Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: इकबाल का रहेगा बुलंद इकबाल!

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista:

इकबाल का रहेगा बुलंद इकबाल!

इकबाल सिंह बैस मुख्य सचिव बने रहेंगे या उनकी जगह कोई उत्तराधिकारी दिखाई देगा, इस आशंका का कुहासा अब छंटता नजर आ रहा है। क्योंकि, मुख्य सचिव का कार्यकाल 30 नवंबर को पूरा हो रहा है। यदि उनकी जगह कोई और आने वाला होता, तो अभी तक तो कोई ना कोई ओएसडी बन ही जाता लेकिन अभी तक इसके दूर-दूर तक कोई संकेत भी दिखाई नहीं दे रहे हैं। प्रशासनिक और सियासी क्षेत्र में यह चर्चा जोरों पर है कि इक़बाल सिंह बैस की बॉडी लैंग्वेज भी बता रही है कि वे कंटीन्यू कर रहे हैं।

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शनिवार को मुख्य सचिव मध्य प्रदेश सरकार से जुड़े एक बड़े कार्यक्रम में दिल्ली भी गए थे। इससे भी लगता है कि वे काम में लगे हैं। बताया जाता है कि वे जिस तरह आगे की प्लानिंग की बात कर रहे थे उससे साफ जाहिर हो रहा था कि वे कंटिन्यू कर रहे हैं। हाल ही में दो वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों के एक शुभ प्रसंग में भी उनकी मौजूदगी और बॉडी लैंग्वेज यही दर्शा रही थी कि वह अभी कंटिन्यू करने वाले हैं।

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मंत्रालय स्थित अधिकारी भी यह महसूस कर रहे हैं और जिस तरह से वे सक्रियता से कार्य में लगे हुए हैं उससे साफ लग रहा हैं कि वे मुख्य सचिव बने रहेंगे।

जाहिर है मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मंशा अनुसार केंद्र सरकार ने उनकी बात को तवज्जो दी है। इसलिए हमने अपने पिछले कॉलम में लीड स्टोरी दी थी कि ‘शिवराज और इकबाल की जोड़ी बनी रहेगी’।

राहुल गांधी: भाषण की नई स्टाइल

राहुल गांधी आज सत्ता या संगठन में किसी बड़ी पोस्ट पर नहीं हैं। यहां तक कि अपनी खानदानी पार्टी के अध्यक्ष या अन्य किसी भी पद पर नहीं है। लेकिन, इन दिनों उनके जादू से इंकार नहीं किया जा सकता! रविवार को इंदौर में दिनभर यही हुआ। सुबह राऊ में उनकी एंट्री हुई तो बुलेट पर। बड़ी बात ये कि सिर्फ राहुल की एक झलक देखने के लिए महू से राऊ तक सड़क के दोनों तरफ भीड़ खड़ी थी। दोपहर 4 बजे के बाद जब वे इंदौर में घूमे तो भी स्थिति यही थी।

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राहुल की यात्रा का सबसे सकारात्मक पक्ष रहा गुटों में बंटे कांग्रेस नेताओं को एक करना। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इंदौर में पार्टी एक नहीं है! यहां कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के अलावा एक कांग्रेस सज्जन वर्मा और दूसरी किसी और की भी है। लेकिन, जिस तरह माहौल दिख रहा था उससे लगता है कि राहुल की यात्रा ने सबको एक कर दिया। न तो गुटबाजी वाले नारे सुनाई दिए और न किसी नेता ने अपने कार्यकर्ताओं का पक्ष लिया। राहुल ने राजबाड़ा की अपनी सभा में जिस ‘भाई-चारे’ का उल्लेख किया उसका आशय भी निश्चित रूप से वह कांग्रेस के लिए ही होगा।

अब कुछ बातें राहुल की राजबाड़ा सभा की। दरअसल, इसे सभा नहीं कहा जा सकता है। ये राहुल गांधी का जनता से वार्तालाप जैसा प्रसंग था। उन्होंने कई बार जनता से बातें भी पूछी! इसलिए कहा जा सकता है कि ये राहुल गांधी की भाषण की नई स्टाइल है, जिसे लोगों ने पसंद किया। लेकिन, अभी राहुल को इंदौर में एक दिन और रहना है। सोमवार को उनके कई कार्यक्रम हैं, पर वे किसमें जाते हैं किसमें नहीं, ये अभी देखना है।

सहकारिता विभाग का ये ज्ञानी रिटायर अफसर

सहकारिता विभाग का अपना अलग ही हिसाब-किताब है। दूसरे विभागों की तरह यह विभाग आसान नहीं है। सहकारिता की पैचीदगियां हर किसी के बस की बात नहीं है। यही कारण है कि इस विभाग के अफसरों का सहकारिता ज्ञान उन्हें इतना सिद्धहस्त कर देता है, कि वे उस विभाग को छोड़ना भी नहीं चाहते। ये अभी की नहीं बहुत पुरानी परंपरा है और इस परंपरा का निर्वाह आज भी एक अफसर पूरी शिद्दत से कर रहे हैं।

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सहकारिता के एक जॉइंट रजिस्ट्रार रिटायरमेंट के बाद भी यहां के सर्वेसर्वा बने हुए हैं। वे न सिर्फ सहकारिता आयुक्त को अपने रिमोट से ऑपरेट कर रहे हैं, बल्कि मंत्री अरविंद भदौरिया भी इस जॉइंट रजिस्ट्रार की सलाह मानते हैं। इस अफसर को जानने और समझने वालों का कहना है कि वे लम्बे समय से इसी अंदाज से अपना काम करते आ रहे हैं।

कांग्रेस के राज में जब गोविंद सिंह इस विभाग के मंत्री थे और उससे पहले बीजेपी राज में जब विश्वास सारंग के पास यह विभाग था, तब भी इस अफसर की पूंछ परख इसी तरह थी। तब तो वे बकायदा नौकरी में थे और उनके काम के तरीके पर उंगली नहीं उठाई जा सकती! लेकिन, अब वे रिटायर है, फिर भी रोज मंत्री के दफ्तर में उसी रुतबे से आते हैं और काम करते हैं। वे सरकारी रिकॉर्ड में भले रिटायर हो गए हों, पर नौकरी आज भी बजा रहे हैं। वे ये सब मुफ्त में कर रहे होंगे, ऐसा भी नहीं है! अपने सहकारिता के गणित-ज्ञान से वे अपने लिए रास्ता भी निकाल रहे हैं। आखिर जिसके हाथ में विभाग का रिमोट होगा, वो जानता है कि कब कौनसा चैनल लगाना है!

नरेंद्र सलूजा से बीजेपी को क्या मिला, कांग्रेस ने क्या खोया!

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा जब मध्यप्रदेश में होगी तो कांग्रेस में बड़ा सेबोटेज होने के दावे किए गए थे। बीजेपी के कुछ क्षेत्रों में तो यहां तक कहा जा रहा था कि कुछ कांग्रेस विधायकों से बात हो चुकी है। बीजेपी के इस हो-हल्ले से कांग्रेस में भी घबराहट थी कि क्या वास्तव में ऐसा कुछ होने वाला है! लेकिन, जो हुआ उसके बारे में इतना ही कहा जा सकता है कि खोदा पहाड़ और निकली … (आगे आप समझ लो) न कोई हंगामा हुआ और न कांग्रेस की जमीन दरकी। पूर्व सीएम और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ के मीडिया सलाहकार नरेंद्र सलूजा जरूर कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए!

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नरेंद्र सलूजा के जाने से कांग्रेस कितनी कमजोर हुई और बीजेपी की कितनी ताकत बढ़ी ये बताने की जरुरत नहीं! क्योंकि, सलूजा का कोई जनाधार नहीं है और वे पब्लिक लीडर नही हैं। फिर बीजेपी ने उनके लिए दरवाजे क्यों खोले! इस बारे में कांग्रेस संगठन का आरोप है कि वे जब कमलनाथ के मीडिया सलाहकार थे, तब बीजेपी को कांग्रेस के अंदर की सूचनाएं दिया करते थे। जब इस बात की पुष्टि हुई, तो उनका वजन कम किया गया था। इससे नाराज होकर उन्होंने मीडिया का कामकाज बंद कर दिया था। बाद में नरम पड़कर वे फिर सलाहकार जरूर बन गए थे, लेकिन हल्के होकर।

पिछले दिनों इंदौर खालसा स्कूल में एक घटना हुई, जिसमें कमलनाथ के साथ दुर्व्यवहार किया गया था। कांग्रेस ने इसके पीछे भी नरेंद्र सलूजा का हाथ माना था। इसके बाद 8 नवंबर से उन्हें मीडिया के काम से हटा दिया था। इसके बाद बताते हैं कि 13 नवंबर को उन्हें पार्टी से भी 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया। हालांकि इसे लेकर जो पत्र अब सामने आया है,ऐसा लगता है कि उनके बीजेपी ज्वाइन करने के बाद ही दिखाने के लिए जारी किया गया है।

सवाल ये है कि कांग्रेस से निष्कासित कार्यकर्ता को पार्टी में किस मकसद से लिया है, यह तो बीजेपी के नेता ही बता सकते हैं।

बीजेपी का विधायक टिकिट छंटनी प्रसंग जारी!

