Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: दिल्ली में लिखी गई दीपक जोशी के विद्रोह की कहानी!

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Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: दिल्ली में लिखी गई दीपक जोशी के विद्रोह की कहानी!

मध्यप्रदेश में भाजपा के आधार स्तंभ रहे पूर्व मुख्यमंत्री स्व कैलाश जोशी के बेटे पूर्व मंत्री दीपक जोशी ने भाजपा त्यागकर कांग्रेस ज्वाइन कर ली। लेकिन, अभी तक यह बात सामने नहीं आई दीपक जोशी आखिर पार्टी के इतने खिलाफ क्यों हो गए! तारीख तय करने के बाद निर्धारित समय पर उन्होंने भाजपा को छोड़ भी दिया। उन्हें मनाने की पार्टी की सारी कोशिशें भी विफल रही। खास बात ये कि इस पूरे घटनाक्रम में कांग्रेस का कोई ऐसा व्यक्ति भी सामने नहीं आया, जिसने दीपक जोशी की मानसिकता बदलने में भूमिका निभाई हो! निश्चित रूप से वह कोई व्यक्ति तो जरूर होगा। लेकिन, इस बारे में अभी तक नाम सामने नहीं आया।

दिल्ली के भरोसेमंद सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार हम उस व्यक्ति का नाम बता रहे हैं, जिसने दीपक जोशी के पार्टी बदल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वो है कांग्रेस नेता और हरियाणा के बड़े उद्योगपति नवीन जिंदल। बताया जाता है कि इस कांग्रेस नेता से दीपक जोशी के उनके स्वर्गीय पिता के समय से पुराने संबंध रहे हैं। बताते हैं कि जब उन्हें लगा कि भाजपा दीपक जोशी के साथ अच्छा बर्ताव नहीं कर रही है और कोरोना काल में जब उन्हें मदद की जरुरत थी, उन्हें अकेला छोड़ दिया गया! उनके साथ जो हुआ उससे वे बेहद आहत हैं।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: दिल्ली में लिखी गई दीपक जोशी के विद्रोह की कहानी!

उनके पिता का स्मारक बनाने को लेकर भी पार्टी का नजरिया नकारात्मक रहा। ऐसी स्थिति में नवीन जिंदल ने उन्हें कांग्रेस में आने का रास्ता खोला। दिल्ली के सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि दीपक जोशी दिल्ली में राहुल गांधी से भी मिले थे। इससे तो यही जाहिर होता है कि जो राजनीतिक स्थितियां निर्मित हुई, वो मध्यप्रदेश से नहीं, दिल्ली से बनाई गई है। यह भी पता चला है कि दीपक जोशी को कांग्रेस से हर बात का आश्वासन दिया गया है। उनकी भविष्य की राजनीति की पूरी पटकथा दिल्ली में लिखी गई। आज भले ही मध्यप्रदेश के स्थानीय नेता अपनी पीठ ठोंक रहे हों, लेकिन जो हुआ और जो होगा वह सब दिल्ली से ही होगा। माना जा सकता है कि यही कारण रहा कि बीजेपी द्वारा सभी संभव प्रयास करने के बाद भी दीपक जोशी टस से मस नहीं हुए और अपनी पूर्व घोषणा अनुसार 6 मई को बकायदा भाजपा को त्याग कर कांग्रेस में शामिल हो गए।

दिग्विजय सिंह की फोन पॉलिटिक्स!

कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह की राजनीति की अपनी एक अलग ही अदा है। वे हमेशा कुछ ऐसा कर जाते हैं कि चर्चाओं का घटनाक्रम उनके आसपास केंद्रित हो जाता है। हाल ही में भाजपा में जिस तरह का विद्रोह होता दिखाई दिया, दिग्विजय सिंह ने उसमें भी पेंच डालकर भाजपा के कुछ नेताओं को संदिग्ध तो बना ही दिया।

इसकी शुरुआत उन्होंने पिछले दिनों इंदौर आगमन से की, जब सुंदरलाल पटवा के भतीजे और भोजपुर से भाजपा विधायक सुरेंद्र पटवा के घर पहुंच गए। वहां उन्होंने घर के बुजुर्गों से मुलाकात की, उनसे आशीर्वाद लिया और पटवाजी के फोटो पर पुष्प चढ़ाकर सुरेंद्र पटवा से लंबी बात की। उनके यहां जाने की घटना को सुरेंद्र पटवा ने भी ट्वीट किया और दिग्विजय सिंह ने भी।

Vallabh Bhawan Corridors To Central Vista: दिल्ली में लिखी गई दीपक जोशी के विद्रोह की कहानी!

