जब कबीर पंथी पद्यश्री भारती बंधुओं ने कबीर चिंतन को किया जीवंत

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जब कबीर पंथी पद्यश्री भारती बंधुओं ने कबीर चिंतन को किया जीवंत

संभागीय ब्यूरो चीफ चंद्रकांत अग्रवाल की एक एक्सक्लूसिव समीक्षा

इटारसी। यूं तो मौका था स्पिक मैके इटारसी द्वारा जिले व शहर के एक अत्यंत संस्कारवान व सुप्रतिष्ठित ग्रीन प्वाइंट स्कूल के तत्वाधान में पद्मश्री अंतराष्ट्रीय कबीर पंथी सूफ़ी गायक डॉक्टर भारती बंधु के गायन की प्रस्तुति का जो पंडित भवानी प्रसाद मिश्र आडिटोरियम में हुई। पर इस कार्यक्रम के बहाने मैने सोचा कि क्यों न हम कबीर को एक बार फिर नए आयामों के साथ याद करें,क्यों न कबीर पंथी सूफी गायन की परंपरा की वर्तमान में प्रासंगिकता पर भी चिंतन करें। क्योंकि कबीर ने जिस सामाजिक पूर्वाग्रहों को भोगा वैसा ही कुछ कुछ कबीर पंथी सूफी गायकों भारती बंधुओं ने भी भोगा,जिनकी पीड़ा मंच के नेपथ्य से अचानक ही मेरे सामने आ गई। पर पहले कार्यक्रम की बात करें तो सर्वप्रथम स्वागत भाषण उपाध्यक्ष जम्मू सिंह उप्पल द्वारा दिया गया।संचालन करते हुए समन्वयक सुनील बाजपेई ने जानकारी देते हुए बताया की डॉक्टर भारती लगभग साढ़े सात हजार कार्यक्रम दे चुके है।

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वर्ष 2013 में महामहिम राष्ट्रपति महोदय द्वारा उनको पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर नगर पालिका अध्यक्ष पंकज चौरे, एसडीएम मदन सिंह रघुवंशी ,स्पीक मैके के अध्यक्ष व प्रखर,ऊर्जावान समाजसेवी,उद्योगपति हेमंत मधु शुक्ला,रोटरी क्लब अध्यक्ष रीतेश शर्मा,सुधीर गोठी, पत्रकार शिव भारद्वाज,जाफर सिद्धकी,नीरज चौहान,पंकज राठौर,विनोद कुशवाहा, विशाल शुक्ला,गर्ल्स कॉलेज की प्रोफेसर श्रीमती रंधावा,श्रीमती सुमन कैलाश शर्मा, रामनाथ चौरे, रेणु दीक्षित, धर्मेंद्र रणसूरमा,मुरली मनोहर दीक्षित,श्रीमती कुसुम नवल, संस्था प्राचार्य,और छात्र छात्राएं उपस्थित रहे।पूर्व में भारती बंधु एवम साथी कलाकारों का संस्था प्रमुख हेमंत शुक्ला द्वारा स्वागत किया गया। आभार प्रदर्शन ग्रीन प्वाइंट पब्लिक स्कूल संचालक रितेश शर्मा ने किया।कार्यक्रम में भारती बंधुओं ने अपनी सूफियाना गायकी से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। पर इस मंच का नेपथ्य अभी भी सबके सामने लाना जरूरी लगा मुझे। वही बयां करते हुए भारती बंधु कहते हैं कि मुफलिसी का बेहद कठिन दौर भी देखना पड़ा। श्री गणेश और दुर्गा पूजा में कार्यक्रम देते थे, लेकिन आयोजक रिक्शे का किराया देना भी मुनासिब नही समझते थे। सगुण और निर्गुण परम्परा के बड़े भजन गायक भारती बंधु मारवाड़ी श्मशान घाट से सटे हुए एक मकान में रहते हैं। पांच अप्रैल 2013 को जब उन्हें पद्मश्री से नवाजा गया तो उनकी गायकी को पसंद करने वाले शुभचिंतकों ने ठौर-ठिकाना बदलने की सलाह दी। एक बिल्डर ने उन्हें अपने फ्लैट में रहने का आमंत्रण दिया, लेकिन भारती बंधु जगह बदलने के लिए तैयार नहीं हुए। कबीर के एक भजन के हवाले से वे कहते हैं- चार जने मिल अर्थी उठाई, बांधी कांठ की डोली, ले जाके मरघट में धर दई, फूंक दिए जस होली।

