आखिर कब बेदाग होगी ईवीएम, दोहरा मापदंड कब तक ?

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आखिर कब बेदाग होगी ईवीएम, दोहरा मापदंड कब तक ?

जहां सरकार अपनी बन जाए, वहां ईवीएम पास। जहां विपक्षी दल की सरकार बने, वहां ईवीएम दागदार। आखिर यह दोहरा मापदंड कब तक? ईवीएम भारत में कब तक ऐसे दोहरे मापदंड पर खुद को अभिशप्त मानने को मजबूर होगी। मध्यप्रदेश में कब तक ईवीएम के नाम पर कोहराम मचा रहेगा। मध्यप्रदेश में ईवीएम के नाम पर बुधवार यानि 24 जनवरी 2024 को ईवीएम वाक् युद्ध चलता रहा। शुरुआत कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने की, तो अंत प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने किया।
भारतीय चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम मशीन की विश्वसनीयता पर पर और विपक्ष आमने-सामने हैं। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने तकनीकी विशेषज्ञों के साथ भोपाल में डमी ईवीएम मशीन में छेड़छाड़ का प्रदर्शन एक पत्रकार वार्ता के जरिए प्रस्तुत किया। दिग्विजय सिंह के मुताबिक इसका सीधा अर्थ है कि जो वोट भारत का नागरिक डाल रहा है उसमें छेड़छाड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि भारतीय लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए और भारत के नागरिकों का मतदान 100% सुरक्षित करने के लिए वोटिंग की प्रणाली में बदलाव किया जाए। दिग्विजय सिंह की मांग है कि ईवीएम हटाकर मत पत्र से चुनाव कराए जाएं। और अगर ईवीएम से ही चुनाव कराने हैं तो वोट की पर्ची मतदाता को हाथ में मिलनी चाहिए जिसे वह मत पेटी में डालें और इसी पर्ची को गिना जाए।
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संदेह का पूरी प्रक्रिया यह है। ईवीएम का इस्तेमाल 2003 में शुरू हुआ फिर अविश्वास सामने आने के बाद वीवीपैट लगाई गई। बीवीपैट तार से बैलेट यूनिट से कनेक्ट होती है। वीवीपीएटी सेंट्रल इलेक्शन कमिशन के सर्वर से कनेक्ट होती है। पहले कलेक्टर कौनसी यूनिट कहां जायेगी ये तय करते थे,लेकिन अब रेंडमाइजेशन के नाम पर यह प्रक्रिया सेंट्रल सर्वर से होती है। जिसके लिए प्राइवेट इंजीनियर बुलाए जाते हैं।इंजीनियर लैपटॉप से मशीन को कनेक्ट करते हैं जिसके बाद सिंबल लोड होते हैं।जिसके चलते चिप सर्वेसर्वा हो जाता है।वीवीपीएटी मशीन में 7 सेकंड के लिए चुनाव चिन्ह दिखाई देता है, लेकिन जो दिखा वही डब्बे में गिरा इस बात का संदेह है। माइक्रोचिप जो वीवीपीएटी में है वही वोट डाल रहा है। तर्क यह भी कि पूरे विश्व में केवल 5 देशों में ईवीएम से चुनाव होता है। ऑस्ट्रेलिया में मशीन में जो सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है वो पब्लिक डोमेन में है।लेकिन भारत में आज तक कौनसा सॉफ्टवेयर इस्तेमाल होता है ये जानकारी पब्लिक नहीं है। इलेक्शन कमिशन कहता है पब्लिक करने से सॉफ्टवेयर हैक हो सकता है। आरटीआई के अंतर्गत कई प्रश्न पूछे गए जिसके ईसीआई और बीईआईएल अलग अलग जवाब दे रहे हैं।पार्ट्स अलग अलग वेंडर्स से आते हैं। कहा गया की चिप वन टाइम प्रोग्राम चिप है। लेकिन जब वीवीपीएटी आई तो चिप मल्टीपल प्रोग्रामेबल हो गई। रिटर्निंग ऑफिसर्स कहते हैं की वीवीपीएटी प्रोग्राम करने के लिए इंटरनेट कनेक्टिविटी मांगी जाती है। ईसीआई इन सभी सवालों का जवाब नहीं देती। यह सब आरोप हैं।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के ईवीएम संबंधी वक्तव्य पर प्रदेश अध्यक्ष व सांसद विष्णुदत्त शर्मा का कहना है कि कांग्रेस द्वारा निजी राजनीतिक स्वार्थ के लिए संवैधानिक संस्थाओं का अपमान दुर्भाग्यपूर्ण है। ईवीएम तो सिर्फ बहाना है, गांधी परिवार को बचाना है। कांग्रेस जब जीते तो ईवीएम ठीक, हारे तो ईवीएम हैक। 