि का उपयोग संजा बनाने में होता है जो वर्षा काल के पश्चात उपजे कीटाणुओं से घर को से घर को सुरक्षित रखते हैं । कोरोनाकाल से तो इसकी प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है। डॉ स्वाति तिवारी ने कहा कि संजा से कला का ज्ञान प्राप्त होता है, जैसे पशु-पक्षियों की आकृति बनाना और उसे दीवारों पर चिपकाना। गोबर से संजा माता को सजाना और किलाकोट, जो संजा के अंतिम दिन में बनाया जाता है, उसमें पत्तियों, फूलों और रंगीन कागज से सजाने पर संजा बहुत सुन्दर लगती है। संजा को गुलपती, गेंदा, गुलबास के फूलों से सजाया जाता है.
कार्यक्रम का शुभारंभ हेमलता शर्मा भोली बेन ने मालवी बोली में स्वरचित सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर किया तथा सरला मेहता ने गणेश वंदना से गजानन महाराज का आह्वान किया। संजा माता की प्रतिस्थापना के पश्चात कार्यक्रम 16 दिनों तक चलने वाले संजा पर्व के मद्देनजर 16 लोगों द्वारा प्रस्तुतियां दी गई जिनमें विशिष्ट अतिथि विनीता तिवारी,डॉ शशि निगम,
और नित्येंद्र आचार्य ने जहां स्वरचित संजा गीतों की मनोहारी प्रस्तुति दी, वही निरुपमा त्रिवेदी, निरुपमा नागर, राधिका चतुर्वेदी, निर्मला कानूनगो, अर्चना कानूनगो, अर्चना मंडलोई, मणिमाला, शर्मिला दुबे डॉ क्षमा शर्मा ने लोक प्रचलित संजा गीतों को प्रस्तुत किया । कार्यक्रम का संचालन संस्था सचिव भोली बेन ने मालवी में किया ।
आभार भी डॉ शशि निगम ने मालवी बोली में ही व्यक्त कियासंपूर्ण आयोजन मालवी और निमाड़ी बोली में संपन्न हुआ। सरस एवं शुद्ध देशी कार्यक्रम के दौरान भीम सिंह पंवार, तनुजा शर्मा, राघवेन्द्र तिवारी, महेश हनोतिया,सुधा चौहान एवं अन्य मालवी निमाड़ी प्रेमी उपस्थित रहे और संजा गीतों का आनंद लिया.इन दिनों संजा माता का पूजन कर गीत गाए जाते है जैसे–
संजा बाई का लाड़ाजी, लूगड़ो लाया जाड़ाजी
असो कई लाया दारिका, लाता गोट किनारी का।’
‘संझा तू थारा घर जा कि थारी मां
मारेगी कि कूटेगी
चांद गयो गुजरात हरणी का बड़ा-बड़ा दांत,
कि छोरा-छोरी डरपेगा भई डरपेगा।’
‘म्हारा अंगना में मेंदी को झाड़,
दो-दो पत्ती चुनती थी
गाय को खिलाती थी, गाय ने दिया दूध,
दूध की बनाई खीर
खीर खिलाई संझा को, संझा ने दिया भाई,
भाई की हुई सगाई, सगाई से आई भाभी,
छोटी-सी गाड़ी लुढ़कती जाय,
जिसमें बैठी संझा बाई सासरे जाय,