भारती बंधु का कहना है कि मां की कोख से कब्र का रास्ता दूर नहीं होता। पर कभी-कभी चलते-चलते एक सदी लग जाती है और कई बार सारा कुछ पल भर में ही खाक हो जाता है। जब सबको धूल और धुआं बनकर ही उड़ जाना है तो फिर अंतिम सत्य से मुंह क्यों चुराना? अब तो हर रोज अर्थियां घर के पास से गुजरती है तो लगता है एक न एक दिन मृत्यु उनका बढिय़ा इंटरव्यूह करने और उत्सव का न्योता देने के लिए आने ही वाली है।

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नहीं मिलता था रिक्शे का किराया
दिल्ली और मेरठ के ‘किराना’ घराने से उस्ताद आशिक अली खान और रायपुर के ही हाजी ईद अली चिश्ती की शार्गिदी में संगीत की तालीम लेने वाले भारती बंधु वैसे तो सात भाई है, लेकिन मंच पर भजनों की प्रस्तुति पांच भाई ही देते हैं। तीन दशक पहले जब भारती बंधु ने भजन गायकी को अपने जीविका का हिस्सा बनाया तो वैसा सम्मान नहीं मिला जैसा मिलना चाहिए था। भारती बंधु गणेश और दुर्गा पूजा में कार्यक्रम देते थे, मगर आयोजनकर्ता साजो-सामान लाने-ले जाने के लिए रिक्शे का किराया देना भी मुनासिब नहीं समझते थे। मुफलिसी का बेहद कठिन दौर देखने वाले भारती बंधु कहते हैं- हम लोग तबला और हारमोनियम को साइकिल में बांधकर ले जाते थे। बप्पी लहरी के युग में लोग भजन को भी डिस्को अंदाज में गाने के लिए कहते थे, लेकिन चंद पैसों के लिए हमने समझौता नहीं किया।

 

पद्यश्री मिला तब आया सुधार
छत्तीसगढ़ का निर्माण होने से कुछ पहले भारती बंधु की गायकी का असर छाने लगा था। वे हर सरकारी और गैर सरकारी समारोह का हिस्सा बनने लगे थे। बावजूद इसके संगीत के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें राज्य अलंकरण से सम्मानित नहीं किया गया। वे कहते हैं- ‘हम शायद सरकार के मापदंडों पर खरे साबित नहीं हो पाए हैं। हम सब कुछ कर सकते हैं, लेकिन अगर सरकार सोचती है कि भजन गाते-गाते आयोडीन नमक का प्रचार करने लगे तो यह नहीं हो पाएगा।’ कमर जलालवी के एक शेर के हवाले से भारती बंधु कहते हैं- दबा के कब्र पर सब चल देंगे एक दिन… फिर न दुआ होगी न सलाम। हम कहते रह जाएंगे-जरा सी देर में क्या हो गया जमाने को। पद्म श्री डॉक्टर भारती से स्पिक मैके चेप्टर,इटारसी परिवार के समन्वयक सुनील वाजपेयी ने भी आयोजकीय/मेजबानी संवाद किया। इस संवाद का सार यही था कि अंतर्मन की बुराईयों का जो अंत कर ले, वही सूफी होता है। स्पीक मेके चैप्टर इटारसी के आमंत्रण पर,एक दिवसीय इटारसी प्रवास पर आए कबीर पंथी शैली के अंतराष्ट्रीय गायक पद्मश्री डाक्टर भारती बंधु ने बताया कि अंतर्मन की बुराईयों को जो दूर कर ले वही सूफी कहलाने का हक रखता है।

