Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : आदिवासी मुद्दे पर सरकार की उलझनें बढ़ी!

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : आदिवासी मुद्दे पर सरकार की उलझनें बढ़ी!

सरकार आदिवासियों के मुद्दे को जितना संभालने की कोशिश कर रही है, मामला उतना ही ज्यादा उलझता जा रहा है। अकेला सीधी कांड ही ऐसा नहीं है, जिसने सरकार को परेशान किया हो। इसके अलावा भी आदिवासियों पर सवर्णों के अत्याचार की घटनाएं लगातार सामने आ रही है, जिनके लिए सरकार को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। लेकिन, यह कहने वाले भी कम नहीं कि मुख्यमंत्री ने दशमत को भोपाल बुलाकर उसके सामने जिस तरह याचक का भाव दिखाया उससे मामला अब और ज्यादा उलझा है।

हर घटना के पीछे सरकार की लापरवाही तो नहीं ढूंढी जा सकती, लेकिन अंततः जवाबदारी सरकार की मानी जाती है कि उसके होते हुए व्यवस्था इतनी लापरवाह है कि आदिवासियों पर लगातार जुल्म हो रहे हैं। जबकि, देखा जाए तो मध्य प्रदेश में सरकार की चाभी आदिवासियों के हाथ में ही होती। इस वर्ग की 47 सीटें ही तय करती है कि प्रदेश में किसकी सरकार होगी।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : आदिवासी मुद्दे पर सरकार की उलझनें बढ़ी!

पिछली बार कई इलाकों में आदिवासी सीटों का गणित बिगड़ने से भाजपा को नुकसान हुआ और पार्टी बहुमत से कुछ सीटें पीछे रह गई। इसके बाद सरकार बनी, तो उसका फार्मूला अलग था। इसके बाद सरकार पिछले तीन साल से लगातार आदिवासियों को साधने की कोशिश कर रही है। लेकिन, अचानक चुनाव के कुछ महीने पहले प्रदेश के कई हिस्सों में ऐसी घटनाएं होने लगी जिसके केंद्र में आदिवासी हैं।

अब इन्हें साधना सरकार की सबसे बड़ी चुनौती है। क्योंकि, आख़िर सरकार की चाभी आदिवासियों के जेब में जो होती है।
एक प्रश्न और सियासी और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि आखिर 3 IAS अधिकारियों के खिलाफ आदिवासियों से जुड़े मामलों को लेकर इसी वक्त लोकायुक्त द्वारा एफआईआर दर्ज करवाना भी किसी अलग तरह का संकेत माना जा रहा है।

मंत्रियों की हरकतों को सहते, संभालते मुख्यमंत्री! 

प्रदेश सरकार में यदि विवादास्पद मंत्रियों की गिनती की जाए, तो निश्चित रूप से इनमें एक नाम उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव का जरूर होगा। वे हमेशा ही अलग-अलग कारणों से चर्चा में बने रहते हैं। पिछले कुछ दिनों से वे उज्जैन के मास्टर प्लान को लेकर राजनीतिक सुर्ख़ियों में रहे। मसला था अपने परिजनों की कृषि भूमि को सिंहस्थ क्षेत्र से बाहर करवाकर उसे आवासीय करवा देना। यानी आप समझ सकते है इसके पीछे का खेल।

इस मुद्दे को लेकर मीडिया में जमकर ख़बरें चली। सारी उंगलियां मोहन यादव की तरफ उठी। सिंहस्थ क्षेत्र की आरक्षित 148.669 हेक्टेयर जमीन को मुक्त करके कृषि से आवासीय कर दिया गया था। लेकिन, मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप के बाद उसे फिर कृषि भूमि में बदल दिया गया। ये पहली बार नहीं है जब मंत्रियों की हरकतों को मुख्यमंत्री की दखल से ठीक किया गया हो!

भाजपा सरकार और संगठन में अब बदलाव यानि भटकाव...

मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद सिंहस्थ क्षेत्र के अंतर्गत सेटेलाइट टाउन के लिए आरक्षित ग्राम सावराखेड़ी एवं कस्बा उज्जैन में 48.679 हेक्टेयर भूमि को आवासीय किए जाने के फैसले को निरस्त कर दिया गया। इसलिए कि सरकार के संज्ञान में यह तथ्य आया कि इस क्षेत्र के आवासीय होने पर सिंहस्थ के लिए पार्किंग एवं अन्य सेवा सुविधाओं के लिए परेशानी हो सकती है।

रहेंगे या जाएंगे की उहापोह में वीडी की कुर्सी!

मध्य प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वी डी शर्मा रहेंगे या जाएंगे! आज जाएंगे या कल जाएंगे! उनका उत्तराधिकारी तय कर लिया गया है, अब उन्हें जल्दी ही रवाना कर दिया जाएगा! उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया जा रहा है! पिछले तीन महीने से ऐसी कई ख़बरें मीडिया में तो आ ही रही है और आए दिन सियासी गलियारों में सुनी जा रही है। लेकिन, हर बार कोई अड़ंगा ऐसा आता है कि वीडी शर्मा पर से भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व का ध्यान हट जाता है और वे सुरक्षित दिखाई देने लगते हैं। लेकिन, दावा नहीं किया जा सकता कि वे पूरी तरह बचे हुए हैं।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : आदिवासी मुद्दे पर सरकार की उलझनें बढ़ी!

