Unsung Personality–All-round artist of Sonkutch–Ramesh Sisodia गुमनामी शख्सियत–सोनकच्छ के हरफनमौला कलाकार–रमेश सिसोदिया
अनिल तंवर की खास रिपोर्ट
कला किसी अवसर, स्थान या उम्र की मोहताज नहीं होती है. यह नैसर्गिक प्रतिभा पूत के पाँव पालने में नजर आने जैसी ही है. सोनकच्छ निवासी रमेश सिसोदिया का बचपन अभावों में बीता किन्तु उन्हें कोई मलाल नहीं रहा. पढ़ने में भी कोई ख़ास नहीं थे अत: सामान्य विद्यार्थी रहे, मजदूरी की किन्तु हमेशा लकीरों से खेलते हुए, प्रकृति प्रदत्त लकड़ी और पत्थरों ने उन्हें सदैव आकर्षित किया. जब भी समय मिला जो देखा उसे पेपर पर उकेरा और विभिन्न आकृति की लकड़ी नजर आई तो उसे अपनी कल्पना से आकार दिया. इस तरह की लकड़ी प्राप्त करने के लिए वे आरा मशीन की टाल, शादी–ब्याह की भट्टियों, लकड़ी के भारों (इसे मोली भी कहा जाता है)में और जंगलों में जाकर भी ढूँढते रहे और लाकर उन्हें भावपूर्ण आकार, फिनिशिंग, पालिश कर अपने निजी म्यूजियम में सजाते रहे.
उज्जैन के पेंटिंग आर्टिस्ट मुकेश पंडया बताते है कि रमेश सिसोदिया का कर्म वाक्य रहा– “कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” उन्होंने आगे बताया कि, प्रसिद्ध ग्रन्थ गीता में कही गई इस उक्ति का, वह आज भी सतत् पालन कर रहे है. आध्यात्म एवं गीता में इनकी विशेष रूचि रही है. स्वाध्याय में रहते हुए आपने लगभग छः हजार विश्व स्तरीय साहित्य, वेद, दर्शन तथा विज्ञान की पुस्तकों का अध्ययन किया. श्री कृष्ण भगवान की ‘गीता’ का चालीस वर्षों से स्वाध्याय, पाठ एवं ज्ञान का प्रसार करते हुए नगर सोनकच्छ के गीता भवन में सतत् सेवा कार्य भी किया.
गीता भवन के बाल विनय मंदिर व माध्यमिक विद्यालय में सन् 1973 से संस्थापक सदस्य व सचिव रहते हुए 31 वर्ष तक शैक्षणिक कार्य का संचालन भी किया. यहाँ इन्होंने विश्व लायब्रेरी भी कायम की. अपने सेवा काल में शिक्षा समिति के माध्यम से 300 पुस्तकों का संग्रह किया.
‘वृक्ष धर्म’ नाम के एकल प्रयास से सन 1996 से 2018 तक नेता, अधिकारी, छात्र व कर्मचारियों से पांच लाख पौधे लगाने के संकल्प पत्र भरवाए, जिसमें से चार लाख पौधे वृक्ष भी बने. डाक बंगला रोड सोनकच्छ पर परिजनों की स्मृति में ट्री गार्ड सहित पौधे लगवाए. गीता भवन में 300 गमले युक्त पौधे लगाकर 4 वर्षों तक सिंचाई व देख भाल का कार्य भी किया. पर्यावरण के क्षेत्र में पोलीथीन का विरोध करते हुए पेम्पलेट छपवा कर जनता में बाँटने के साथ ही शासन से लिखा पढ़ी कर दवाई दुकानदारों को कागज की थैलियाँ बनाकर वितरित भी की.
साहित्य के क्षेत्र में 1978 में नगर में सर्जना साहित्य संस्था गठित कर एक लघु पत्रिका “शास्वत संदर्भ” के 3 वर्ष में 12 अंक सम्पादित और प्रकाशित किए. उभरते लेखक व कवियों का मार्ग दर्शन भी किया. स्वयं की 1000 कविताएँ गीत, गजल आदि है जो धनाभाव के कारण अप्रकाशित हैं. इनकी अनेक कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुई. बचपन में वह कोई खेल नहीं खेले अपितु चित्रकला, मूर्तिकला में रूचि होने से काष्ठ प्रस्तर, मृत्तिका में 350 कलाकृतियों एवं चित्रांकन आदि कृतियों को अपने निजी सरस्वती म्यूजियम में सजा कर रखा हुआ है.
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गांधीजी के विचारों से प्रभावित होकर इसे जीवन में ढालना ही इनका ध्येय रहा. नगर में 10 वर्षों के अथक प्रयासों से ही दिनांक 02-10-2019 को न्यास के माध्यम से भोपाल बायपास पर ‘गाँधी प्रतिमा’ लगवाई गई.
इसके अलावा उन्होंने सन् 2009 में साथी श्री एम. एल. मालवीय के साथ वरिष्ठ नागरिक न्यास का गठन कर समाज सेवा, पर्यावरण, गाँधी प्रतिमा की स्थापना, पौधारोपण जैसे कार्यों के साथ साथ स्थानीय चिकित्सालय मे सन् 2009 से 2013 तक 14750 मरीज व परिजनों को तीन वर्ष तक सतत् शुद्ध व ताजा भोजन करवाया. गर्मी के दिनों मे पक्षियों के लिये 6 वर्षों से पानी के सकोरों का वितरण भी कर रहे है. न्यास के सहयोग से गरीबों को मच्छरदानियाँ का वितरण किया तथा नदी गहरी करण कार्यों में भी योगदान दिया.
पंचायत में शिक्षाकर्मी रहे सेवा निवृत्त रमेश को तब के नियमों के कारण कोई पेंशन भी नहीं मिल रही है और आज यह कलाकार शरीर से अशक्त होकर 74 वर्ष की उम्र में बिस्तर पर है. उनकी पत्नी चन्द्रकला ही उनका सहारा बनी हुई है. शासन को ऐसे बहुमुखी कलाकार, पर्यावरणविद, समाज सेवी की सहायता करनी चाहिए तथा उनके सरस्वती म्यूजियम को पहचान दिलाना चाहिए.