उमेशनाथ जी को राज्यसभा भेजने के मायने…?

746

उमेशनाथ जी को राज्यसभा भेजने के मायने…?

निरुक्त भार्गव की विशेष रिपोर्ट

ऐसे समय जब सार्वजनिक क्षेत्र, समाज जीवन और खासकर राजनीतिक फलक से स्वस्थ, आदर्श और श्रेष्ठ चीज़ों का बड़ी तेजी से लोप हो रहा है, संत उमेशनाथ जैसे व्यक्ति का एकाएक चर्चा में आना शुभ संकेत माना जा सकता है!

60 वर्षीय उमेशनाथ जी को भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा चुनाव में मध्य प्रदेश से अपना उम्मीदवार बनाया है और उनका संसद के उच्च सदन में पहुंचना निश्चित है. संभवत: देश और मध्य प्रदेश के इतिहास में ये सबसे पहला वाकया है जब विशुद्ध सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक क्षेत्र के व्यक्ति को सीधे चुनावी राजनीति में उतारा गया हो. भारतवर्ष और इस सूबे में भी कई ऐसे व्यक्तित्व रहे हैं, राजनीतिक दल जिन्हें लोक सभा, राज्यसभा और विधानसभा चुनावों में अवसर देते रहे हैं. भाजपा तो इस मामले में अव्वल रही है.

मूलतः रतलाम जिले की जावरा तहसील से ताल्लुक रखने वाले उमेशनाथ को बाल योगी के नाम से कहीं ज्यादा जाना और पहचाना जाता है. महात्मा गांधी के सर्वाधिक प्रिय वाल्मीकि समाज के अति-साधारण परिवार में जन्मे उमेशनाथ जी ने दर्शन शास्त्र में मास्टर्स डिग्री उत्तीर्ण की है. वे अपने जीवन काल से ही संन्यास की अवस्था में चले गए और वाल्मीकि समाज के धर्मगुरु स्वामी सोहन दास के पदचिन्हों पर चलने लगे. अवंतिका पुरी यानी आज का उज्जैन युवा अवस्था में उन्हें अपने पास खींच लाया.

उनके निर्विवादित क्रिया-कलापों और सादगीपूर्ण आचरण की ही ये एक बानगी थी कि उज्जैन में क्षिप्रा नदी के सबसे मैले और उपेक्षित ऋणमुक्तेश्वर घाट क्षेत्र में ‘श्री क्षेत्र वाल्मीकि धाम’ की स्थापना हुई. धीरे-धीरे इस स्थान की कीर्ति में बढ़ोतरी होने लगी. 1990 के दशक में जब राजा के नाम से मशहूर तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह इन्हीं उमेशनाथ जी को दंडवत प्रणाम करते थे, तो तथाकथित कुलीन समाज के लोग दांतों तले उंगलियां दबा लिया करते थे!

प्रकारांतर में देश और प्रदेश में सत्ताएं बदलती रहीं और नए राज्यों का उदय भी होता रहा मगर उमेशनाथ जी का अटूट संकल्प अविरल चलता रहा. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा सहित 8 राज्यों की सरकारों ने उनके अवदान को महत्व देते हुए उन्हें अपने-अपने प्रदेशों में राजकीय अतिथि का दर्जा प्रदान किया. इसके पीछे सत्ताधीशों की सोच कदाचित ये रही होगी कि लम्बे समय से तिरस्कृत अपने ही एक प्रमुख अंग के लोगों को मान-सम्मान दिया जाए!

उज्जैन वासियों के बीच अपने मर्यादित कार्य-व्यवहार और संतुलित वचनों की वजह से आदर और श्रद्धा का स्थान पा चुके उमेशनाथ जी को आरएसएस और भाजपा के रणनीतिकारों ने लपक लिया! 2016 के सिंहस्थ महापर्व के सर्वाधिक चर्चित इवेंट्स में वाल्मीकि धाम के पार्श्व में बहती भयंकर प्रदूषित क्षिप्रा नदी में हुए दलित स्नान का जिक्र बार-बार होता है! विशिष्ट प्रकार के पेय ग्रहण करने वाले सत्ता और संगठन के सूत्रधारों सहित कई स्वनामधन्य आचार्य महामंडलेशवर और अखाड़ों के मठाधीश उस समय फोटो सेशन करवा रहे थे!

काल के अखंड प्रवाह यानी सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी और उनके अवयवों के बीच लगातार अपना अस्तित्व रखती और सम्पूर्ण ओज और तेज के साथ उत्कर्ष का घोष करती इस उज्जयिनी की धरा का बखान करने पर कॉर्पोरेट और तमाम किस्मों के धंधों में लिप्त सरताजों को धूल, मिट्टी, गोबर दिखाई देने लगते हैं! इसी पृष्ठभूमि का गुणगान करते-करते कई लोग बादशाह बन गए! समरसता की इस भूमि को अपने अस्तित्व से भी अधिक चाहने वाले उमेशनाथ जी की खडाऊ जब संसद में पड़ेगी, तभी शायद चीज़ें सुधार की तरफ आगे बढ़ेंगी!