हिंदी लेखक कब कहलाता है वरिष्ठ,ऐसे होता है वरिष्ठता का निर्धारण!

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हिंदी लेखक कब कहलाता है वरिष्ठ, ऐसे होता है वरिष्ठता का निर्धारण!

हिंदी में लिखने वाले वरिष्ठ होने के लिये उसी तरह प्रतीक्षारत बने रहते हैं जैसे कोई जूनियर अफ़सर, प्रमोशन का रास्ता ताकता है। लिखने वाले का वरिष्ठ होना उस कष्ट के बिल्कुल विपरीत होता है जैसा एकांत लिफ़्ट में मिली किसी युवा कन्या के अंकल कह कर पुकारने पर महसूस होता है। लिफ़्ट में बूढ़ा होने से इनकार करने वाला हिंदी लेखक लिखने में वरिष्ठ कहलाने से खुश होता है, यही उसके जीवन भर का पारिश्रमिक है।

अपने वरिष्ठ होने का पता तब चलता है आपको जब आप किसी हिंदी गोष्ठी, सम्मेलन में अतिथि, मुख्य अतिथि होने योग्य मान लिये जायें। कोई लेखिका आपसे अपनी नई किताब का विमोचन करवाने के लिये तैयार हो। भले आप खुद तभी क़ायदे का कुछ नहीं लिख पाये हो, इसके बावजूद आपका किसी और की लिखी किताब का विमोचन करने योग्य होना, या योग्य मान लिया जाना आपकी वरिष्ठता की तस्दीक़ है।

वरिष्ठ होने के अपने लाभ है। मंचासीन होने का अवसर है ये। गेंदे की सारी मालाएँ मंच पर बैठे लोगों के गले के लिये होती है। आयोजक यदि सुविधा सम्पन्न हुए तो शाल और श्रीफल मिलने का संयोग भी होता है ये। आप खेत से लेकर खलिहान तक की बातें कर सकते है इस अवसर पर। और सबसे बड़ी बात ,ऐसे मौक़े पर बोलने वाले तमाम वक्ताओं के लिये यह ज़रूरी हो जाता है कि वो मन मार कर ही सही पर आपकी तारीफ़ करे।हिंदी का लेखक संतोषी जीव होता है। वह तारीफ़ से ज़्यादा किसी चीज की अपेक्षा नहीं करता।इससे अधिक की अपेक्षा इसलिये भी नहीं करता क्योंकि वो जानता है कि उनका पूरा होना नहीं है।

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हिंदी लेखकों की एक आचार संहिता है।वे एक दूसरे के बारे में जो भी राय रखे। सामने वाले को कितना भी हल्का और मामूली गिने पर आपने सामने मिलने पर वे एक दूसरे की तारीफ़ें करते ही है। इन तारीफ़ों को एक दूसरे की पीठ खुजाने जैसा मामला ही समझिये। अचानक सभी विख्यात और प्रतिष्ठित हो जाते है। एक दूसरे को यशस्वी और प्रतिभाशाली बताते हुए गले सूखते है सबके। यह जानते हुए भी कि सामने वाला उसकी दी हुई किताब कभी नहीं पढ़ेगा, किताबों का आदान प्रदान किया जाता है ऐसे अवसर पर।संग साथ फ़ोटो खिंचवा ली जाती है ताकि उनका सदुपयोग फ़ेसबुक पर चिपका कर किया जा सके।

 

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वरिष्ठ होने का एक और लाभ है। चाय नाश्ते वाला सबसे पहले आपको परोसता है। दूसरों के पहले नाश्ते का पात्र होना भी एक महत्वपूर्ण सुख है। विमोचन कार्यक्रम के आयोजक यदि समझदार हो तो शाम को होते हैं ऐसे कार्यक्रम और इस तरह ये गला तर करने का भी सुअवसर हो सकता है।

वरिष्ठता का निर्धारण होता कैसे है? वरिष्ठ होने के, किसी नवोदित लेखिका की पुस्तक के विमोचन योग्य मान लिये जाने के दो ही तरीक़े है, पहला आप क्वॉलिटी की परवाह किये बिना लगातार लिख रहे हो। आपकी लिखे की मार की चपेट में आकर बेहाल हो चुकी हो दुनिया।किसी को सूझ न रहा हो कि आपसे छुटकारा कैसे पाया जाये। ऐसे में आपको वरिष्ठ घोषित करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता दुनिया के सामने। आप इस कारण भी वरिष्ठ घोषित कर दिये जाते हैं कि शायद वरिष्ठ होकर ही आप कुछ संयम बरतें और दुनिया में शांति स्थापित हो। दूसरा तरीक़ा ज़्यादा आसान है। संयोग और क़िस्मत भी बहुत बार आपको वरिष्ठ घोषित करवा देते है। यदि आयोजक मित्र हो आपके, या आप फूल मालाओं और नाश्ते का खर्च उठाने के लिये तत्पर हो, तब भी आपको अनायास वरिष्ठता का तमग़ा हासिल हो जाता है।

किसी और की लिखी किताब पर चढ़ा रंगीन कवर का लाल फ़ीता खोलने के लिये हिंदी का वरिष्ठ लेखक सदैव उतना ही प्रफुल्लित बना रहता है जैसे प्राइमरी स्कूल का बच्चा अपने बर्थ डे पर मिलने वाले गिफ़्ट पैकेट्स का रैपर उतारते वक्त होता है। वह उतना ही उत्साहित और रोमांचित होता है इस समय, जितना कोई देहाती दूल्हा अपने ब्याह के वक्त दुल्हन की ड्योढ़ी पर पहुँच कर होता है।

विमोचन होता है सरकारी कार्यक्रमों जैसा। वैसा ही औपचारिक। सबको पता होता है कि अब क्या होगा, बोलने वाला क्या बोलेगा। सब आपस में बतियाते हैं, चहकते है, उबासियाँ लेते हैं, झपकते हैं और इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं कि मंच से बोल रहे बंदे को पूरी तरह अनसुना कर दिया जाये।

विमोचन करने के बाद, हर भले गृहस्थ की तरह सीधे घर लौटता है हिंदी लेखक। पत्नी देखती है शाल और श्रीफल को। अपने पति के बारे में अब तक बनाई अपनी राय को तात्कालिक रूप से थोड़ा बहुत नरम करती है। इसके बाद शाल को लड़के की शादी मौक़े पर ननदोई को देने के लिये सुरक्षित रख लेती है वो और नारियल की चटनी बना लेती है।

विमोचन कार्यक्रम की अगली सुबह नारियल की चटनी के साथ डोसे मिल जाना हिंदी लेखक का बतौर वरिष्ठ होने के नाते सर्वोच्च सम्मान है। यही उपलब्धि है उसके जीवन की, और इसी कारण वो वरिष्ठ होना चाहता है।

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