खरगोन की हिंसा के पीछे कौन(Who is Behind the Violence of Khargone)?

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खरगोन की हिंसा के पीछे कौन(Who is Behind the Violence of Khargone)?

मध्यप्रदेश में कुंडा नदी के तट पर बसे खरगोन में रामनवमी पर हुई हिंसा के बारे में मै लिखना नहीं चाहता था लेकिन मुझे अक्सर वामपंथी और कांग्रेसी ही नहीं बल्कि ‘गद्दार’ तक कहने वाले अपने मित्रों की वजह से खरगोन की हिंसा के बारे में लिखना पड़ रहा है। खरगोन में हिंसा के पहले खरगोन के चरित्र को जान लेना चाहिए। नीमों के इस शहर के चरित्र में कड़वाहट एक स्वाभाविक गुण है बावजूद इसके खरगोन देश के तेजी से विकसित होने वाले शहर के रूप में सम्मानित है और स्वच्छता सर्वेक्षण में भी उसे 10 वां स्थान हासिल हो चुका है। कपास और मिर्च पैदा करने वाले इस शहर में रामनवमी पर हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है और प्रथम दृष्टया प्रशासनिक अक्षमता का नतीजा है।

दो लाख से कुछ अधिक की आबादी वाले खरगौन में सातों जातियों के लोग रहते हैं ,शहर में टकराव का पुराना इतिहास भी है बावजूद इसके स्थानीय जिला प्रशासन ने एहतियात नहीं बरती। त्यौहारों से पहले होने वाली शांति समिति की बैठकों के आयोजन भर से शांति कायम होती आयी होती तो रामनवमी पर जो पथराव हुआ वो शायद न होता। तय है कि पथराव पूर्व नियोजित रहा होगा लेकिन पुलिस को इस तैयारी की भनक क्यों नहीं लगी ? स्थानीय दारोगा का क्या इतना भी रसूख नहीं था की वो अपने इलाके के उपद्रवियों को चिन्हित कर उन्हें पहले से आँखें दिखा सकता।

इस हिंसा में पथराव भी हुआ और गोलियां भी चलीं,पुलिस अधीक्षक के पैर में भी गोली लगी,जाहिर है कि पुलिस अधीक्षक का आभामंडल खरगौन में बना ही नहीं अन्यथा किसी की क्या मजाल कि शहर में पत्ता भी खड़क जाए। खरगोन की हिंसा में प्रशासनिक नाकामी पर किसी की नजर नहीं गयी । कोरी की जगह कडेरे के कान उमेठे जरूर गए और हिंसा के बाद 3 सरकारी कर्मचारियों को बर्खास्त करने के साथ ही एक को निलंबित कर दिया गया। पुलिस और प्रशासन को जो कार्रवाई हिंसा से पहले करना थी वो अब की जा रही है और जूनून में की जा रही है ।

हिंसा के बाद 84 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया ,दर्जनों मकानों पर बुलडोजर चला दिए गए। सवाल ये है कि क्या ये हिंसा के बाद की जाने वाली कार्रवाई वाकई समझदारी पूर्ण है। प्रदेश के गृहमंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा कहते हैं कि इमलीपुरा,तालाब चौक,भावसार मोहल्ला,गौशाला मार्ग पर स्थित मकानों से पथराव किया गया ,बम फेंके गए उन्हें जमींदोज कर दिया जाएगा। शांति की स्थापना और हिंसा फ़ैलाने वालों को सबक सीखने के लिए ऐसा तो अतीत में मुगलों,मराठों और अंग्रेजों ने भी शायद नहीं किया। बेहतर होता कि यदि ये तमाम इलाके संवेदनशील थे तो या तो यहां से जुलूस निकलने की इजाजत ही न दी जाती और अगर दी गयी थी तो पुलिस का माकूल इंतजाम किया जाता। जाहिर कि ऐसा कुछ नहीं किया गया।

खरगोन की हिंसा में थानेदार और पुलिस अधीक्षक के प्रति नरमी इसलिए नहीं बरती जा सकती कि वे भी घायल हुए ,बल्कि उनके प्रति सबसे अधिक कठोर कार्रवाई होना चाहिए क्योंकि उनकी नाकामी की वजह से खरगोन को हिंसा की आग में जलना पड़ा और बदनामी झेलना पड़ी सो अलग। आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, पथराव के दौरान टीआई बनवारी मंडलोई, एक पुलिसकर्मी सहित 20 लोग घायल हो गए थे. इसके अलावा गोशाला मार्ग स्थित शीतला माता मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी. हालात को काबू में करने पहुंचे पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थ चौधरी पर भी उपद्रवियों ने हमला कर दिया था. इसके बाद पुलिस ने पूरे इलाके में घेराबंदी की और पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू लगा दिया.

