Vallabh Bhawan Corridors to Central Vista: वरिष्ठ IAS खुल्बे की अपेक्षित PMO वापसी में ट्विस्ट
पता चला है कि प्रधानमंत्री के सलाहकार भास्कर खुल्बे (सेवानिवृत्त IAS:1983:WB) अपने वर्तमान दो साल के कार्यकाल (अनुबंध के आधार पर) के पूरा होने पर एक और कार्यकाल के लिए जारी रह सकते हैं।
हालाँकि, उनकी पुनर्नियुक्ति में एक ट्विस्ट है, पर उसके लिए एक मिसाल पहले से मौजूद है जो कि खुल्बे के पुनर्नियुक्ति के पक्ष में जा सकता है।
ज्ञातव्य है कि सरकार ने 21 फरवरी 2020 को भास्कर खुल्बे और अमरजीत सिन्हा (सेवानिवृत्त आईएएस: 1983: BH) को प्रधान मंत्री के सलाहकार के रूप में 21.02.2022 को समाप्त दो साल की प्रारंभिक अवधि के लिए नियुक्त किया था।
चूंकि खुल्बे का कार्यकाल 20 फरवरी, 2022 को समाप्त हो गया था, इसलिए उनका नाम वेबसाइट पर पीएमओ अधिकारियों की सूची से हटा दिया गया था।
अधिकारियों को आश्चर्य है कि अगर खुल्बे को फिर से नियुक्त किया जाना था तो पीएमओ अधिकारियों की सूची से खुल्बे का नाम क्यों हटा दिया गया। अधिकारी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इस निरंतरता में ब्रेक के पीछे पहेली क्या है ?
पर पहले भी ऐसा हो चुका है । सितंबर 2019 में पीएमओ में सचिव के रूप में विस्तारित छह महीने के कार्यकाल को पूरा करने के बाद खुल्बे सेवानिवृत्त हुए। उसके लगभग 4 महीने के अंतराल के बाद खुल्बे को पीएमओ में सलाहकार के पद पर नियुक्ति की गयी।
इसी बात को ध्यान में रखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ हफ्तों या महीनों के गैप के बाद खुल्बे को पहले की तरह अनुबंध के आधार पर फिर से नियुक्त किया जा सकता है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार भास्कर खुल्बे को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था।
सूत्रों का यह भी कहना है कि कथित कोयला घोटाले से अभी खुल्बे का पीछा नहीं छूटा है। पता चला है कि जांच एजेंसी इस मामले में जल्दी ही आरोप पत्र जारी कर सकती है।
बताया जाता है कि खुल्बे के कोयला मंत्रालय मे नियुक्ति के समय ही यह घोटाला हुआ था।
कौन होगा भगवंत मान की सरकार में मुख्य सचिव और डीजीपी
पंजाब में पहली बार आप की सरकार बनने जा रही है। एक लंबे समय तक कांग्रेस और अकाली के रंग में ढली अफसरशाही का तनाव भी कम नहीं है। हालांकि नये मुख्यमंत्री को भी पुराने ढांचे में ढली अफसरशाही में से अपनी पसंद का अफसर ढूढना भी आसान नहीं है। राज्य के नये मुख्यसचिव और पुलिस महानिदेशक के चयन को लेकर राज्य के मनोनीत मुख्यमंत्री भगवंत मान दो बार पार्टी मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मिल चुके हैं। बताया जाता है कि केजरीवाल ने सलाह दी है ऎसे अफसर का पता लगाओ जिसे कांग्रेस और पूर्व की सरकारों की राजनीति के कारण साईड लाईन कर दिया गया हो। सूत्रों का कहना है कि फिलहाल रवनीत कौर मुख्य सचिव की दौड़ में आगे बताई जा रही है। वे 1988 बैच की IAS अधिकारी है।
पिछली कांग्रेस सरकार में सबसे ज्यादा खींचतान डीजीपी को लेकर रही। छह महीने के अंदर तीन डीजीपी बनाए गए। वर्तमान पुलिस महानिदेशक वी के भावरा संघ लोक सेवा आयोग की सिफारिश के बाद इसी वर्ष जनवरी में इस पद पर नियुक्त हुए हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट के दो साल के निर्देश का पालन किया गया तो भावरा अपने पद पर बने रह सकते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि डीजीपी के मामले में राजनीति हावी होती है अथवा अदालत का डंडा चलता है।
सुहास भगत की संघ में वापसी, भाजपा की मिशन 2023 की तैयारी तो नहीं!
