Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: MP में बढ़ती सिंधिया की ताकत !
ऐसा लगता है कि MP बीजेपी में सिंधिया ताकत बढ़ती जा रही है।यह हम नही कह रहे है पिछले दो दिन में हुई दो घटनाओं ने इसे साबित भी किया है। पीएम मोदी का ग्वालियर में उनके निजी कार्यक्रम में भाग लेना और उन्हें अपना दामाद बताना और विधान सभा टिकट वितरण में उन्हें महत्व दिया जाना।( उनके एक समर्थक मंत्री को छोड़ लगभग सभी टिकट पाने में कामयाब रहे।)
भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश के अपने अधिकांश उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। लेकिन, यदि इस लिस्ट को गंभीरता से खंगाला जाए तो गौर करने वाली बात है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर लगाए गए सारे अनुमान खंडित हो गए। भाजपा हाईकमान ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को उम्मीदवारों के चयन में जिस तरह से तवज्जो दी, उसे समझा जा सकता है।
इसका एक सीधा सा संकेत सिंधिया को भाजपा में कमजोर समझने वालों को अपना अनुमान सुधार लेना चाहिए। उनके समर्थकों में कुछ ही लोग हैं जिनके टिकट काटे गए। उनमें एक ओपीएस भदौरिया का नाम लिया जा सकता है, जिन्हें टिकट नहीं मिला और यह स्वाभाविक बात है। लेकिन, इमरती देवी जैसी नेता को टिकट दिए जाने का साफ संदेश है कि सिंधिया हाशिये पर नहीं हैं।
पार्टी हाईकमान की उन्हें हाशिये पर रखने की कोई योजना भी दिखाई नहीं देती। संभव है कि पार्टी ने उन्हें लेकर कोई नई योजना बना रखी हो। ध्यान देने वाली बात यह भी है कि सात सांसदों और पार्टी के एक राष्ट्रीय महासचिव को चुनाव लड़वाने वाली पार्टी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को विधानसभा का टिकट नहीं दिया। खुद सिंधिया ने भी कहा था कि उनकी विधानसभा चुनाव लड़ने की रूचि नहीं है और उनकी बात सही भी निकली।
*अब कहां गया परिवारवाद का नारा!*
मध्य प्रदेश में टिकट वितरण को लेकर भाजपा ने शुरू में जो नीति बनाई थी, वह पूरी तरह ध्वस्त हो गई। परिवारवाद को नकारने वाली भाजपा ने बालाघाट के विधायक गौरीशंकर बिसेन की बेटी मौसम बिसेन को पिता की जगह टिकट दिया है। जबकि, प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष स्व नंदकुमार सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन सिंह को फिर किनारे कर दिया गया।
यह दूसरी बार हुआ जब हर्षवर्धन सिंह को मौका नहीं दिया। पहली बार जब स्व नंदकुमार सिंह के निधन के बाद खंडवा में हुए उपचुनाव में भी उनके बेटे को टिकट नहीं दिया गया था। उस समय उन्हें आश्वासन दिया था कि विधानसभा चुनाव में आपको कहीं एडजस्ट करेंगे। लेकिन, हर्षवर्धन सिंह तो एडजस्ट नहीं हुए! पिछला चुनाव हारने वाली अर्चना चिटनीस को जरूर पार्टी ने टिकट दे दिया। यह पार्टी की दोहरी नीति ही कही जाएगी कि बालाघाट से मौसम बिसेन को टिकट देना और हर्षवर्धन सिंह को टिकट से वंचित रखा गया।
*कांग्रेस में कुछ सीटों के नामों को लेकर फिर मंथन!*
कांग्रेस ने एक सीट छोड़कर 229 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी। आमला की एक सीट भी निशा बांगरे के लिए खाली छोड़ी गई है, जो डिप्टी कलेक्टर के पद से इस्तीफा देकर राजनीति में पारी खेलने वाली है। जो 229 उम्मीदवार कांग्रेस ने घोषित किए हैं, उनमें से 8-10 जगह पर उम्मीदवारों के नाम को लेकर स्थानीय कार्यकर्ताओं में भारी रोष उभरा।
कई जगह आक्रोश इतना ज्यादा बढ़ा कि पुतले जलाए गए, हंगामेदार आंदोलन किया और कपड़े फाड़ने तक के दृश्य सामने आए। यह पार्टी के लिए चिंता वाली बात है। अब सुना जा रहा है कि कांग्रेस में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए मंथन चल रहा है। संभावना है कि घोषित 229 उम्मीदवारों में से 5 से 7 बदलने का विचार करना शुरू कर दिया।
शुरुआती लिस्ट के तीन उम्मीदवारों को भी कांग्रेस ने इसी तरह के विरोध के बाद बदला था। अभी भी यह सिलसिला जारी है और आश्चर्य नहीं कि नाम वापस लेने की तारीख तक कुछ और चेहरे बदल जाएं। क्योंकि, यदि नाराज स्थानीय कार्यकर्ताओं की बात नहीं मानी गई, तो बाजी पलट भी सकती है और कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेगी।
*रिटायर्ड आईएएस अफसर दोनों पार्टियों से निराश*
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले कई आईएएस और आईपीएस अधिकारी भाजपा में इस आस में शामिल हुए थे, कि शायद उन्हें इस चुनाव में अपना भाग्य आजमाने का मौका मिल जाएगा! कुछ अफसरों के नाम की चर्चा तो इतनी तेज थी कि उन्हें टिकट मिलना तय है। लेकिन, जब लिस्ट सामने आई तो एक भी रिटायर्ड अधिकारी का नाम लिस्ट में नहीं था।
इसी प्रकार कांग्रेस में भी दो पूर्व आईएएस अफसर के नाम भी टिकट के लिए चल रहे थे। लेकिन, वे भी निराश ही हुए। माना जा सकता है कि राजनीतिक पार्टियां भी अब यह मानने लगी हैं कि आईएएस / आईपीएस अधिकारियों का कोई जन आधार नहीं होता। बल्कि, उनके नाम से जनता को नाराजी ज्यादा होती है और अंततः उन्हें हार का सामना करना पड़ता है। लेकिन, पूर्व में ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें आईएएस अधिकारियों ने अपनी जीत दर्ज की। इनमे पूर्व आईएएस अधिकारी अजीत जोगी से लेकर भागीरथ प्रसाद तक इसके उदाहरण है।
इस बार मुरैना के पूर्व भाजपा विधायक और मंत्री रहे रुस्तम सिंह अपने बेटे राकेश सिंह को भाजपा से टिकट दिलाने की कोशिश में थे। जब बात नहीं बनी तो राकेश सिंह ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया। बीएसपी के प्रदेश प्रभारी और राज्यसभा सांसद रामजी गौतम ने उन्हें बसपा की सदस्यता दिलाई। अब राकेश को बीएसपी ने मुरैना से टिकट भी दे दिया है।
*पुराने चेहरों को फिर मैदान में उतारा!*
भारतीय जनता पार्टी ने अपनी पांचवी लिस्ट में पुराने नेताओं को ढूंढ ढूंढकर उम्मीदवार बनाया है। इनमें कई ऐसे उम्मीदवार भी हैं, जो राजनीति को छोड़कर रिटायरमेंट की लाइफ बिताने को तैयार हो गए थे। जयंत मलैया, अंतर सिंह आर्य, नागेंद्र सिंह द्वय, सीताशरण शर्मा, अर्चना चिटनीस को ऐसे ही चेहरों में गिना जा सकता है।
इन्हें टिकट मिलने की उम्मीद नहीं थी। लेकिन, पार्टी ने उन्हें झाड़-पोंछकर फिर चुनाव के लिए तैयार कर लिया। इससे एक बात स्पष्ट हो गई कि पार्टी किसी भी तरह के विरोध और असंतोष से बचने के लिए ऐसे उम्मीदवारों को चुना, जिनको लेकर कोई नाराजगी सामने न आए। क्योंकि, जिस तरह कांग्रेस की सूची आने के बाद सड़क पर संतोष हुआ, भाजपा वह स्थिति से बचना चाहती थी। यही कारण है कि कई पुराने लोगों को टिकट देकर संभावित असंतोष को ठंडा कर दिया गया।
*’आप’ के ‘खास’ पत्रकार*
दिल्ली में सत्तारूढ़ आप पार्टी इन दिनों अजीब पशोपेश मे है। पार्टी ने कुछ खास पत्रकारों को अपना ‘खास’ बनाया और उन्हें केन्द्र सरकार के खिलाफ कथित मुखबिरो की तरह काम लिया। इतनी सटीक तैयारी के बावजूद पार्टी के सासंद संजय सिंह की गिरफ्तारी की आशंका की खबर देने मे यह खास पत्रकार असफल रहे। अब बताया जा रहा है कि आप फिर से नये ‘खास’ पत्रकारों को ढूंढने में लगी है।
*CAG तीन दर्जन अधिकारियों के तबादले,आडिट का काम प्रभावित*
तीन दर्जन अधिकारियों के तबादले के बाद केंद्रीय महा लेखाकार (सी ए जी) मे पिछले एक महीने से आडिट का काम अस्तव्यस्त हो गया है। बताया जाता है कि नाराजगी के कारण अधिकारी सहयोग नही कर रहे। सी ए जी की आडिट रिपोर्ट बजट सत्र में संसद के पटल पर रखी जाती है। लेकिन आडिट कार्य ठीक से शुरू न होने के कारण रिपोर्ट के समय पर तैयार होने पर संदेह जताया जा रहा है।
*दिल्ली पुलिस में उच्च स्तर पर कुछ फेरबदल के आसार*
दिल्ली पुलिस में उच्च स्तर पर कुछ फेरबदल होने की सूचना हे। सूत्रों का कहना है कि इस प्रस्तावित फेरबदल में विशेष आयुक्त स्तर के आईपीएस अधिकारी प्रभावित हो सकते हैं। दिल्ली पुलिस में लगभग आधा दर्जन विशेष आयुक्त है। बताया जाता है कि फेरबदल का आदेश इसी हफ्ते निकल सकता है।