इस बार भी जब चार राज्यों के अध्यक्ष बदले गए, तो यह मान लिया गया था अब बस वीडी शर्मा का नंबर आने वाला है। लेकिन, लगता है मामला अभी टल गया। क्योंकि, जिस तरह भूपेंद्र यादव और अश्विनी वैष्णव को मध्य प्रदेश के चुनाव की जिम्मेदारी सौंपी गई, उससे लगता है कि वीडी शर्मा चुनाव तक तो अध्यक्ष बने रहेंगे।

भूपेंद्र यादव का संघ और भाजपा में जिस तरह का तालमेल और उनकी वरिष्ठता है, उसको देखते हुए वीडी शर्मा को उनके साथ तालमेल बिठाना होगा। चुनाव की सारी कमान भूपेंद्र यादव के हाथ में ही रहेगी। अब यह बात अलग है कि वीडी शर्मा को अब तक बचाने में किसका हाथ रहा! किसकी वजह से वे अभी तक बचे हुए हैं। सियासी चर्चा की माने तो इन दो भारी-भरकम चुनाव प्रभारियों की मौजूदगी के सामने चुनाव की दृष्टि से वीडी शर्मा का कद वैसे भी छोटा ही माना जाएगा।

सर्वे की आड़ क्यों ले रही पार्टियां!  

इन दिनों दोनों प्रमुख पार्टियों में विधानसभा का टिकट चाहने वालों की नींद सर्वे ने उड़ाई हुई है। दोनों पार्टियों ने उन्हीं उम्मीदवारों को टिकट देने की बात कही, जो उनके सर्वे में फिट बैठेंगे। यानी सीधा सा मतलब है कि जो चुनाव जीतने की स्थिति में होंगे, उन्हें टिकट दिया जाएगा। फिर वे पुराने उम्मीदवार हो या नए।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista : आदिवासी मुद्दे पर सरकार की उलझनें बढ़ी!
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भाजपा ने तो अपने सभी उम्मीदवारों का सर्वे कराना शुरू कर दिया। जो इस समय विधायक हैं, उनकी स्थिति को भी परखा जा रहा है। जबकि, यही बात कांग्रेस ने भी कही है। हाल ही में कमलनाथ ने भी इस बात को स्पष्ट किया कि टिकट उन्हें ही मिलेगा, जो हमारे क्राइटेरिया में फिट बैठेगा। इसका भी मतलब वही है कि जो सर्वे में पास होगा, उसे टिकट का इनाम दिया जाएगा।

ये भी कहा जा रहा है कि सर्वे की आड़ लेकर पार्टियों के बड़े नेता अपने सिर पर आई बला को टालने की कोशिश ज्यादा कर रहे हैं। माना जा रहा है कि उन्हें , जिन्हें टिकट देना होगा उसमें ये सर्वे आड़े नहीं आएगा।

मंत्रिमंडल और बीजेपी संगठन में महत्वपूर्ण फेरबदल अब कभी भी

बीता सप्ताह सत्ताधारी दल की राजनीतिक गतिविधियों का रहा। प्रधानमंत्री की मंत्रिपरिषद के मंत्रियों की बैठक के बाद कई मंत्रियों की गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात के बाद फेरबदल की संभावना को काफी बल मिला। पर्यटन मंत्री जी किशन रेड्डी को तेलंगाना के भाजपा अध्यक्ष की कमान भी सौप दी गई। ऐसी चर्चा है कि संगठन और सरकार में कुछ महत्वपूर्ण फेरबदल जल्द ही होगा।

उप राज्यपाल और पुलिस आयुक्त के बीच सब कुछ ठीक नहीं

ताजी चर्चा यह है कि दिल्ली के उप राज्यपाल और पुलिस आयुक्त के बीच सब कुछ ठीक नहीं है। इसके पीछे आयुक्त द्वारा पुलिस अधिकारियों की पदस्थापना सूची राजभवन द्वारा अभी तक मंजूरी नहीं देना का कारण बताया जा रहा है। विभिन्न स्थानों से तबादला हो कर आए आईपीएस अधिकारियों ने करीब महीनेभर पहले दिल्ली पुलिस मे अपनी आमद दर्ज करा दी लेकिन पोस्टिंग का अभी तक इंतजार कर रहे हैं।

हटाये जा सकते है ईडी के निदेशक

सत्ता के गलियारों में चल रही चर्चा के अनुसार ईडी के निदेशक का कार्यकाल हालांकि इस वर्ष नवंबर में समाप्त हो रहा है लेकिन उनके पहले भी हटाये जाने की संभावना है।  इस चर्चा में कितना दम है यह तो आने वाला समय ही बतायेगा।