बात यहीं खत्म नहीं हुई। इसके बाद सत्यनारायण सत्तन ने जिस तरह भाजपा संगठन पर हमला बोला और उसके साथ ही पूर्व विधायक भंवरसिंह शेखावत ने भी सवाल खड़े किए, दिग्विजय सिंह ने दोनों नेताओं से फोन पर लंबी बात की। दोनों से उन्होंने अपने पुराने संबंधों का उल्लेख किया। लेकिन, इसके बाद क्या हुआ यह बात बाहर निकलकर नहीं आई।

दीपक जोशी से तो उन्होंने इसलिए बात नहीं की, कि उन्होंने तो कांग्रेस ज्वाइन करने की तारीख तक बता दी थी। लेकिन, अभी इन सवालों का जवाब नहीं मिला। सुरेंद्र पटवा, सत्यनारायण सत्तन और भंवर सिंह शेखावत से दिग्विजय सिंह ने क्या बातचीत की, इसका खुलासा नहीं हुआ। वे सिर्फ कुशलक्षेम पूछने के लिए तो दिग्विजय सिंह फोन करने से रहे! यदि भविष्य में दीपक जोशी की तरह कुछ होता है, तो यह मानकर चला जाना चाहिए यह दिग्विजय सिंह के फोन का ही असर है!
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अनूप मिश्रा के इरादों में अलग ही तेवर! 

मालवा से भाजपा में नाराजी और विद्रोह का जो माहौल बना था, उसकी धमक ग्वालियर तक सुनाई देने लगी। पूर्व सांसद और प्रदेश मंत्री रहे अनूप मिश्रा अपने एक बयान से एक बार फिर चर्चा में छा गए! उन्होंने अपना इरादा बता दिया कि चाहे जो हो, वे ग्वालियर (दक्षिण) सीट से चुनाव लड़ेंगे और ये तय है। अनूप मिश्रा के तेवरों से लगता है कि उन्होंने अपनी इच्छा व्यक्त नहीं की, बल्कि पार्टी को बता दिया कि वे कहां से चुनाव लड़ेंगे।

उन्होंने यह भी बता दिया कि मैं यह मायने को तैयार नहीं हूं कि पार्टी मुझे टिकट नहीं देगी, इसे कोई टाल नहीं सकता! ग्वालियर (दक्षिण) से टिकट मिलने और चुनाव से लेकर चुनाव लड़ने के इरादे लेकर वे बहुत मजबूत लग रहे हैं। अनूप मिश्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि ग्वालियर-चंबल अंचल में विधानसभा चुनाव में सही लोगों को टिकट दिए गए और रणनीति बनाई गई तो भाजपा इलाके की 34 में से 28-29 सीटें जीत सकती है।

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ गोविंद सिंह के अनूप मिश्रा को कांग्रेस में आने का न्यौता देने के बयान पर अनूप मिश्रा ने कहा कि मेरे और डॉ गोविंद सिंह के रिश्ते पारिवारिक हैं। लेकिन, राजनीतिक मतभेदों के कारण मैं कांग्रेस में नहीं जा सकता और वे भाजपा में नहीं आ सकते! उन्होंने यदि मुझे कांग्रेस में आने की बात कही, तो ये वो भावनाओं में बहकर दिया होगा। इसके लिए उन्हें धन्यवाद!