बीजेपी के कुछ विधायक इन दिनों घबराए हुए हैं। क्योंकि, पार्टी उनको आईना दिखा रही है। उन्हें उनके चुनाव क्षेत्र के सर्वे की रिपोर्ट का खतरा नजर आ रहा है। पार्टी संगठन और मुख्यमंत्री एक-एक विधायक को बुलाकर बता रहे हैं, कि उनके क्षेत्र में उनकी स्थिति क्या है! वे चुनाव जीत सकते हैं या नहीं! गोपनीय तरीके से हुए सर्वे के नतीजों को साल भर पहले विधायक को बताने का आशय यह है कि वे वास्तविकता को समझें और बचे समय में क्षेत्र में मेहनत करें।

BJP's New Ticket Formula

जानकारी बताती है कि बीजेपी संगठन ने इस बार कई तरह से छन्नी लगाने का फैसला किया है। ऐसी स्थिति में 40 से 50 विधायकों को बदला जा सकता है। ये विधायक वे होंगे जो सर्वे रिपोर्ट में बेहद कमजोर निकले हैं। इसके अलावा जिन विधायकों के टिकट कटेंगे, वे उनके होंगे जो पार्टी के नियम के मुताबिक उम्र सीमा पार कर चुके हैं।

बताते हैं कि नेताओं के परिजनों (यानी बेटों) को भी टिकट न देने का नियम बनाया गया है। कुछ मिलाकर जिन विधायकों के टिकट कटेंगे उसकी आचार संहिता पार्टी ने पहले से तैयार कर रखी है। अब देखना है कि किसका पत्ता कैसे कटेगा! लेकिन, जो संकेत हैं उसके मुताबिक जिन विधायकों की छंटनी होने वाली है उनमें सिंधिया के भी वे लोग हैं जो कांग्रेस से उनके साथ आए थे। क्योंकि, मध्यप्रदेश में 230 टिकट ही बांटना है, इसलिए बीजेपी ने पत्ते फेंटना शुरू कर दिए हैं।

चुनावी शोर शराबे में मशगूल दिल्ली, CM शिवराज भी पहुंचे

देश की राजधानी दिल्ली इन दिनों चुनावी शोर शराबे में मशगूल है। दिसंबर के पहले हफ्ते में नगर निगम के 250 वार्डों के लिए वोटिंग होगी। चुनाव प्रचार में मुद्दे कम आरोप प्रत्यारोप ज्यादा है। आप के खिलाफ भाजपा ज्यादा आक्रामक है। भाजपा के देशभर के नेता दिल्ली में प्रचार में लगे हुए हैं। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी दिल्ली पहुंच गए हैं। प्राप्त जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री चौहान आज दिल्ली में एमसीडी चुनाव में भाजपा के महाजनसंपर्क अभियान के अंतर्गत शास्त्री नगर, सरस्वती विहार, आदर्श नगर, शालीमार बाग, रोहिणी डी सेक्टर में जनसंपर्क और सभाएं करेंगे।

Good Governance

चुनाव में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस दबी जुबान आप की आलोचना कर रही है। आप नेताओं के झगड़े खूब प्रचारित हो रहे हैं। भाजपा ने 17 साल बाद तीन नगर निगमों को मिला एक कर दिया।प्रतिष्ठित लड़ाई उसी के लिए हो रही है। भाजपा पिछले 15 सालों से निगम का शासन कर रही है।

सत्ता के गलियारों में यह चर्चा भी जोरों पर है इस बार अगर भाजपा निगम चुनाव जीत जाती है तो दिल्ली विधानसभा समाप्त कर दिल्ली की बागडोर निगम के हवाले कर दी जाएगी। वैसे भी दिल्ली के IAS और IPS अधिकारी गृह मंत्रालय के अधीन आते है।

हड़बड़ी में पूर्व IAS गोयल निर्वाचन आयुक्त नियुक्त: सुप्रीम कोर्ट नाराज़

अरुण गोयल को निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की जबरदस्त नाराजगी झेलनी पडी। अदालत ने साफ साफ कह दिया कि उनकी नियुक्ति हडबडी मे की गई और पारदर्शिता नहीं बरती गई। सत्ता के गलियारों में इस बात की खूब चर्चा रही कि कालेजियम प्रक्रिया कितनी पारदर्शिता है। अगर सर्वोच्च अदालत को ऐसा लगता है तो निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति मे भी कालेजियम व्यवस्था लागू करने का आदेश दे देना चाहिए।

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दिल्ली प्रशासन में व्यापक उलटफेर की अटकलें
नगर निगम चुनाव के बाद दिल्ली प्रशासन में व्यापक उलटफेर की अटकलें लगाई जा रही है। इसमे मुख्य सचिव के अलावा आधे दर्जन सचिव भी बदले जा सकते हैं।