वशयनी एकादशी पर चार माह के विश्राम पर जाने से पहले भगवान विष्णु ने पृथ्वी के संचालन की जिम्मेदारी भगवान शिव को सौंपने से पहले पृथ्वीलोक पर एक नजर डाली। देवभूमि को विष्णु ने हमेशा की तरह कुछ ज्यादा गौर से देखा। ह्रदयप्रदेश, शांत प्रदेश जैसे नामों से प्रसिद्ध भूमि पर जब उनकी नजरें टिकीं, तो उन्हें कुछ उथल-पुथल जैसा महसूस हुआ। विष्णु ने नजर उठाई, तो देवर्षि शांत प्रदेश का पूरा ब्यौरा लिए देवाधिदेव के समक्ष उपस्थित थे। विष्णु मुस्कराए और देवर्षि को जिज्ञासा शांत करने का संकेत किया। देवर्षि ने निवेदन किया कि प्रभु वैसे तो पृथ्वीलोक में ही उथल-पुथल मची है। पर आप देवभूमि के शांत ह्रदयप्रदेश को लेकर चिंतित हैं, सो मैं विस्तार से पूरी बात रखता हूं। ऐसा कहकर देवर्षि ने ह्रदयप्रदेश की कुंडली खोलकर प्रभु को बताना शुरू किया।
देवर्षि ने बताया कि प्रभु वैसे तो उथल-पुथल इसलिए है कि जब आप क्षीरसागर में विश्राम के लिए जा रहे हैं, ऐसे समय में ह्रदयप्रदेश में पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव का दौर चल रहा है। इन चुनावों की गहमागहमी ने इस शांत प्रदेश को थोड़ा अशांत कर दिया है। अभी यहां विश्राम करने की फुरसत भी नहीं है राजनेताओं को। हर दल में यही गुणा-भाग चल रहा है कि उनके समर्थित प्रत्याशी पंचायत चुनाव में कैसे जीत पाएं और नगरीय निकाय चुनाव तो दलीय प्रणाली से ही हो रहे हैं, ऐसे में दलों की साख दांव पर लटकी है। पंचायत चुनावों में सत्ताधारी दल समर्थित कई दिग्गज उम्मीदवार हार के मुंह में समा रहे हैं, सो उथल-पुथल ज्यादा बढ़ रही है।
वहीं नगरीय निकाय चुनावों में परिणाम भले ही तब आएंगे, जब आप क्षीरसागर में योगनिद्रा में लीन होंगे। पर जिन नगरीय निकायों में मतदान हो गया है, वहां मतदान के ट्रेंड से उथल-पुथल मच गई है। अगले चरण का मतदान भले ही 13 जुलाई को है, पर पिछला चरण सभी की नींद छीनकर ईवीएम में समा गया है। ऐसे में संजय-धृतराष्ट्र के हवाले से सत्ताधारी दल का पक्ष लेते हुए विपक्षी दल की हार का तंज कसा गया है। इस तंज के हवाले से विपक्षी दल ने भी सत्ताधारी दल को कटघरे में खड़ा करने का उद्यम किया है। इससे भी उथल-पुथल सी मची नजर आ रही है। असल परिणाम से पहले परिणामों के दावों का यह दौर और हास-परिहास लगातार जारी है प्रभु, जो हदें पार करने में देर नहीं करता। लगता तो ऐसा है जैसे अखाड़े में दिग्गज योद्धा गुत्थमगुत्था हो गर्जना कर रहे हों, हालांकि असल में सब कुछ मोबाइल की हद में समाया हुआ है। पर उथल-पुथल तो नजर आने ही लगती है प्रभु।
विष्णु ने पूछा कि इसके अलावा और क्या चल रहा है इस ह्रदयप्रदेश में देवर्षि।नारायण-नारायण जपते हुए देवर्षि मुस्कराए और बोले प्रभु आपसे छिपा ही क्या है। फिर बोले राजधानी में इन दिनों साध्वी जैसे ही किसी मधुशाला के सामने से गुजरती हैं, तो उथल-पुथल मच जाती है। कभी वह पत्थर मारकर महिलाओं की पीड़ा उजागर करती हैं। कभी गोबर फैंककर पवित्र नगरी की गरिमा बनाए रखने की गुजारिश करती हैं। तो कभी चेतावनी के लहजे में सीधे सरकार को शराब नीति बदलने का आह्वान करती हैं। उनकी चिंता यही है कि पार्टी के प्रति भी उनकी निष्ठा में कोई कमी नहीं है और मन जिस काम को सही मान लेता है, उसे किए बिना भी उनका मन नहीं भरता।
इन दोनों निष्ठाओं के बीच जो होता है, उससे बाकी सभी के दिलों में उथल-पुथल मच रही है प्रभु। देवर्षि बोले कि साध्वी ने अब दो अक्टूबर की तारीख का अल्टीमेटम देकर एक बार फिर पार्टी और अपनी सरकार को परीक्षा में पास होने का समय दिया है। और खुद अपने मन की बात और जीवनगाथा को ट्वीट के जरिए पृथ्वीलोक वासियों के साथ साझा करने का अभियान शुरू कर दिया है। जिसकी पहली कड़ी से ही यह साबित हो रहा है कि जब बात गंगा की आई तब भी साध्वी ने मन की बात ही मानी थी। भले ही खामियाजा कितना भी भुगतना पड़ा हो। देवर्षि बोले प्रभु,वैसे साध्वी का पूरा जीवन उनकी मन की निष्ठा का प्रमाण है। आप जब क्षीरसागर में होंगे तब ही पता चलेगा कि साध्वी ह्रदयप्रदेश में उथल-पुथल के लिए मजबूर होती हैं या फिर सरकार उन्हें शांत करने में सफल हो पाती है। देवर्षि आगे बोले कि प्रभु ह्रदयप्रदेश में विपक्षी दल में भी सत्ता छिनने का क्षोभ है सो सत्ता में आने की अधीरता में वह भी उथल-पुथल मचाने का कोई मौका हाथ से जाने नहीं देते।
इतना सुनने के बाद विष्णु ने अपने नेत्र बंद किए और सारा हाल जान लिया। नेत्र खोल देवर्षि की तरफ देख विष्णु बोले कि अब मेरा क्षीरसागर पहुंचने का समय हो रहा है। लक्ष्मी जी इंतजार कर रही हैं। देवर्षि देवउठनी एकादशी यानि मेरे लौटने तक तुम ह्रदयप्रदेश और पृथ्वीलोक पर निगाह रखना। बाकी का हाल मैं लौटकर सुनूंगा। चार माह तक सृष्टि का भार राजाधिराज भगवान महाकाल के हाथों में है। मुस्कराते हुए विष्णु ने देवर्षि से कहा कि भोलेनाथ तो खुद ही उथल-पुथल के महादेव हैं। अब वह जानें, ह्रदयप्रदेश जाने और वहां के सत्तापक्ष और विपक्ष के गणमान्यजन जानें। यह कहकर विष्णु ने विदा ली और देवर्षि नारायण-नारायण जपते प्रस्थान कर गए।