अनूप मिश्रा ने कहा कि मैं जिस परिवार से हूं, वहां पार्टी छोड़कर जाने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। लेकिन, कहा ये भी जा रहा है कि यदि पार्टी संगठन ने उन्हें ग्वालियर (दक्षिण) से टिकट नहीं दिया तो वे कुछ भी करने की स्थिति में हैं! क्योंकि, उनके इरादे चुनाव लड़ने के साथ इस बात के भी हैं कि कहां से चुनाव लड़ना है।  और बता दें कि अनूप मिश्रा हर बार सीट बदलने की जुगाड़ में रहते हैं।

संगठन की कमजोरी बनी बगावत का कारण!

भाजपा के वरिष्ठ नेता दीपक जोशी, सत्यनारायण सत्तन और भंवरसिंह शेखावत को लेकर पिछले दिनों पार्टी में जो कुछ हुआ, उसके पीछे पार्टी के लोग यदि किसी को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, तो वे है पार्टी संगठन। पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने बिना नाम का उल्लेख किए बताया कि इन तीनों नेताओं ने गुस्से में पार्टी पर जो आरोप लगाए हैं, वे सभी संगठन की कमजोरी के हैं।

BJP's New Ticket Formula

सभी के आरोपों में एक बात कॉमन थी, वो ये कि पार्टी में संवादहीनता की स्थिति है और अनुभवी, वरिष्ठ नेताओं की उपेक्षा की जा रही है। इस बात से इंकार भी नहीं किया जा सकता। हर जगह नौसीखिए युवाओं को आगे बढ़ाया गया। वे योग्य हैं या नहीं, यह बात अलग है। लेकिन,पार्टी संगठन ने पार्टी के अनुभवी नेताओं से न तो सीखने की कोशिश की, न कोई महत्व दिया , और तो और उन्हें पूरी तरह इग्नोर किया गया।

शायद इसी का नतीजा है कि इन नेताओं के सब्र का बांध टूट गया और वे बगावत पर उतर आए। अब देखना है कि संगठन इस गलती को किस तरह सुधारता है। क्योंकि, यदि सुधारा नहीं गया, तो 7 महीने बाद पार्टी को विधानसभा चुनाव में मुकाबले में उतरना है। ऐसी स्थिति में संवादहीनता और अनुभवी नेताओं की उपेक्षा का खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।

क्या भार्गव सिर्फ पश्चिम इंदौर के महापौर!

इंदौर के विस्तारित होने के बाद लोगों ने अपनी सुविधा के लिए दो हिस्सों में दिया है। इंदौर पूर्व यानी पलासिया से बाईपास तक का इलाका और इंदौर पश्चिम यानी अन्नपूर्णा, सुदामा नगर और फूटी कोठी वाला इलाका। ये दोनों इलाके किसी भी मामले में अलग नहीं है। सिर्फ किसी को पता समझाने के लिए यह सुविधाजनक तरीका भर है। लेकिन, इंदौर के महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने शहर को इसे पूरी तरह बांटकर रख दिया।

वे जब महापौर का चुनाव जीते थे, तो उन्हें पूरे इंदौर ने वोट दिए और उन्हें चुनाव जीता भी। लेकिन, अभी तक के उनके कार्यकाल में कहीं भी ऐसा नहीं लगा कि उनका ध्यान कभी शहर के पूर्वी इलाके की तरफ गया हो! उनकी सारी योजनाएं सारे, विकास के सारे आइडिए, भूमि पूजन, उद्घाटन और स्पर्धाएं शहर के पश्चिमी इलाके तक ही सीमित हैं।

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अब तो लोग उन्हें महू नाके से फूटी कोठी तक का महापौर भी कहने लगे हैं। क्योंकि, अभी तक जितने भी आयोजन उनके नेतृत्व में या नगर निगम ने करवाए हैं, वो सब इसी एक रास्ते पर या उसके आसपास हुए। लोगों का कहना है उनकी नजर इस विधानसभा क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत बनाकर भविष्य की राजनीति का आधार तैयार करना है।

लेकिन, उनके इस कदम से शहर के पूर्वी इलाके के लोग अब अपने आपको ठगा सा महसूस कर रहे हैं कि शायद उनसे गलती हो गई! क्योंकि, यदि पुष्यमित्र भार्गव को पूरा ध्यान पश्चिमी इलाके पर ही केंद्रित रखना था, तो वे चुनाव के समय उनसे वोट मांगने क्यों आए! लोगों का सोच सही भी है। क्योंकि, महापौर पूरे शहर का होता है न कि किसी एक इलाके का। लेकिन, वे जो कर रहे हैं, इसका खामियाजा किसी को तो भुगतना पड़ेगा। ये बात सही है कि उन्हें राजनीतिक समझ नेता की तरह नहीं है। वे अभी तक वकील थे। उनके सलाहकारों में भी कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा, जो उन्हें बताए कि राजनीति के हिसाब से क्या सही है! वे सिर्फ एक इलाके के महापौर नहीं, पूरे इंदौर के हैं।

दो वरिष्ठ IPS अधिकारियों के बीच झगड़े की चर्चा

कर्नाटक विधानसभा के चुनाव प्रचार पिछले हफ्ते काफी तेज रहा। केंद्र सरकार के अधिकांश बड़े मंत्री प्रचार मे व्यस्त रहे। बुधवार को होने वाली कैबिनेट बैठक भी संभवतः इसी कारण नहीं हुई क्योंकि प्रधानमंत्री सहित कई मंत्री कर्नाटक दौरे पर थे।

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इस आपाधापी के बीच दिल्ली पुलिस के दो वरिष्ठ IPS अधिकारियों के बीच हुई तथाकथित झगडे की चर्चा गलियारों में काफी चर्चित रही। बताया जाता है कि विशेष आयुक्त स्तर के दोनों अधिकारी आयुक्त से खास मुद्दे पर चर्चा करने गये थे तभी किसी बात पर इतनी तना तनी हो गयी मारपीट की नौबत आ गई। बताया जाता है आयुक्त ने किसी तरह मामला शांत कराया।

हटना चाहते हैं पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा

अगर सूत्रों पर भरोसा किया जाय तो यह कहा जा सकता है कि दिल्ली के पुलिस आयुक्त संजय अरोड़ा अपने पद से हटना चाहते हैं। बताया जाता है कि उन्होंने गृह मंत्रालय को इस बारे में अपना आवेदन भी दे दिया है।

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अरोड़ा तमिलनाडु काडर के आई पी एस अधिकारी हैं ।वे पिछले साल अगस्त में दिल्ली के पुलिस आयुक्त बनाए गए थे। इसके पहले वे आईटीबीपी के महानिदेशक थे।

CRPF से रिटायर होने वाले DG है भाग्यशाली

केंद्रीय बल सीआरपीएफ से रिटायर होने वाले महानिदेशक काफी भाग्यशाली है। पिछले पाँच साल में डीजी पद से रिटायर हुए तीन आईपीएस अधिकारियों को सुरक्षा सलाहकार बनाया गया। 2018 में के विजय कुमार को राज्यपाल का सुरक्षा सलाहकार बनाया गया। उपराज्यपाल की नियुक्ति के बाद सीआरपीएफ से रिटायर हुए आर आर भटनागर वहां के सुरक्षा सलाहकार नियुक्त हुए। पिछले हफ्ते इसी बल के तीसरे रिटायर्ड डीजी कुलदीप सिंह को मणिपुर के राज्यपाल का सुरक्षा सलाहकार बनाया गया है।

IPS जैन को DG स्केल, CBI में बने रहेंगे या अपने कैडर में जाएंगे

जांच एजेंसी सी बी आई के विशेष निदेशक प्रवीण सिन्हा के अप्रैल में रिटायर होने के बाद से उनका पद अभी खाली है। इस बीच अपर निदेशक डी के जैन अपने काडर राजस्थान में डी जी वेतनमान में पदोन्नत हो गये है। अब देखना होगा कि वे वापस अपने होम कैडर राजस्थान जाते हैं अथवा दिल्ली में ही रुकते है। जैन राजस्थान कैडर के आई पी एस अधिकारी हैं ।