जल प्रलय संकट में शासकीय मशीनरी की तत्परता से आश्चर्य चकित ग्रामीण 

521

जल प्रलय संकट में शासकीय मशीनरी की तत्परता से आश्चर्य चकित ग्रामीण 

हमारी पीढ़ी के बचपन में संदेश संवाद का सबसे तेज ज़रिया था तार याने टेलीग्राम .तार घर और तार बाबू याने वह कर्मचारी जो पोस्ट ऑफिस में बैठकर अपनी मशीन में ठक ठक करके संदेश भेजता था .फिर आया फैक्स उसके बाद इंटर नेट ,ई मेल और अब व्हाट्स एप ,इंस्टा ,ट्विटर याने संवाद द्रुत गति से आ जा सकते है.

ये क़िस्सा उस जमाने का है जब सरकारी दफ़्तरों में फैक्स की सत्ता थी .फैक्स माने तत्काल -यही उसूल था .१९९८-९९में यही जुलाई अगस्त की भारी बारिश का समय था। नदियों ने अपने तटों को लाँघकर गाँवों और शहरों में घुसना शुरू कर दिया .

ओशो के शहर गाड़रवारा में शक्कर नदी उमड़ी। उधर नर्मदा जी भी उफान पर .इनकी देखा देखी बाक़ी नदियाँ भी फुफकारने लगीं .चारों और हाहाकार .जबलपुर में बरगी बाँध के द्वार खुल गए। उधर होशंगाबाद में पानी सेठानी घाट पर चढ़ आया .जल प्रलय के इस समय धैर्य और साहस के साथ शासन प्रशासन बचाव राहत कार्य में जुटा हुआ था .तभी कलेक्टर कार्यालय नरसिंहपुर में एक फैक्स आया जो जबलपुर के पूर्व कलेक्टर श्री के एस ठाकुर के नर्मदा तट पर बाढ़ में घिरे होने के संबंध में था .गाड़रवारा से हम लोग बचाव टीम लेकर शोकलपुर पंहुचे .सड़क नहीं थी ट्रैक्टरों से कुछ मील गए। उसके बाद दस बारह किलोमीटर पद यात्रा कर गाँव पंहुचे.

नर्मदा जी उफान पर थीं तब भी ऊँची कगार पर बसे होने से ठाकुर साहब और उनका गाँव तब तक सुरक्षित था यह देखकर राहत मिली .गाँव वाले आश्चर्य चकित थे कि इस जल प्रलय में भी उनकी सुध लेने कोई आ सकता है .आवश्यक प्रबंध कर हम लोग वापस लौटे .चाँदनी रात ने पदयात्रा को कुछ सरल बना दिया था। बस हमारे जूते लगातार पानी में रहने से गीले थे पर पूरे इलाक़े में एक संदेश बिना कहे फैल गया था कि संकट में भी शासकीय मशीनरी सेवा में तत्पर है .