मध्यप्रदेश में रविवार को ताबड़तोड़ एक सियासी हलचल हुई, जिससे प्रदेश का राजनीतिक पारा गरमा गया। प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री सुहास भगत को आरएसएस ने वापस बुला लिया। कहा जा रहा है कि ये कार्रवाई भाजपा की मिशन-2023 की तैयारी के तहत हुई है। सुहास भगत भाजपा संगठन में हुई कुछ नियुक्ति को लेकर चर्चा में थे।
उनके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी वैसे इक्वेशन नहीं थे, जैसे अरविंद मेनन से रहे। कारण जो भी हो, बहरहाल भगत की भाजपा के प्रदेश संगठन से विदाई हो गई। सुहास भगत को आरएसएस में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बौद्धिक संगठन प्रमुख बनाने को एक तरह से प्रमोशन कहा जा रहा है! लेकिन, राजनीति को समझने वालों को पता है कि यह किस तरह का प्रमोशन है!
अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की दृष्टि से अब प्रदेश संगठन महामंत्री नियुक्त किया जाएगा। माना जा रहा है कि हितानंद शर्मा को ही प्रमोट करके इस पद पर आसीन किया जा सकता है। लेकिन, फिलहाल कुछ कहा नहीं जा सकता!
एक पत्थर से उमा भारती ने क्या पाया, क्या खोया!
उमा भारती ने रविवार के दिन जो किया, उसके कई राजनीतिक कारण गिनाए जा सकते हैं। उन्होंने भोपाल के ‘भेल’ इलाके की एक शराब दुकान पर एक पत्थर फेंककर अपने इरादों का इजहार कर दिया! शराबबंदी को लेकर लम्बे समय से माहौल बनाने की कोशिश कर रही हैं, पर बात बन नहीं रही! प्रदेश सरकार ने उनकी बात को तवज्जो दी हो, ऐसा भी नहीं लगा! क्योंकि, प्रदेश में शराबबंदी करोड़ों के रुपए के राजस्व के नुकसान का मसला है, जिसे सिर्फ उमा भारती की इच्छा के आगे होम नहीं किया सकता।
पूर्व मुख्यमंत्री के इस एक पत्थर ने कई नए सवालों को जन्म दे दिया! उमा भारती अगला चुनाव लड़ने की भी घोषणा कर चुकी हैं, इसलिए उसे प्रचार के नजरिए से भी देखा जा सकता है! लेकिन, जरूरी नहीं कि पार्टी उमा भारती को चुनाव मैदान में उतार ही दे। क्योंकि, शराब दुकान पर पत्थर फेंककर उन्होंने क्षणिक सनसनी जरूर फैला दी, पर इससे न तो कोई जन जागरूकता का काम हुआ और न उनके पक्ष में माहौल बना! सवाल ये भी है कि जब चार दिन पहले उनकी मुख्यमंत्री से इस मुद्दे पर बातचीत हुई थी फिर अचानक उन्होंने कानून हाथ में लेने का काम क्यों किया!
क्या उत्तराखंड में संधू मुख्य सचिव बने रहेंगे?
उत्तराखंड में हालांकि मुख्यमंत्री को लेकर असमंजस की स्थिति है लेकिन मुख्य सचिव एस एस संधू की कुर्सी को लेकर कोई संशय नहीं बताया जाता। संधू राज्य सरकार की मांग पर ही दिल्ली में उत्तराखंड पिछले साल अगस्त में गये थे। पुलिस महानिदेशक अशोक कुमार के भी अपने पद पर बने रहेंगे। राज्य प्रशासन के दोनों ही मुखिया भाजपा सरकार के ही नियुक्त किए हुए हैं।
केंद्र में बड़े प्रशासनिक फेरबदल की सुगबुगाहट
दिल्ली की सत्ता गलियारों में अब यह उम्मीद की जा रही है कि केंद्र सरकार अब कुछ बड़े प्रशासनिक फेरबदल कर सकती है। वर्तमान में केंद्र में लगभग आधा दर्जन सचिव के पद खाली पड़े हैं। चर्चा यह भी है कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव डी एस मिश्रा को दिल्ली में कोई बडी जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। उत्तर प्रदेश में आर के तिवारी फिर से मुख्य सचिव की कुर्सी पर बैठाये जा सकते हैं।
श्रीमती दरबारी को मिला महत्वपूर्ण अतिरिक्त प्रभार
श्रीमती शालिनी दरबारी को केंद्रीय लोक निर्माण विभाग के मुख्य सतर्कता अधिकारी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। 1990 बैच की रेलवे एकाउंट सर्विस की अधिकारी श्रीमती दरबारी वर्तमान में राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम में मुख्य सतर्कता अधिकारी हैं।
Ratlam Choupal: मालिकाना हक की 46 सालों से बांट जोह रहे 59 दुकानदार