नाथ और गोविंद के अलग-अलग सुर में क्या छिपा है…

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नाथ और गोविंद के अलग-अलग सुर में क्या छिपा है…

राजा पटैरिया के बयान ने कांग्रेस की आंतरिक मतभिन्नता और मनभिन्नता को एक बार फिर उजागर कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर दिए बयान के बाद खाटी समाजवादी विचारधारा के नेता राजा पटैरिया पर एफआईआर हुई और उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजकर सरकार और भाजपा ने अपना धर्म पूरी ईमानदारी से निभाया है। वहीं कांग्रेस संगठन और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी राजा पटैरिया के बयान की भाजपा से भी ज्यादा तीखी निंदा की और उन्हें कारण बताओ नोटिस भी जारी कर दिया। और जैसा वातावरण बना है, उसमें लग यही रहा है कि राजा पटैरिया को कांग्रेस से बाहर का रास्ता भी लगभग दिखा ही दिया गया है। इस बीच जब संगठन की तरफ से पटैरिया के लिए स्थितियां सौ फीसदी प्रतिकूल हैं, तब नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने राजा पटैरिया के पक्ष में मोर्चा संभाला है। डॉ. गोविंद सिंह का पक्ष भी यही है कि राजा पटैरिया ने जो बयान दिया है, वह मोदी को हराने के सेंस में दिया है। इसके बावजूद भी मामले ने जब वीडियो वायरल होने के बाद तूल पकड़ा, तब राजा पटैरिया ने सफाई भी दी और साफ भी किया कि उनका भाव वह नहीं था… इसे गलत तरीके से पेश किया जा रहा है। ऐसे में क्या ऐसा नहीं लगता कि कांग्रेस अपना धर्म निभाने में विफल रही है?
ऐसे में क्या यह बात साफ है कि राजा पटैरिया के बयान पर कांग्रेस में ही अलग-अलग राय पार्टी के भीतर दो अलग-अलग खेमों की तरफ इशारा कर रही है? क्योंकि स्थितियां बिल्कुल साफ हैं कि राजा पटैरिया जिस खेमे से माने जाते हैं, उसमें डॉ. गोविंद सिंह भी हैं। और कमलनाथ भले ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हों और पार्टी में सर्वमान्य भी हों, लेकिन गुटीय भिन्नता में वह अलग गुट का चेहरा परिलक्षित होते ही हैं। ऐसे में क्या चुनावी साल में कांग्रेस की गुटीय राजनीति फिर आमने-सामने ताल ठोकने को तैयार है? क्योंकि हाल ही में मध्यप्रदेश विधानसभा का सत्र आहूत होने वाला है और उसमें मोदी की हत्या वाला बयान सर्दी में गर्माहट लाने का काम करेगा। हो सकता है कि इस तू-तू, मैं-मैं में ही सदन हो-हल्ला के बीच स्थगित भी हो जाए। पर विषम स्थिति तब बनेगी, जब राजा पटैरिया के मामले में अलग-अलग राय रखने वाले नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ सदन में पास-पास बैठे होंगे और सत्ता पक्ष दोनों नेताओं को राजा पटैरिया के मामले में आमने-सामने खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। तब क्या कांग्रेस बिखरी-बिखरी और दो खेमों में बंटी नजर नहीं आएगी?
तब सब कुछ साफ होकर ही रहेगा कि नाथ और गोविंद के अलग-अलग सुरों के पीछे क्या राज है? और तब चुनावी साल में कांग्रेस प्रदेश में बंटी-बंटी नजर आएगी। और फिर वही सवाल सामने होगा कि आखिर राजा पटैरिया के बयान पर निरंकुशता में पार्टी के नेता भाजपा से भी तेज दौड़ते नजर क्यों आए? और यदि कमलनाथ पार्टी के सर्वेसर्वा हैं, तो उन्होंने नेता प्रतिपक्ष के साथ मिलकर एक राय बनाने की कोशिश करना उचित क्यों नहीं समझा?
आश्चर्य की बात यह भी है कि जेल में यदि अन्य अपराधियों के साथ टॉर्चर करने का मामला सामने आए तो कांग्रेस विपक्ष के अपने धर्म का पूरा पालन करती है। पर राजा पटैरिया को जेल में यातना के आरोप के मामले में भी नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह अकेले मुखर होते नजर आए। वैसे मध्यप्रदेश विधानसभा सत्र में संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा ही आग में घी डालने का काम करते हुए हो सकता है कि अपने मित्र नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह को भाजपा में आने का न्यौता दे दें। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश की तरह कांग्रेस भी अजब-गजब है, जिसमें अति संवेदनशील मुद्दे पर भी एक राय नहीं बन पा रही है। ऐसे में चुनावी साल में कांग्रेस का क्या हाल होने वाला है, यह आने वाला समय ही बताएगा…। तभी परतें खुलेंगीं कि आखिर राजा पटैरिया के बयान पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ और नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह के अलग-अलग सुर में क्या छिपा था…।