Up election फिर मोदी,फिर योगी : उप्र की जनता ने जो चाहा,कर दिखाया

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पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव में उप्र के नतीजों को राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाला माना जा रहा था । यहां 37 साल बाद किसी दल की निरंतर दूसरी बार जीत देश की राजनीति में नए अध्याय की शुरूआत तो है ही,  अंतर राष्ट्रीय स्तर पर भारत,भाजपा और मोदी की छवि के प्रति जिज्ञासा बढ़ाने वाले साबित होंगे।वैसे मैंने  4 मार्च के अपने लेख में स्पष्ट तौर पर कहा था कि.. आयेंगे तो मोदी(योगी) ही..। इस बारे में जो तर्क और कारण दिए थे,आप चाहें तो एक बार फिर लिंक के जरिए उन पर गौर कर सकते हैं:
UP Elections: उत्तर प्रदेश में आयेंगे तो मोदी (योगी) ही, क्योंकि जनता ने लड़ा है चुनाव 
 _वरिष्ठ पत्रकार रमण रावल का कॉलम_ 
यूं तो पंजाब को छोड़कर चार राज्यों के नतीजे भाजपा के लिए अनुकूल और अपेक्षित भी रहे,लेकिन भाजपा,विपक्ष के साथ देश के कारोबार जगत और समाज के बीच भी इनके प्रति खासी जिज्ञासा थी। दुनिया की भी नजरें लगी ही थीं।
उप्र में भाजपा की जीत कोई तुक्का नहीं है और ना ही तिकड़म। यह विशुद्ध वहां की जनता के मनोबल और मंशा की जीत है, जो अटल थी। जैसा कि मैंने विनम्रतापूर्वक बताने का प्रयास किया था कि मोदी,योगी के प्रति भावनात्मक लगाव,भाजपा की रीति,नीति,गुंडा विरोधी अभियान,राष्ट्रवादी सोच और देश के बहुसंख्यक वर्ग के प्रति शेष दलों की संकुचित भावनाओं के मद्देनजर बड़े वर्ग में जबरदस्त गुस्सा भरा है,जिसका उतारा वे मतदान में करेंगे।
अब जबकि परिणाम आ चुके हैं, स्वाभाविक सोच उभरता है कि उप्र में बदले की राजनीति का दौर शुरू होगा। ऐसे लोग सिरे से गलत साबित होंगे। यदि ऐसा ही करना होता तो रुझान आते से ही शायर मुनव्वर राना के घर पर सुरक्षा पहरा नहीं बढ़ाया होता,बल्कि हटा लिया होता। इसके उलट मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि यदि सपा सत्ता में आ रही होती तो अभी तक उप्र में खून,खराबा शुरू हो चुका होता। इसका अंदाज आप इससे लगाइए कि कुख्यात गुंडे मुख्तार अंसारी के बेटे ने एक सभा में घोषणा भी कर दी थी कि वे अखिलेश भैया से कह आए हैं कि उनके जिले से अधिकारियों को छह महीने तक नहीं हटाएं,क्योंकि पहले  वे हिसाब बराबर करेंगे। अराजकता और गुंडई का कैसा तांडव मचता,बस इसकी कल्पना कीजिए।
Up election फिर मोदी,फिर योगी : उप्र की जनता ने जो चाहा,कर दिखाया
अलबत्ता, यह तो तय है कि ऐसे समाज विरोधी लोगों की शामत आने वाली है। ऐसी वैधानिक चेतावनी तो योगी आदित्यनाथ दे भी चुके थे। उन्होंने साफ कहा था कि गुंडे,माफिया,जमीनों पर कब्जे करने वाले,वसूली करने वाले या तो 10 मार्च तक उप्र छोड़ दें या 11मार्च के बाद कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहें।
योगी ने जो किया है,वह प्रदेश और देश ने देखा है और जिसका पूरा प्रतिसाद भाजपा की वापसी से मिला भी है । बहरहाल।
अब भाजपा की जिम्मेदारी कहीं अधिक बढ़ गई है । सबसे पहले तो उसे उप्र की जनता के उस भरोसे को खरा साबित करने के लिए हर वर्ग को बराबरी से देखने के नजरिए  का परिचय देना होगा। दूसरा, गुंडा विरोधी अभियान को तेज करना होगा। कानून के राज को बरकरार रखने के प्रति अधिक कारगर और ईमानदार रहना होगा। सपा,कांग्रेस,ओवैसी ने जातिवाद की जिस  निकृष्ट राजनीति का अड्डा उप्र को समझ रखा था, उस मकड़जाल को तहस,नहस करना होगा।सरकार हिंदू,मुस्लिम के प्रति सरकार समान व्यवहार कर रही है,यह भी जताना होगा।
उसके अलावा जो बड़ी चुनौती अब उप्र की भाजपा सरकार के सामने आएगी,वह होगी पहले अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के मार्ग को निष्कंटक बनाना,फिर काशी,मथुरा के बाबा विश्वनाथ और कृष्ण मंदिर को अतिक्रमण मुक्त करना। इसके लिए कैसे कानूनी रास्ता बनाकर,सांप्रदायिक सौहार्द के साथ अधिसंख्य वर्ग की भावनानुरूप मार्ग प्रशस्त हो,यह देखना होगा।
राजनीतिक परिदृश्य को साफ रखने की मशक्कत अपनी जगह रहेगी। जैसे 2024 के आम चुनाव में भी भाजपा उप्र से अधिकतम सीटों का योगदान दे,यह पुरजोर कोशिश करना होगा। इसके लिए जन समर्थन बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। अगले लोकसभा चुनाव तक समान नागरिक संहिता का मसला भी आ सकता है।इसके अलावा उप्र में सांप्रदायिक दंगे भड़काने के जतन भी हो सकते हैं, जिसे समय रहते निपटना भी अहम रहेगा।
Up election फिर मोदी,फिर योगी : उप्र की जनता ने जो चाहा,कर दिखाया
 यह माना जाना चाहिए कि भाजपा आलाकमान,फिर से मुख्यमंत्री बनने पर योगी आदित्यनाथ और राष्ट्रवाद की भावना से भरे लोगों के बीच नरेंद्र मोदी को अब ज्यादा संजीदा तरीके से शासन,प्रशासन संचालित कर यह बताना होगा कि उनके लिए जन कल्याण और जन भावना प्रमुख है, ना कि जातिवाद,बाहुबल,गुंडागर्दी और परिवारवाद । जब आप लगातार सफल होते हैं तो दो संभावनाएं मुंह बाएं खड़ी रहती हैं ।अहंकार से भरकर मनमर्जी के फैसले लेना या दोहरी जवाबदारी से जन अपेक्षाओं पर खरा उतरने के जतन करना ।हमारे पास यह देखने के लिए दो चरणों में अवसर है। पहला,2024 के लोकसभा चुनाव तक का समय और दूसरा चरण उसके बाद के तीन साल।