साँच कहै ता! लोकतंत्र की पीठपर शनि की साढेसाती

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साँच कहै ता! लोकतंत्र की पीठपर शनि की साढेसाती

अपने देश की हर समस्या के इलाज के लिए टोने टोटके हैं। कठिन से कठिन समस्या का समाधान उसी से निकलता है। अपने सूबे में अगले साल चुनाव आने को हैं, एक अखबार ने ब्योरा छापा कौन उम्मीदवार किस मंदिर की चौखट पर सिर धरे बैठा है, कौन यग्य, हवन, जाप और नवग्रह शाँति करवा रहा है। किसके क्षेत्र में कौन महारथी भागवत या शिवपुराण बाँचने पधार रहा है। सब में स्पर्धा चल रही है, पंडे, महंत, कथावचक उनके चेले चापड़े सभी के पास काम है।

एक उम्मीदवार तो विरोधी प्रत्याशी के खिलाफ पुलःचरण जाप करवा रहा है। शायद इसलिए कि वह जीते या न जीते सामने वाला जीते भी तो किसी लायक न बचे। सच बताएं एक सूफी तांत्रिक ने मुझसे अपनी एक डील एक मालदार भावी उम्मीदवार तक पहुचाने को कहा।

डील यह कि वह ग्यारह लाख रु. देने का करार भर कर ले चुनाव के आखिरी दिनों में वह ऐसा खेल करेगा कि विरोधी के सारे वोट उसके खाते में झरझरा जाएंगे। रुपए परिणाम आने के बाद चाहिए। ये भी अच्छी डील हुई जीत गए तो ग्यारह लाख पक्के हार गए तो सूफी तांत्रिक जी ..नौ दो ग्यारह। पकड़ में आ भी गए तो कह देंगे कि सामने वाले ने इक्कीस लाख खर्च करके जिन्नों को मेरे पीछे लगा दिया था। बाय-द-वे अपने मुल्क की डेमोक्रेसी है मजेदार।

अपने देश की दो और खास बातें हैं, जो दुनिया में कहीं नहीं। पहली आईबी यानी कि इन्टेलीजेन्स ब्यूरो और दूसरी ज्योतिष। इन दोनों के आंकलन कभी मिथ्या नहीं होते। हर आतंकी हमले के बाद आईबी कहती है- कि मैंने पहले ही कहा था कि हमला होगा, तो हुआ। मान लीजिए हमला नहीं होता तब भी आईबी सही होती यह कहते हुए कि- हमने चेतावनी दी थी इसलिए सब संभल गया नहीं तो हमला तय था।

ज्योतिष को भी यही मान लीजिए। ज्योतिष के अनुसार भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकारें बन सकती हैं। दोनों को बता रखा है कि शुक्र पर शनि की वक्रदृष्टि है जिसने इसे सम्हाल लिया मानों उसकी सरकार बन गयी। भाजपा की बन गई तो समझो उनका शुक्र इतना प्रबल था की शनि की वक्रदृष्टि फेल हो गई और कांग्रेस की बनी तो समझिए कि उन लोगों ने शनि को पटा लिया।

रामलाल जीतें कि श्यामलाल, ज्योतिषियों की चांदी ही चांदी है, क्योंकि अंतत: ज्योतिष तो जीत ही रही है न। हर प्रत्याशी किसी न किसी ज्योतिषी का जजमान है। कुर्ते की ऊपरी बटन खोल दो तो पूरा गला गंडे-ताबीज से भरा मिलेगा। जिसके हाथ में लाल-पीले-काले रक्षासूत्र, कलावा बंधे मिलें समझिए ये ही आपके इलाके का नेता है।

एक बार ज्योतिषी ने एक मंत्री जी को बता दिया कि राहू आपके पीछे पड़ा है इसलिए.. राहू से बचने के लिए मंत्रीजी ने लंबी चोटी रख ली। जोकरों जैसा हुलिया और हर मंच में भजन गाते-गवाते प्रदेश का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग को बखूबी संभाला। ज्योतिषी ने फिर चेतावनी दी कि अब राहू आपको छोड़कर आपके क्षेत्र में बैठ गया है।

मंत्रीजी कुछ कर पाते कि चुनाव आ गया, अब वो हार जाते हैं तो समझो राहू ने हरा दिया और जीत जाते हैं, तो समझो बजरंगबली ने राहू को दबोच रखा था इसलिए जीत गए। बजरंगबली को पटाने के लिए ज्योतिषी के बताए अनुसार मंत्रीजी ने बजरंगबली की चमेली के तेल से मालिश की थी और सिन्दूर का चोला चढ़ाया था। अन्डर-वियर से लेकर रुमाल तक सब लाल ही लाल। लाल देह लाली लसै। ज्योतिषी दूसरे जजमान से बता रहा था कि यदि मंत्रीजी अपना मुंह भी लाल रंग से रंग लेते तो जीत पक्की थी। वे शरमा गए सो डाउटफुल है।

अपने यहां जनता न किसी को हराती है न जिताती है। वह होती कौन है? जीत हार का फैसला ग्रह, नक्षत्रों की चाल और ज्योतिषियों के पैंतरे तय करते हैं। इस बार भी वही कर रहे हैं। जनता को नेता भजें भी तो क्यों? जब शनि-शुक्र, राहु-केतु हैं तो पांच साल इन्हें भजो।