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उन्होंने कहा कि हमारी भारती शैली विश्व में एकमात्र शैली है जो गायकी में अपना विशिष्ठ स्थान रखती है। डॉक्टर भारती अभी तक साढ़े सात हजार से अधिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति देश विदेश में कर चुके है। वर्ष 1913 में भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें पद्म श्री अलंकरण से सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त मध्यप्रदेश सरकार द्वारा तुलसी सम्मान एवम छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चक्रधर सम्मान से नवाजा जा चुका है, उनकी विशेष प्रस्तुति सूफी से प्रारंभ होकर मधुर भजन में परिवर्तित होकर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर देती है। उनका मानना है की अभिभावकों को अपने बच्चो को इस प्रकार संस्कारित करना चाहिए कि वो अपनी भारतीय संस्कृति को अपने जीवन में आत्मसात करे। क्योंकि हमारी संस्कृति का सम्मान सम्पूर्ण विश्व करता है। इसीलिए भारत की विश्व गुरु के रूप में पहचान कायम है और उसे बरकरार रखना हम सब की जिम्मेदारी है। उन्होंने स्पीक मैके के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों के माध्यम से नई बाल ,किशोर,युवा पीढ़ी से सवांद का मौका मिलता है, ताकि हम उन्हे प्रेरित कर सके।

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आइए अब कबीर को भी एक बार फिर याद कर लें क्योंकि कबीर को जाने,समझे बिना कबीर को पढ़ना,सुनना भी बेमानी ही होगा। ऐसी मान्यता है कि 1398 (विक्रम संवत 1455) को ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन कबीर दास (कबीर परमात्मा) काशी शहर के लहरतारा नामक तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए थे। इस घटना के साक्षी ऋषि अष्टानंद हुए जो स्वामी रामानन्द जी के शिष्य थे। गौरीशंकर और सरस्वती नाम के ब्राह्मण ब्राह्मणी जो जबरन मुस्लिम बनकर नीरू और नीमा जुलाहे के रूप में जीवन निर्वाह कर रहे थे उस लहरतारा तालाब पर प्रतिदिन स्नान करने आते थे। संतानहीन नीरू नीमा कमल पुष्प पर विराजित बालक को घर ले आये। अनुपम सूरत वाले इस बालक को पूरी काशी देखने के लिए उमड़ पड़ी। कई दिनों तक बालक कबीर दास जी (कबीर परमात्मा) ने कुछ भी ग्रहण नहीं किया। इस बात से नीरू और नीमा अत्यंत दुखी हुए। दुखी होकर नीरू-नीमा ने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब साधु वेश में भगवान शिव ने वहाँ आकर बालक को गोद में लिया। बालक के कहने पर साधु ने नीरू को कुंवारी गाय लाने का आदेश दिया। कुंवारी गाय पर हाथ रखते ही गाय ने दूध देना प्रारंभ कर दिया और वह दूध कबीर साहेब ने पिया। हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा तिथि को संत कबीर दास जी की जयंती मनाई जाती है।

संत कबीर दास हिंदी साहित्य के ऐसे कवि थे, जिन्होंने समाज में फैले आडंबरों को अपनी लेखनी के जरिए उन पर कुठाराघात किया था। संत कबीरदास जी आजीवन समाज में फैली बुराइयों और अंधविश्वास की निंदा करते रहे। कबीरदास जी न सिर्फ एक संत थे बल्कि वे एक विचारक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने अपने दोहों के माध्यम से जीवन जीने की कई सीख दी हैं। उनके दोहे अत्यंत सरल आम बोल चाल की भाषा में रचे गए थे, जिसके कारण उन दोहों को कोई भी आसानी से समझ सकता है। आज भी लोग उनके दोहे गुनगुनाते हैं। कबीर दास (कबीर परमात्मा) का मानवतावाद अनूठा था, जो किसी धर्म विशेष तक सीमित नहीं था। जब अविभाजित भारतवर्ष की जनसंख्या 4 करोड़ के आसपास रही होगी उस समय कबीर दास के भक्तों की संख्या 64 लाख थी। आज भी भारत, नेपाल, पाकिस्तान समेत पूरे विश्व में उनके अनुयायियों की बड़ी संख्या है। हिंदू धर्म के भक्ति आंदोलन को प्रभावित करने वाले संत कबीर की ज्ञान गंगा सिख पंथ द्वारा भी आत्मसात की गई। प्रमाण के तौर पर गुरुग्रंथसाहिब में उनके ज्ञान सूत्र बड़ी मात्रा में हैं।