10 जनपथ के रोजनामचे में अपना नाम बनाए रखने के लिए स्वांग रचते हैं दिग्विजय सिंह। लोकसभा चुनाव में प्रत्याशित हार के बहाने अभी से तलाशने लगे दिग्विजय सिंह। विष्णु दत्त शर्मा ने आक्रोश जताया कि कांग्रेस पार्टी और उसके नेता अपने नेतृत्व की नाकामी छुपाने के लिए हर बार चुनावी हार का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रोन्मुखी नीतियों के प्रति देश में जो लहर दिखाई दे रही है, उससे यह स्पष्ट हो गया है कि लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की करारी हार होने वाली है। इसलिए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने इस हार के लिए बहानों की तलाश अभी से शुरू कर दी है, क्योंकि वे अपने नकारा नेतृत्व और गांधी परिवार को हार के कलंक से बचाना चाहते हैं। सच्चाई यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की रीति-नीति के साथ पूरा देश खड़ा है तथा राष्ट्रविरोधी, धर्मविरोधी, महिला विरोधी और गरीब विरोधी कांग्रेस को जनता ने लोकसभा चुनाव में सबक सिखाने का मन बना लिया है।
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प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि कांग्रेस और दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की हमेशा यह कोशिश रही है कि ईवीएम के नाम पर मतदाताओं को गुमराह किया जाता रहे, भड़काया जाता रहे और हमेशा अपनी राजनीतिक असफलता का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ा जाता रहे। उन्होंने कहा कि आज जो दिग्विजय सिंह यह रोना रो रहे हैं कि चुनाव आयोग ईवीएम को लेकर उनकी बात सुनने को तैयार नहीं है, उन्हें मिलने का समय नहीं दिया जा रहा है, वो उस समय कहां थे, जब चुनाव आयोग ने उन्हें ईवीएम हैक करके दिखाने की चुनौती दी थी? तब उन्होंने क्यों नहीं आयोग के दफ्तर में ईवीएम को हैक करके दिखाया? दिग्विजय सिंह यह अच्छे से जानते थे कि अगर वो चुनाव आयोग के इस चैलेंज को स्वीकार करते हैं, तो उनके झूठ का भांडा फूट जाएगा और फिर कभी वो जनता को गुमराह करने के लिए ईवीएम की आड़ नहीं ले सकेंगे। दिग्विजय सिंह आखिर यह बात क्यों भूल जाते हैं कि ईवीएम कांग्रेस की ही देन है तथा कांग्रेस सरकार के समय ही 2003 के चुनाव में लाई गई थी, तब सोनिया सेना ने 2004 के चुनाव ईवीएम के द्वारा ही कराए थे, जिसमें यूपीए गठबंधन ने जीत दर्ज की थी। तब दिग्विजय सिंह को ईवीएम में खोट क्यों नजर नहीं आई?
2009 में कैसे यूपीए गठबंधन द्वारा ईवीएम हैक कर ली गई थी, इसका जिक्र दिग्विजय सिंह क्यों नहीं करते? विष्णुदत्त शर्मा ने कहा कि कांग्रेस और उसके सहयोगी दल हमेशा ईवीएम को उसी समय कोसते हैं, जब चुनाव में वे हार जाते हैं। जब वो जीतते हैं, उस समय ईवीएम की चर्चा नहीं करते। उन्होंने कहा कि यह कितना हास्यास्पद है कि इन दलों और नेताओं के लिए इनकी जीत इनकी पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों की जीत होती है, जबकि भारतीय जनता पार्टी की जीत ईवीएम की जीत होती है। शर्मा ने कहा कि हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश और तेलंगाना में कांग्रेस को जीत मिली है, क्या दिग्विजय सिंह कांग्रेस की इस जीत को भी ईवीएम की जीत मानते हैं? दिग्विजय सिंह ने उस समय ईवीएम को दोष क्यों नहीं दिया, जब कांग्रेस ने तीन राज्यों के  चुनाव जीते थे। प्रदेश अध्यक्ष शर्मा ने कहा कि देश के संविधान और संवैधानिक संस्थाओं के प्रति कांग्रेस की कोई आस्था नहीं है। उनके नेता खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों और देश की संसद में पास किए गए प्रस्तावों का मखौल उड़ाते रहे हैं। चुनाव आयोग हो, सीबीआई हो, ईडी हो या अन्य कोई संवैधानिक संस्था, सभी पर संदेह जताना और सभी का अपमान करना कांग्रेस के नेताओं की आदत रही है। दिग्विजय सिंह जिस 2014 लोकसभा चुनाव में भी ईवीएम हैक करने का आरोप लगा रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि उस समय देश में कांग्रेस के नेतृत्व वाली डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार ही थी। क्या तब भी चुनाव आयोग भारतीय जनता पार्टी के दबाव में काम कर रहा था?
खैर यह आरोप-प्रत्यारोप चलते रहेंगे और ईवीएम हमेशा अपनी किस्मत पर रोती रहेगी। यह दोहरा मापदंड ईवीएम को हमेशा त्रास देता रहेगा। जहां अपनी सरकार बने, वहां ईवीएम पास और जहां अपनी हार, वहां ईवीएम का फर्जीवाड़ा। जब बैलट‌ पेपर थे, तब वह भी दागदार थे। अब ईवीएम तो वह भी दागदार।‌ सवाल यही कि कब ईवीएम बेदाग साबित होगी…।