हमारे शहर में एक शमी का पेड़ था। किसी ने फैला दिया कि यह शनि का साक्षात अवतार है। बस क्या.. शनि की दशा के मारे लोग सरसों का तेल लेकर शमी पर सवार शनिदेव को हर शनिवार प्रसन्न करने में जुट गए। देखा-देखी इतना तेल चढ़ाया, इतना तेल चढ़ाया कि किसी का शनीचर भले न उतरा हो पर बेचारा हरा-भरा शमी का पेड़ मर गया।

बचपन में बताया गया था सुबह-सुबह तेली (यहां जाति से आशय नहीं बल्कि गांवों में घूम-घूमकर तेल बेचने वाले से है) का मुंह देखना अशुभ होता है। खुदा-न-खाश्ता दिख जाए तो उसका दांत देखने से अशुभ-शुभ में बदल जाता है। हम साथियों के साथ घर से स्कूल के लिए निकलते थे अक्सर कोई न कोई तेल बेचते दिख जाता था। फिर हम लोग उसका दांत देखने के लिए स्कूल न जाकर एक गांव से दूसरे गांव तक पीछा करते थे।

चिढ़ाने और तंग करने के बाद भी जब वह मुंह न खोलता- तो विनती करते थे- तेली कक्का दांत दिखा दो नहीं तो हमारी पढ़ाई चौपट हो जाएगी। वह प्यार से डांटता व कहता किसी का मुंह देखना कैसे शुभ-अशुभ हो सकता है? लौटकर जब देरी से स्कूल पहुंचते तो मस्साब छड़ी लिए स्वागत के लिए खड़े मिलते। स्कूल के आंगन में लगे अमरूद वे खाते और उसकी छड़ी हम लोग। तेली कक्का का दांत-दर्शन कभी छड़ी से नहीं बचा पाया।

अपने यहां टोने-टोटके विज्ञान की भी चाभी घुमा देते हैं। अभी खबर पढ़ी थी कि एक वैग्यानिक मिशन शुरू करने से पहले निदेशक साहब कुलदेवता से मिन्नत माँगने गए थे। मिशन सफल हो गया तो सफलता का श्रेय भला उन वैज्ञानिकों को कहां मिलने वाला? वो तो उनकी कृपा का फल था।

गालिब ने बड़ी बिन्दास लाइनें लिखीं- जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर, या वो जगह बता जहां पर खुदा न हो। रोम-रोम में राम, कण-कण में भगवान। ईश्वर की सर्वव्यापकता की यही व्याख्या पढ़ते आए हैं। पर घर से निकलते हैं तो दिशाशूल, गोचर, दिन का मुहूरत आड़े आ जाता है।

रास्ते से बिल्ली निकली तो 50 लाख की मर्सिडीज खड़ी हो गई सड़क पर यह ताकते हुए कि पहले कोई दूसरा रास्ता काटे। देरी से फ्लाइट छूट जाए या अरबों की डील टूट जाए, बिल्ली सब पर भारी।

अपने सूबे के एक ऐसे मुख्यमंत्री हुए जो चुनाव में पर्चा भरने निकले तो काली बिल्ली रास्ता काट गई। काफिला रुक गया। काली हंडी का तांत्रिक उपचार हुआ, पर्चा भरने के बाद। मुख्यमंत्री का चुनाव मुकाबले में फंस गया।

ज्योतिषीजी ने फरमा दिया- कहा था न अपशगुन हो गया है मुश्किल तो आएगी। मंत्रीजी मुश्किल से जीते पर इसका श्रेय जागरुक वोटरों को नहीं उस काली बिल्ली के अपशकुन को दूर करने वाले ओझा को मिला।

चुनावों में उम्मीदवार ऐसे ही टोटके करते हैं। ज्योतिषी ने एक उम्मीदवार को सुझाया कि घर से उल्टे मुंह निकलो- सफलता मिलेगी। सचमुच वे घर से दस कदम पछेला चले। अच्छे नेता हैं, जीत भी सकते हैं पर वोटरों के वोट पर उनका ‘पछेला’ अगले पांच साल तक भारी रहेगा। जब उनके वोटर किसी काम से आएंगे तो भी वे पिछवाड़े से निकल लेंगे।

क्या करिएगा। देश को, ग्रह, नक्षत्र,राह-केतु उपनक्षत्र, टोने-टोटके चला रहे हैं। जनता अप्रसांगिक है। यह अप्रसांगिकता उसकी ही ओढ़ी बिछाई है क्योंकि वह भी अंध-विश्वासों में फंसी है।

अपने भैय्याजी ठीक ही कहा करते हैं- जहां पराक्रम के मुकाबले अंधविश्वास और टोनों-टोटकों का ऐसा ही कर्मकाण्डीय पाठ्यक्रम चलता रहेगा, वह भी इस युग में, वहां सचमुच ही भगवान मालिक है चुनाव जिताने के लिए भी और मंगल ग्रह पहुंचने के लिए भी।