जब हिन्दू मुस्लिम पूरी तरह विभाजित थे। उन्होंने दोनों की एकता के लिए कार्य किया। अपना प्रारंभिक जीवन एक ब्राह्मण से मुस्लिम बने परिवार में बिताया। दुनिया के लिए रामानंद उनके गुरू थे पर ऐसा भी माना जाता है कि वास्तविकता में रामानंद ने उन्हें अपना सतगुरू मानकर उनसे सतज्ञान की शिक्षा और दीक्षा ली थी। आज भी समाज का प्रबुद्ध वर्ग विशेषकर शिक्षित – बुद्धिजीवी वर्ग उनकी दृढ़ता से प्रभावित है और व्यापक रूप से कबीर दास के ज्ञान को समय समय पर उद्धृत किया जाता रहा है। उन्हें कबीर दास कहते थे, लेकिन यह कहना असंभव है कि कबीर ब्राह्मण थे या सूफी, वेदांतवादी या वैष्णव। कबीर दास धार्मिक बहिष्कार से घृणा करते थे। कबीर अपने समकालीन सभी ब्राह्मणों और मुल्लाओं के साथ धार्मिक और दार्शनिक तर्कों में शामिल हुआ करते थे। उनकी जीवन कहानी हिंदू और इस्लामी दोनों दृष्टियों से विरोधाभासी किंवदंतियों से भरी हुई है। आज तक भी। एक ओर हिंदू उन्हें हिंदू संत और वहीं मुस्लिम उन्हें सूफी बताते हैं। निस्संदेह उनका नाम वेदों, कुरान और बाइबल तीनों में है फिर भी उनका लालन पालन वाराणसी के एक मुस्लिम बुनकर परिवार में हुआ जिनका गुरू स्वामी रामानन्द को बताया जाता है। वास्तविकता है कि कबीर साहेब न तो हिन्दू है और न ही मुसलमान।

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वे तो एक सच्चे समाज सुधारक थे जो अपने भक्तों को सत्य मार्ग दिखाने के लिए प्रकट हुए थे। उनके अनुयायियों ने उनकी मौखिक रूप से रचित कविताओं,छंदों,गीतों,भजनों को बावंस कहा। कबीर दास की भाषा और लेखन की शैली सरल और सुन्दर है जो की अर्थ और महत्व से परिपूर्ण है। उनके लेखन में सामाजिक भेदभाव और आर्थिक शोषण के विरोध में हमेशा लोगों के लिए सन्देश रहता था. उनके द्वारा लिखे दोहे बहुत ही स्वभाविक है जो कि उन्होंने दिल की गहराई से लिखे था। उहोने बहुत से प्रेरणादायी दोहों को साधारण शब्दों में अभिव्यक्त किया था। कबीर दास के द्वारा कुल 70 रचनाये लिखी गयी है, जिनमे अधिकांशतः उनके दोहे और गीतों,भजनों के संग्रह है।

कबीर निर्गुण भक्ति के प्रति समर्पित थे। कबीर दास ने बहुत सी रचनायें की है जिनमे से उनकी कुछ प्रसिद्ध लेखन कृतियां हैं, बीजक, कबीर ग्रंथावली, अनुराग सागर, सखी ग्रन्थ, सबदास, वसंत, सुकनिधन, मंगल, सखीस और पवित्र अग्नि इत्यादि। कबीरदास के कालखंड में कई अंधविश्वास फैले हुए थे। एक अंधविश्वास यह भी कायम था कि काशी में मृत्यु होने वाले के स्वर्ग की प्राप्ति होती है तो वहीं मगहर में मृत्यु होने पर नरक भोगना पड़ता है। लोगों में फैले इस अंधविश्वास को दूर करने के लिए कबीर जी पूरे जीवन काशी में रहे लेकिन अंत समय मगहर चले गए और मगहर में ही अंतिम सांस ली। कबीर जी को मानने वाले लोग हर धर्म से थे, इसलिए जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनके अंतिम संस्कार को लेकर हिंदू और मुस्लिम दोनों में विवाद होने लगा। कहा जाता है कि इसी विवाद के बीच जब शव से चादर हटाई गई तो वहां पर केवल फूल थे। इन फूलों को लोगों ने आपस में बांट लिया और अपने धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार किया। कबीर आज भी मानों उन्हीं फूलों की तरह हमारे आसपास महक रहे हैं,महकते रहेंगे।