Verdict on Interfaith Couple : हाईकोर्ट ने कहा ‘अंतरधार्मिक विवाह के लिए लीगल फ्रेमवर्क बेहद जटिल!’

HC ने अंतरधार्मिक जोड़े का विवाह कराने वाले के खिलाफ दर्ज FIR रद्द की!

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Verdict on Interfaith Couple : हाईकोर्ट ने कहा ‘अंतरधार्मिक विवाह के लिए लीगल फ्रेमवर्क बेहद जटिल!’

Indore : हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने इंटरफेथ कपल की शादी में आने वाली सामाजिक चुनौतियों को दोहराया। जस्टिस विवेक रूसिया की पीठ ने कहा कि इंटरफेथ विवाह को नियंत्रित करने वाला लीगल फ्रेमवर्क बेहद जटिल है। ऐसे में नए जोड़ों की कई कानूनी बाधाओं को दूर करने की जरूरत है। इंटरफेथ कपल की मुख्य चुनौतियों में से एक है उनके परिवारों और समुदायों का विरोध। जैसे इस मामले में युवती का पिता इस विवाह को स्वीकार नहीं कर रहा यह विरोध अक्सर दंपति के खिलाफ उत्पीड़न, धमकी और हिंसा का कारण बनता है।
ऐसे मामलों में पुलिस और न्यायपालिका युगल की सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने भी फैसला सुनाया है कि वयस्कों को अपने जीवन साथी को चुनने का अधिकार है, चाहे उनका धर्म या जाति कुछ भी हो।
भारत में इंटर-फेथ विवाह कानूनी रूप से इजाजत है, लेकिन इसकी अपनी चुनौतियां हैं। इंटरफेथ विवाह को नियंत्रित करने वाला लीगल फ्रेमवर्क जटिल है और जोड़ों को कई कानूनी बाधाओं को पार करना पड़ता है। इसके अलावा, इंटरफेथ विवाह का सामाजिक विरोध अक्सर जोड़ों के लिए अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करना कठिन बना देता है।

युवक ईसाई और युवती हिंदू
अदालत के सामने आए मामले के तथ्य यह है कि आवेदक ईसाई युवक और युवती हिंदू है, जिन्होंने एक मंदिर में एक-दूसरे से शादी की थी। इसके बाद मंदिर ने जोड़े के पक्ष में विवाह सर्टिफिकेट जारी कर दिया। शादी से नाराज होकर युवती के पिता ने मंदिर के प्रबंधक के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। यह आरोप भी लगाया कि उसने बेटी का फर्जी विवाह कराया और उसका सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया। इस पर मंदिर के प्रबंधक के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। पुलिस ने बाद में आरोप पत्र में आवेदकों को आरोपी के रूप में पेश किया। इसके बाद कथित आरोपियों ने अदालत का रुख किया और प्रार्थना की कि उनके खिलाफ की गई एफआईआर रद्द कर दी जाए।

आवेदकों ने तर्क दिया कि आईपीसी की धारा 420 के तहत अपराध के लिए उनके खिलाफ कोई मामला नहीं बनता। आगे यह भी कहा गया कि उन्हें युवती के पिता के इशारे पर मुकदमे का सामना करने के लिए परेशान किया जा रहा, जिन्होंने उनकी शादी को अस्वीकार कर दिया। इस प्रकार, यह प्रार्थना की गई कि आवेदक के खिलाफ एफआईआर रद्द की जाए और उसके बाद की कार्यवाही को बंद कर दिया जाए।

धारा 420 का कोई अपराध नहीं बनता
पक्षकारों के प्रस्तुतीकरण और रिकॉर्ड पर मौजूद दस्तावेजों की जांच करते हुए कोर्ट ने आवेदकों के तर्कों में समानता पाई। कोर्ट ने स्वीकार किया कि इंटरफेथ कपल्स को शादी करने में कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जहां तक इस मामले का संबंध है, उनमें से किसी के खिलाफ आईपीसी की धारा 420 के तहत कोई अपराध नहीं बनता है।

युवती के पिता ने मंदिर के पुजारी रमेश महाराज के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई कि उन्होंने आवेदकों की शादी अवैध रूप से की और सर्टिफिकेट जारी किया और धोखाधड़ी की। एफआईआर में ही जिक्र है कि शिकायतकर्ता की बेटी अपने प्रेमी के साथ भाग गई और 3 मई.2019 को उन्होंने नीलकंठेश्वर मंदिर में शादी कर ली। जबकि, मंदिर में विवाह करने से पहले ही वे विवाह कर चुके थे और उसका नोटरी भी करवा चुके थे। इसलिए इस मामले में आवेदकों के खिलाफ धोखाधड़ी का आधार नदारद हैं।

अदालत का फैसला
युवक और युवती इन सभी शर्तों को पूरा कर रहे हैं और वे विवाह के रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन कर सकते हैं। लेकिन, आईपीसी की धारा 420 के तहत उन्हें दंडित करने का कोई मामला नहीं बनता है जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अर्चना राणा बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और एक अन्य ने रिपोर्ट किया था (2021) 3 एससीसी 751 के मामले में किया। उपरोक्त टिप्पणियों के साथ आवेदन की अनुमति दी गई और आवेदकों के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया।