वाइरस के साथ जीना होगा या इससे ही ख़त्म होगी दुनिया ?

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पहले कोरोना,फिर इसकी दूसरी,तीसरी लहर , फिर ,नए वैरियंट और उसके भी बाद ब्लैक,वाइट व यलो फंगस और अब ताज़ातरीन अमेरिका में आया कैंडिडा ऑरिस  फंगस , जिसने सारी प्रतिरोधी  दवाओं को धता बता कर हाहाकार मचा रखा है।  किसी में इतनी हिम्मत नहीं कि इस शैतान की मुंडी मरोड़ सके।कोई ऐसी  हिकमत नहीं,जिससे इस महामारी का कान  उमेठा जा सके और किसी की मजाल नहीं जो इसके संभावित जनक चीन पर अंगुली उठा सके।  आखिर कहाँ गई वे महाशक्तियां , जो कभी वियतनाम , कभी इराक तो कभी अफगानिस्तान का गिरेबान पकड़ने को उतावली  रहती थी ? क्या दुनिया की महाशक्तियों को ये डर  है कि चीन के खिलाफ सीधे तौर पर कोई  कार्रवाई की तो यह तीसरे  विश्व युद्ध का बिगुल बजने जैसा होगा। शेष विश्व सोच रहा है कि आखिर इससे कैसे निजात मिले तो दूसरी ओर हालात ये है कि इस ग्रह का सबसे शक्तिशाली,बुद्धिमान प्राणी मनुष्य कुछ कर पाए,  एक के बाद एक लहर और उससे  उपजी नित नई  बीमारियां सामने आती जा रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि पृथ्वीवासियों का शेष जीवन दहशत,अनिश्चितता और वॉयरस जनित बीमारीयों से लड़ते,निपटते ही व्यतीत होगा ? क्या हम किसी प्रलयनुमा स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं ? क्या आइंस्टाइन का यह पूर्वानुमान सही साबित होगा कि तीसरे का तो पता नहीं, लेकिन चौथा विश्व युद्ध पत्थरों,लाठियों से लड़ा जायेगा !

डेढ़ साल से जेल का जीवन जीने को अभिशप्त दुनिया में कोरोना के कहर को डेढ़ बरस होने आया और ऐसे कोई आसार नज़र नहीं आ रहे कि  ये जा रहा है या कमजोर पड़  रहा है।  सितम तो ये है कि ये और इसके नए-नए स्वरुप तो कभी  पलट-पलटकर आ रहे हैं और दुनिया असहाय, .हताश नज़र आती है। क्या कोई ये बताने की स्थिति में है कि  आखिर माजरा क्या है? सरेआम चीन के वुहान से सफर पर निकला यह शैतान  धरती पर पृथ्वी ग्रह की ही तरह अपनी धुरी पर गोल घूमते हुए हुए धरती की परिक्रमा कर रहा है और कोई माई  का लाल,कोई सुरमा न तो इसके सफर को बाधित कर पा रहा है न ही इसे चुनौती दे पा रहा है । हैरानी  तो इस बात  की है कि कोरोना वाइरस के दंश से संसार  उबर पा नहीं रहा था और इसके नए,नए वैरियंट तो कभी ब्लैक,कभी वाइट फंगस के बाद अब अमेरिका में कैंडिडा ऑरिस  फंगस का आतंक फैला हुआ है ,जो कोरोना से कई गुना घातक और लाइलाज साबित हुआ है। फंगस और वायरस प्रतिरोधी दवाओं से बेअसर,बेखौफ यह फंगस दुनिया के सामने नया संताप है।

यूँ देखें  तो चीन के प्रति विश्व समुदाय में गुस्सा,नाराजी ,नफ़रत और सबक सिखाने  की भावनाएं हिलोरे ले रही हैं। इसके कुछ तो व्यावसायिक और राजनीतिक कारण  हैं, किन्तु कोरोना के जनक के तौर पर उससे प्रतिशोध का तत्त्व अधिक सक्रिय  है।  बावजूद इसके कि साफ तौर पर न तो किसी तरह के सबूत हैं न इसके ठोस प्रमाण  किसी के पास हैं।  दुनिया की निगरानी के लिए अंतरिक्ष में अनगिनत उपग्रहों की मौजूदगी, साइबर जासूसी का विशाल तंत्र उपलब्ध होने के बावजूद कोई सिरा अभी तक तो बीजिंग या वुहान तक नहीं पहुँच रहा है। इसलिए अभी तो दुनिया के कथित दादा भी देखो और इंतज़ार करो की रणनीति अपनाये हुए हैं।

यदि सिलसिलेवार देखें तो दिसंबर 2019 से यह निश्चित होने के बाद भी कि कोरोना वायरस ने चीन के व्यावसायिक शहर वुहान  से अपना सफर शुरू किया है ,कोई उस पर सीधे तौर पर तोहमत नहीं मढ़  रहा।  फिर भी इस वर्ष मई 2021  से विश्व समुदाय के बीच  ने तो  जोर पकड़ लिया है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने मई अंत में दावा  किया कि कोरोना वायरस चीन की वुहान लैब से निकला है और इसके प्राकृतिक होने का कोई  प्रमाण नहीं है। ब्रिटिश प्रो. एंगस डेलग्लिश और नार्वे  के डॉ. बर्गर सोरनसेन के अध्ययन के अनुसार सार्स-सीओवी-2  वायरस रिसर्च के दौरान ही वुहान लैब से लीक हुआ है। जब यह गलती हो गई  तो रिवर्स इंजीनियरिंग वर्जन के जरिये इसे छिपाने के प्रयास किये गए।  इन वैज्ञानिकों का  रिसर्च पेपर कहता है कि इस बात के ठोस प्रमाण नहीं कि यह प्राकृतिक वायरस है , जबकि चीन के वैज्ञानिक यह जताते रहे कि यह वायरस लैब नहीं, बल्कि प्राकृतिक तौर पर चमगादडों से ही फैला है। वैसे अमेरिका के  पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने हमेशा से वुहान से कोरोना वायरस के निकलने का दावा किया। उन्होंने तो चीन से 740  लाख करोड़ रूपये का हर्जाना भी माँगा है।  जून के पहले हफ्ते में दिए अपने बयान में ट्रम्प ने कहा था कि  स्वास्थ्य सलाहकार डॉक्टर ऍंथोनी  फाउची के इ मेल से एक बार  फिर साबित हो गया कि कोरोना चीनी लैब में निर्मित वायरस है। इतनी दो टूक बात चीन से दूसरा कोई नहीं कह पाया।

इसके बाद तो ब्रिटिश पत्रकार जैस्पर बेकर ने चीनी मीडिया में प्रकाशित अनेक ख़बरों के हवाले से ही यह जानकारी दी कि वुहान की लैब में एक हजार से अधिक जानवरों   के जीन जैनेटिक इंजीनियरिंग की मदद से बदल दिए गए हैं। उन्होंने अपनी खबर में बताया कि चीन की प्रयोगशाला में जानवरों को  इंजेक्शन लगाए गए,ताकि उनके जीन बदल जाएँ। खबर के मुताबिक चीन सेना के जवान लैब की निगरानी कर रहे हैं , जो मामले को संदिग्ध बनाते हैं।  कुछ चीनी विशेषज्ञों का यह भी  है कि इस वायरस को महिला वैज्ञानिक वायरोलॉजिस्ट  शी झेंगली ने बनाया हो , क्योंकि वे चमगादड़ों पर शोध कर रही हैं और वे चीन में बैट वीमेन के तौर पर जानी जाती हैं।  वैसे चीन बताता तो यह है कि वुहान लैब  में जैव सुरक्षा पर शोध हो रहा है,किन्तु वहां जीवित जानवरों पर प्रयोग किये जा रहे हैं। लैब में टेस्ट ट्यूब   में रखे  गए रोगजनक जीवों को देखकर बन्दर कटाने,खरोंचने और भागने लगते हैं।  चीन पर प्रतिबंधक प्रयोग करने के आरोप भी लगते रहे हैं । यहाँ  600  से अधिक चमगादड़ भी रखे गए थे,जो कई बार  शोधकर्ताओं पर हमला भी कर देते रहे हैं।

इस तरह की तमाम जानकारियों के बीच  दुनिया के अनेक देश  कोरोना की दूसरी,तीसरी लहर के साथ अनेक लाइलाज बीमारियों  के सामने आने से मनुष्य भयभीत नजर आ रहा है।  अनेक के मन में यह  रहा है कि चीन के अर्थ तंत्र पर तो सीधा हमला किया जा सकता है, लेकिन युद्ध का मोर्चा नहीं खोला जा सकता।  अमेरिका सरकार  ने चीनी कम्पनियो से निपटने के लिए 18  लाख करोड़ रूपये की योजना बनाई है।  इसके लिए डेमोक्रेट और रिपब्लिकन के बीच सहमति के प्रयास भी चल रहे हैं ताकि चीन इस भ्रम में न रहे कि  विपक्षी दाल उसे समर्थन कर सकते हैं।  इसके लिए यूएस इनोवेशन एंड कॉम्पिटिशन एक्ट सीनेट समितियों ने तैयार  किया है।  अमेरिकी कारपोरेट जगत यह मानता है कि चीनी कंपनियां अनैतिक कारोबार में लगी है।  यह एक्ट ऐसी कंपनियों पर  राष्ट्रपति को अधिकार देता है।  इस बिल के सह प्रायोजक डेमोक्रेटिक सीनेट चक शुमर कहते हैं कि अमेरिका साइंटिफिक  रिसर्च पर जीडीपी का एक प्रतिशत से भी  कम खर्च करता है, जबकि चीन का इससे दुगना है।  यह बिल रिसर्च और इनोवेशन में बड़ा निवेश होगा।

इस तरह हम पाते  हैं कि ,फ़ि लहाल तो दुनिया में कोई भी ताकत चीन से सीधी टक्कर लेने में रूचि नहीं रखती है।  इतने त्राहिमाम के बाद भी पता नहीं उन्हें किस बात का इंतजार है।  यदि चीन के अलावा कोई दूसरा एशियाई मुल्क होता तो अमेरिका ने जंगी बेड़े भेज दिए होते या भारी ,भरकम प्रतिबन्ध थोप दिए होते।  भारत द्वारा अटलजी की सरकार के समय किये गए परमाणु परिक्षण के वक्त उसने ऐसा किया भी था ।  चीन के साथ वह उस तरह से पेश नहीं आ सकता। वह कोई कॉकरोच नहीं मगरमच्छ है।  मगरमच्छ का शिकार मछली के जाल से तो नहीं किया जा सकता। जब तक दुनिया के मुल्क एक नहीं होते  और इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचते कि कोरोना वाइरस चीन का किया,धरा है, तब तक दुनिया को इसके न जाने कितने दौर और स्वरूप देखने,भुगतने को तैयार रहना चाहिए। #raman#corona#chin

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।