प्रदेश की सरकार अकेली नहीं है जो इस समय देश में सरकारी संरक्षण में धार्मिक खेल खेल रही ही । सरकारी खर्च पर हिन्दुओं के धार्मिक त्यौहार आयोजित किये जा रहे हैं और दूसरे धर्मों के लोगों को जानबूझकर चिढ़ाया जा रहा है । ये कोई अलग मुद्दा नहीं है। खरगोन की हिंसा कि रौशनी में इसे भी देखा जाना चाहिए। सरकार सोचती है कि प्रदेश में शांति कायम करने के लिए भारतीय दंड संहिता से काम चलने वाला नहीं है इसलिए बुलडोजर संहिता का सहारा लिया जा रहा है । चिन्हित किये गए आरोपियों में से कितनों के मकान ढहाने के लिए किसी अदालत ने आदेश दिया । या यदि ये तमाम मकान अवैध तो सरकार को हिंसा के बाद ही इन्हें गिराने की सुध क्यों आयी ?पहले ये अवैध क्यों नहीं दिखाई दिए ?

दरअसल किसी भी दल की सरकार यदि तालिबानी तौर-तरीकों से प्रशासन करना चाहेगी तो उसे शांति स्थापना में कामयाबी नहीं मिलेगी । बुलडोजर सौहार्द नहीं अपितु घृणा पैदा करेंगे । क्या बेघर हुए कथित दंगाइयों के परिजन ताउम्र सरकार के बर्बर व्यवहार को भूल जाएंगे । मान लीजिये हिंसा फ़ैलाने वाले साम्प्रदायिक हैं,कटटर हैं तो क्या जनादेश से चुनी सरकार भी साम्प्रदायिक,बर्बर और कट्टर है ? क्या उसे किसी क़ानून ने बुलडोजरों के इस्तेमाल का विशेषाधिकार दिया है ?

सरकार को ठंडे दिमाग से उन विन्दुओं को चिन्हित करना चाहिए जिनकी वजह से हिंसा हुई। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण वारदातों की पुनरावृर्ति न हो इसके लिए पहले पुलिस और प्रशासन के निकम्मे अधिकारियों को दण्डित किया जाना चाहिए।सरकार ने अभी तक कलेक्टर और एसपी को नहीं हटाया,जाहिर है कि वो इन दोनों को हिंसा के लिए जिम्मेदार नहीं मानती। बदले की भावना से कार्रवाई कर दुनिया में कहीं भी अमन-चैन कायम नहीं हुआ।

दंगे समाज केलिए नासूर हैं। दंगाइयों को कड़ी से कड़ी सजा मिलना चाहिए चाहे वे भड़काऊ भाषण देने वाले कपिल मिश्रा हों या कोई खान। कोई भी समझदार आदमी दंगाइयों के पक्ष में खड़ा नहीं हो सकता ,यहां तक कि दिग्विजय सिंह भी लेकिन क़ानून और व्यवस्था बनाये रखने के लिए अंधे होकर बुलडोजर चलने का विरोध तो हर कोई करेगा। अदालतों को भी बुलडोजर संहिता पर संज्ञान लेना चाहिए ,क्योंकि यदि त्वरित न्याय देने के लिए बुलडोजरों का इस्तेमाल होता रहा तो किसी को अदालत जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

रामनवमी पर अकेले मप्र में ही नहीं बल्कि झारखण्ड,बंगाल औरगुजरात में भी हिंसा हुई लेकिन कहीं भी किसी सरकार ने दंगाइयों से निबटने के लिए बुलडोजर नहीं निकाले। बुलडोजर दंगाइयों को सबक सिखाने का औजार हैं ही नहीं। बुलडोजर निर्जीव ढांचे गिरा सकते हैं,नफरत की दीवारें नही। नफरत की दीवारें हम इंसानों को ही गिराना पड़ेंगी। भले ही हम सत्ता में हों या सत्ता से बाहर।